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देश की आजादी से पहले चार बार दरभंगा आ चुके थे महात्मा गांधी

दरभंगा । 1917 में बिहार के चंपारण से शुरू महात्मा गांधी के सत्याग्रह ने उस समय के भारत में काबिज ब्र

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Jan 2019 11:32 PM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 11:32 PM (IST)
देश की आजादी से पहले चार बार दरभंगा आ चुके थे महात्मा गांधी
देश की आजादी से पहले चार बार दरभंगा आ चुके थे महात्मा गांधी

दरभंगा । 1917 में बिहार के चंपारण से शुरू महात्मा गांधी के सत्याग्रह ने उस समय के भारत में काबिज ब्रिटिश हुकूमत की रातों की नींदें उड़ा दी थी। चंपारण से उन्होंने अपने आंदोलन की शुरूआत कर दी थी। गांधी के जानकारों की मानें तो उसके ठीक दो साल बाद 1919 में गांधी पहली बार दरभंगा पहुंचे थे। फिर तो उनके यहां आने का सिलसिला 1934 तक चलता रहा। 1922 और 1927 में भी बापू दरभंगा आए थे। हालांकि, वर्तमान में उसका कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं मिलता। 1934 में आए भयंकर भूकंप के बाद पीड़ितों का हाल जानने बापू दरभंगा आए और दो दिनों तक यहां रुके। 30 और 31 मार्च 1934 को महात्मा गांधी के वर्तमान मिथिला विश्वविद्यालय के यूरोपियन गेस्ट हाउस में ठहरने का प्रमाण हमें मिलता है। उनके जाने के फौरन बाद तत्कालीन महाराजा डॉ. कामेश्वर ¨सह ने उनके आगमन से संबंधित शिलापट उस कमरे में लगाया जिस कमरे में महात्मा गांधी ठहरे थे। वह शिलापट आज भी उनके आगमन की गवाही देता है। महाराजा ने गांधी के वापस जाने के साथ ही उस कमरे को संग्रहालय का रूप देने का प्रयास शुरू कर दिया। गांधी के प्रयोग की गई वस्तुएं जैसे पलंग, चरखा, कुर्सी-टेबुल, ग्लास, जग आदि को काफी सहेज कर उस समय रखा गया था। लेकिन, 1972 में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही यूरोपियन गेस्ट हाउस विवि के अधिकार क्षेत्र में आ गया। नदारद हो चुकी गांधी से जुड़ी चीजें :

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विवि के अधिकार क्षेत्र में आने के बाद यूरोपियन गेस्ट हाउस का नाम तो जरूर गांधी सदन कर दिया गया, लेकिन विवि प्रशासन की उदासीनता के कारण आज वहां से गांधी से जुड़ी छोटी से बड़ी चीजें नदारद हो चुकी हैं। आज भी उस कमरे का स्वरूप संग्रहालय का ही है, लेकिन उसमें गांधी के चित्रों व गांधी से जुड़ी प्रतीकात्मक वस्तुओं के अलावा कुछ नहीं बचा। अगर कुछ शेष है तो बस कमरे की दीवार पर लगी महाराजा के समय की तख्ती, जो यह बताती है कि गांधी 1934 में यहां आए और दो दिनों तक यहां ठहरे थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि विवि के राज में गांधी के सामान की उपेक्षा की गई या ये कहें कि उनके महत्व को नहीं समझा गया। बहरहाल जो भी हो, यहां की नई पीढ़ी को यह जरूर जानना चाहिए कि गांधी के नजर में दरभंगा भी उतना ही प्रिय था जितना की चंपारण।


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