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गोदावरी को पद्मश्री की घोषणा से मायके में खुशी की लहर

दरभंगा । मिथिला चित्रकला की प्रसिद्ध शिल्पकार गोदावरी दत्त को पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा होते ही उनक

By JagranEdited By: Published: Mon, 28 Jan 2019 12:56 AM (IST)Updated: Mon, 28 Jan 2019 12:56 AM (IST)
गोदावरी को पद्मश्री की घोषणा से मायके में खुशी की लहर
गोदावरी को पद्मश्री की घोषणा से मायके में खुशी की लहर

दरभंगा । मिथिला चित्रकला की प्रसिद्ध शिल्पकार गोदावरी दत्त को पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा होते ही उनके मायके में खुशी की लहर छा गई। बहादुरपुर स्थित उनके मायके में लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं है। गोदावरी के सम्मानित होने से सब गर्व कर रहे हैं। लोगों ने कहा कि दरभंगा की बिटिया ने अपने हुनर से सबों को गर्व करने का मौका दिया है। गोदावरी दत्त के पिता रास बिहारी दास व माता सुभद्रा देवी स्वर्गवासी हो चुके हैं। दो भाई जगदीश चंद्र दास व सतीश चंद्र दास भी स्वर्गवासी हो चुके हैं। दोनों भाईयों के आठ पुत्रों में सात बाहर रहते हैं। केवल सुधीर चंद्र दास रेलवे की नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद अपनी पत्नी गायत्री देवी, पुत्र राजीव रंजन, पुत्रवधु वीणा दास व दो पोतियों के साथ यहां रहते हैं। अपनी बुआ को पद्मश्री की घोषणा से सुधीर काफी खुश थे। उन्होंने कहा कि उनकी बुआ को तो पहले भी कई अवार्ड मिल चुके हैं। राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी हैं। राज्य सरकार भी लाइफ टाइम अचिवमेंट अवार्ड दे चुका है। लेकिन, पद्मश्री पुरस्कार मिलने वाकई में गौरव की बात है। उन्होंने पूरे परिवार का मान बढ़ाया है। अपने पिता व चाचा को स्मरण करते हुए सुधीर ने कहा कि यदि आज वे दोनों ¨जदा होते तो अपनी बहन की इस उपलब्धि पर नाज करते। गोदावरी की पीढ़ी का अब कोई ¨जदा नहीं है। उनके मायके में भी दुसरी व तीसरी पीढ़ी के लोग है, लेकिन सबके मन में उनके लिए अपार स्नेह व श्रद्धा है।

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मां से मिली मिथिला चित्रकला की प्रेरणा :

गोदावरी दत्त को मिथिला चित्रकला की प्रेरणा अपनी मां स्व. सुभद्रा देवी से विरासत में मिली। गोदावरी की बहन शशिकला भी मिथिला चित्रकला की प्रसिद्ध कलाकार हैं। दोनों बहनों का ससुराल मधुबनी जिला में ही है। गोदावरी की शादी मधुबनी के रांटी में हुई, जबकि शशिकला का ससुराल चकदह में है। मां सुभद्रा बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी। मिथिला चित्रकला, भित्ती चित्र, मूर्तिकला, सिक्की कला, सब में वे पारंगत थी। बचपन से ही माहौल मिला तो गोदावरी व शशिकला भी इस हुनर में रमती चली गई। मां की कला को दोनों बेटियों ने परवान चढ़ाया। ग्रामीण परिवेश से निकल कर देश-विदेश तक इस कला को पहुंचाने और उसकी ख्याति बढ़ाने के साथ ही अपनी मातृभूमि को भी गोदावरी गौरवान्वित कर रही हैं।

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जीवन के संघर्ष से खिला सफलता का फूल :

1930 में बहादुरपुर में जन्मी गोदावरी का जीवन बचपन से ही संघर्षपूर्ण रहा। बचपन में होश संभालते ही पिता का साया सर से उठ गया। बारह वर्ष की अवस्था में रांटी के स्व. उपेंद्र दत्त से शादी हो गई। कुछ सालों बाद पति ने नेपाल से चिट्ठी भेजी जिसमें उन्होंने दूसरी शादी करने की जानकारी दी। इसके बाद तो गोदावरी बिल्कुल अकेली हो गई। ऐसी स्थिति में गोदावरी को अगर कोई सहारा मिला तो बस अपनी कला का जिसने उन्हें देश-विदेश में मान-प्रतिष्ठा दिलायी। आज अपने कला की बदौलत गोदावरी ने संघर्षपूर्ण जीवन में सफलता के फूल खिलाए हैं। 1970-71 में भारत सरकार के प्रतिनिधि भाष्कर कुलकर्णी और उपेन्द्र महारथी इस कला पर शोध कर रहे थे और इस सिलसिले में वे रांटी स्थित गोदावरी के घर भी गए थे। उस दौरान तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र इस कला को दुनिया के सामने लाने को प्रयासरत थे और इसके प्रचार-प्रसार के लिए कलाकारों की खोजबीन की जा रही थी। उसी दौरान पहली बार इस कला की मुंबई में प्रदर्शनी लगी। उसके बाद मधुबनी में हैंडीक्राफ्ट कार्यालय खोला गया और उस वक्त की प्रमुख कलाकार स्व. जगदम्बा देवी को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया जिससे कलाकारों का उत्साहवर्धन हुआ। इतना सब होने पर गोदावरी के अंदर भी हलचल हुई, क्योंकि वे तो शुरू से ही इस कला में दक्ष थी। गोदावरी अपने जीवन के सूनेपन को भरने के लिए पें¨टग बनाने लगी। हैंडीक्राफ्ट बोर्ड के असिस्टेंट डायरेक्टर एचपी मिश्रा का काफी सहयोग मिला और गोदावरी की पें¨टग बिकने लगी। 1970 से 77 तक हर साल गोदावरी को बिहार सरकार से लगातार सात पुरस्कार मिले। उसके बाद गोदावरी के जीवन को एक दिशा मिल गई, एक मकसद मिल गया। गोदावरी के जीवन का अंधेरा छंट चुका था और वह अपने दुखों को भूलने को भूल जीवन में आगे बढ़ने में जुट गई।

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चार दर्जन से अधिक पुरस्कार प्राप्त कर चुकी :

मिथिला चित्रकला के क्षेत्र में अपने पूरे जीवन को समर्पित करने वाली गोदावरी अब तक चार दर्जन से अधिक पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है। देश से लेकर विदेशों तक इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। 1773 में इन्हें बिहार राज्य दक्ष शिल्पी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। चेतना समिति ने 1975 में ताम्रपत्र भेंट किया। 1980 में तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजी गईं। कामेश्वर ¨सह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय ने भी 1973 में इन्हें सम्मानित किया। 1985 में जर्मनी के ब्रेमल में इन्हें प्रशस्ति पत्र दिया गया। इसके अलावा जापान के टायमा व फुकोरराई में भी गोदावरी को उनकी कला के लिए सम्मानित किया गया। देश के कई राज्यों की ओर से इन्हें सम्मान व प्रशस्ति पत्र दिए गए। 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हाथों शिल्प गुरू सम्मान प्रदान किया गया। 2014 में बिहार कला पुरस्कार के तहत लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार मिला।


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