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धर्म के पालन से ही आत्मज्ञान संभव

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय एवं श्यामा मंदिर न्यास समिति के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को विविध धर्म व अध्यात्म विषय पर कार्यशाला हुई।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 01:38 AM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 01:38 AM (IST)
धर्म के पालन से ही आत्मज्ञान संभव
धर्म के पालन से ही आत्मज्ञान संभव

दरभंगा। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय एवं श्यामा मंदिर न्यास समिति के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को विविध धर्म व अध्यात्म विषय पर कार्यशाला हुई। व्याकरण के विद्वान व कुलानुशासक प्रो. सुरेश्वर झा ने कहा कि जिसके धारण करने से स्वयं के साथ-साथ समाज की सत्ता कायम रहे, वही धर्म है। सुर आत्म विषयक तंत्रिका ज्ञान को अध्यात्मवाद कहा जाता है। कहा कि उपनिषद के अनुसार प्रत्येक मानव का परमलक्ष्य आत्म ज्ञान की प्राप्ति होनी चाहिए और यह आत्म ज्ञान धर्म के पालन से ही संभव है। इस तरह आत्म ज्ञान की प्राप्ति का साधन धर्म ही है। मूल रूप से डॉ. झा का कहना था कि विहित कर्म धर्म कहलाता है, जबकि निषिद्ध कर्म अधर्म की श्रेणी में आता है। इसी को दूसरे शब्दों में पुण्य व पाप भी कहा जाता है। इसी क्रम में डॉ. झा ने यह भी सुझाया कि पुण्य व पाप के ज्ञान के लिए शास्त्र का ज्ञान जरूरी है। महर्षि पतंजलि ने अपने योग दर्शन में आनेवाले अहिसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जैसे तत्वों को यम की संज्ञा दी है। कहा कि ये सभी धर्म किसी जाति, स्थान, परिवेश, देश व अवसर के लिए नहीं होता है, बल्कि ये तो सभी के लिए मान्य हितकारी व ग्राह्य है। स्वयं एवं समाज को सुखी रखने के लिए धर्म का पालन करते हुए आत्म चितन जरूर करना चाहिए।

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प्रबंधक डॉ. चौधरी हेमचन्द्र राय के संचालन में संपन्न कार्यशाला में धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. पुरेन्द्र वारिक, डॉ. रमेश झा, डॉ. राजेश्वर पासवान, दयाकांत मिश्र, विनोद कुमार समेत कई भक्तजन मौजूद थे।

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