भारतीय संविधान जनता की आस्था का प्रतीक : कुलपति
राष्ट्रीय सेवा योजना के तत्वावधान में भारतीय संविधान दिवस के मौके पर गुरुवार को ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सभागार में भारतीय संविधान की प्रस्तावना वाचन एवं प्रस्तावना के वैचारिक मूल्यों पर विचार गोष्ठी रखा गया।
दरभंगा । राष्ट्रीय सेवा योजना के तत्वावधान में भारतीय संविधान दिवस के मौके पर गुरुवार को ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सभागार में भारतीय संविधान की प्रस्तावना वाचन एवं प्रस्तावना के वैचारिक मूल्यों पर विचार गोष्ठी रखा गया। कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने सभागार में मौजूद शिक्षकों पर विवि अधिकारियों को संविधान की प्रस्तावना की शपथ दिलाई। कहा कि कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी। सदियों रहा है दुश्मन, दौर- ए-जमां हमारा। भारतीय संविधान आज 71वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है लेकिन आज भी भारतीय संविधान अविचल स्थिर और भारतीय जनता की आस्था और आकांक्षा का प्रतीक बना हुआ है। भारतीय संविधान तीन खंभों कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका पर खड़ा है। भारत जैसे देश में सरकार के तीन खंभों को संतुलित करने के लिए मीडिया हमेशा सजग रहा है, जो तीनों अंगों को अपनी सीमा और मर्यादा में रहने को विवश करता है। इसीलिए पत्रकारिता को प्रजातंत्र का चतुर्थ स्तंभ कहा गया है। भारत का संविधान राष्ट्र की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने में पूरी तरह सक्षम रहा है और संविधान के स्थायित्व का सबसे बड़ा कारण भी यही है। प्रतिकुलपति प्रो. डॉ. सिन्हा ने कहा कि भारतीय संविधान के स्थायित्व का सबसे बड़ा कारण संविधान संशोधन है। अब तक संविधान में 114 संशोधन हो चुके हैं। समय और युग परिवर्तन की मांग के कारण संविधान में परिवर्तन देश की जनता की आस्था को और मजबूत करता है। संविधान की प्रस्तावना में बंधुता शब्द सभी भारतीय को भावात्मक एकता और अखंडता के सूत्र में जोड़े रखती है। प्रो. अनिल कुमार झा ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का दर्पण है इसमें संपूर्ण भारतीय सभ्यता और संस्कृति का चित्र उत्कीर्ण है। भारत के संविधान की प्रस्तावना का ड्राफ्ट पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तैयार किया था जो अमेरिका के संविधान की प्रस्तावना पर आधारित है। हमारे देश के संविधान निर्माताओं ने भारत की प्राचीन संस्कृति से लेकर अद्यतन तक के मूल्यों, आदर्शों, मर्यादाओं और उदार चित्र को समाहित किया है। कुलसचिव प्रो. मुश्ताक अहमद ने कहा कि 26 नवंबर 1949 का दिन ऐतिहासिक रहा है। इस दिन ही भारत के विशाल संविधान को पूरा किया गया। प्रस्तावना भारतीय नागरिकों के अधिकारों का विशाल कोश है इसमें 1976 के 42 वें संशोधन में पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़कर और भी अधिक प्रासंगिक बनाया गया है। राजनीति विज्ञान के प्रभारी अध्यक्ष प्रो. मुनेश्वर यादव ने कहा कि भारत का संविधान विशिष्ट और व्यापक है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने कर्तव्यों के प्रति सजग और सचेत रहेंगे, तभी संविधान के प्रति हमारी आस्था और भी मजबूत होगी। कार्यक्रम में विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. शीला, सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष डॉ. गोपी रमण सिंह, ललित कला संकायाध्यक्ष डॉ. पुष्पम नारायण, हिदी विभागाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र साह, संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. जीवानंद झा, पूर्व संकायाध्यक्ष डॉ. लावण्या कीर्ति सिंह काव्या, अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. हिमांशु शेखर, डीडीए के निदेशक प्रो. अशोक मेहता, सहायक निदेशक डॉ. शंभू प्रसाद, वित्त पदाधिकारी सैयद फजले रहमान, उप कुलसचिव प्रथम- डॉ. राजीव कुमार, परीक्षा नियंत्रक डॉ. एसएन राय, गणित विभागाध्यक्ष डॉ.एनके अग्रवाल और एनएसएस समन्वयक डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता मौजूद थे।