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खादी भवन में कभी कटती थी सूत, आज अतिक्रमणकारियों का राज

25 वर्षों से बेनीपुर के नवादा गांव स्थित जर्जर खादी भंडार को देखनेवाला कोई नहीं हैं। जर्जर खादी भंडार को धीरे-धीरे अतिक्रमणकारियों ने अपने गिरफ्त में ले लिया। लगभग सौ वर्ष पहले इस खादी भंडार भवन का निर्माण नवादा गांव के ग्रामीणों ने किया था।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 12:39 AM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 12:39 AM (IST)
खादी भवन में कभी कटती थी सूत, आज अतिक्रमणकारियों का राज
खादी भवन में कभी कटती थी सूत, आज अतिक्रमणकारियों का राज

दरभंगा । 25 वर्षों से बेनीपुर के नवादा गांव स्थित जर्जर खादी भंडार को देखनेवाला कोई नहीं हैं। जर्जर खादी भंडार को धीरे-धीरे अतिक्रमणकारियों ने अपने गिरफ्त में ले लिया। लगभग सौ वर्ष पहले इस खादी भंडार भवन का निर्माण नवादा गांव के ग्रामीणों ने किया था। यह खादी भंडार चरखा से सूत कताई के मामले में पूरे देश में प्रसिद्ध था। नवादा गांव की बहू फूलमाया देवी को पूरे देश में चरखा से सूत कताई करने में अच्छे प्रदर्शन को ले प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1954 से लेकर 1965 के बीच 36 तरह के राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया था। लेकिन विगत 25 वर्षों से सरकारी स्तर पर इस खादी भंडार को किसी तरह की सहायता नहीं मिलने के कारण जहां चरखा से सूत कताई करना बंद हो गया, वहीं दर्जनों महिलाएं बेरोजगार हो गई। इधर खादी भंडार का भवन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। स्थानीय ग्रामीणों ने इस जर्जर खादी भंडार का पुर्न निर्माण करवाने के लिये कई बार प्रयास किया।

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कहते हैं लोग

इस खादी भंडार का पूरे देश में एक अलग पहचान थी। उस समय खादी का कुर्ता एंव पैजामा पहनने की नेताओं में होड़ लगी रहती थी। खादी भंडार पर प्रतिदिन लगभग पांच सौ से अधिक महिलाएं गांव की बहू फुलमाया देवी के नेतृत्व में चरखा से सूत काटती थी।

रमानंद झा।

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खादी भंडार का पुर्ननिर्माण कार्य करवाने तथा सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए गांव के स्व. हरिशचंद्र झा ने भी काफी प्रयास किया। लेकिन सरकारी स्तर पर घोर उपेक्षा के कारण आज यह खादी भंडार पूर्णत: जर्जर हो गया है।

जितेन्द्र कुमार झा उर्फ लालबाबू।

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वर्तमान में यह खादी भंडार सूअरों एवं कुत्तों का रैन बसेरा बन गया है।

रामकुमार झा बब्लू।

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हर बार लोकसभा चुनाव के समय इस खादी भंडार को चकाचक करवाकर सूत कटाई का कार्य करवाने का अश्वासन विभिन्न दलों के नेताओं द्वारा दिया जाता रहा है। लेकिन जीतकर जाने के बाद नेताजी जनता से किए वादों को भुला देते है।

गिरीश चंद्र झा।


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