व्यवस्था के अभाव में प्रावधान की अनदेखी
खेलना बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है। स्कूलों में इसके लिए आठवीं घंटी का प्रावधान किया गया है।
दरभंगा। खेलना बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए जरूरी है। स्कूलों में इसके लिए आठवीं घंटी का प्रावधान किया गया है। लेकिन व्यवस्था के अभाव में सबकी अनदेखी की जा रही है। स्कूल में खेल के नाम पर लूडो या अंतराक्षी कराकर ही आठवीं घंटी की इतिश्री कर दी जाती है। फुटबॉल, बैड¨मटन, कबड्डी में रुचि रखने वाले बच्चों को यदि लूडो खेलने के लिए बाध्य किया जाए तो उनकी मनोदशा को समझा जा सकता है। कई स्कूलों में मैदान या प्रांगण की कमी वास्तविकता है। लेकिन उन स्कूलों में भी खेल के लिए निर्धारित आठवीं घंटी का सही से पालन नहीं हो रहा है, जहां संसाधन मौजूद हैं। जबकि अभावग्रस्त स्कूलों में भी बच्चों के खेलने की वैकल्पिक व्यवस्था होनी ही चाहिए। गुरुवार को राजकीयकृत मध्य विद्यालय राजेंद्रपुरी शाहसुपन का जायजा लेने पर पता चला कि बच्चे फुटबॉल खेलना पसंद करते हैं लेकिन खेलने के लिए लूडो दिया जाता है। यहां की कई छात्राओं को बैड¨मटन और फुटबॉल की अच्छी समझ है। स्कूल में खेल की घंटी में अंतराक्षी खेलकर ही समय निकाल रही हैं। कई छात्र क्रिकेट और हॉकी खेलना पसंद करते हैं लेकिन स्कूल में गीत गाकर ही अपना काम चला रहे हैं। स्कूल में खेलने की जगह है नहीं और आस पड़ोस में मैदान की कमी इनकी सदिच्छा पर भारी पड़ जाती है। यही कारण है कि आठवीं घंटी को बजाकर ही काम निकाल लिया जाता है।
बच्चों ने कहा--खेल की घंटी में गाना गाकर चलाते हैं काम
खेलना किसको अच्छा नहीं लगता। लेकिन, स्कूल में संसाधनों का अभाव सब पर भारी पड़ जाता है। स्कूल में खेलने की घंटी में गाना गाकर काम चलाना पड़ता है।
शाहिद इकबाल, कक्षा 8 मेरा पसंदीदा खेल कबड्डी है। कई बार अपने दम पर टीम को जिताया भी है। स्कूल में मैदान की कमी के कारण खेल की घंटी बर्बाद हो जाती है।
वीर कुमार, कक्षा 8 मोहल्ले के दोस्तों के साथ बैड¨मटन खेलते हैं। स्कूल में यदि खेलने की जगह होती तो और भी अच्छी तरह से प्रैक्टिस करने का अवसर मिल जाता।
चंदन कुमार, कक्षा 8 फुटबॉल खेलना अच्छा लगता है। घर पर मिलने वाले थोड़े समय में पूरा नहीं खेल पाते। स्कूल में यदि व्यवस्था होती तो पढ़ाई के साथ-साथ खेल में और भी अच्छा करने का अवसर मिल जाता।
विशाखा कुमारी, कक्षा 7 कोट
स्कूल में मैदान के अभाव में बच्चे खेल नहीं पाते। जिससे उसका मानसिक विकास बाधित होता है। व्यवस्था की कमी का कुछ तो असर इन बच्चों पर हो ही रहा है। कुछ वैकल्पिक व्यवस्था होनी ही चाहिए, इसपर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
-हरिराम प्रसाद, प्रधानाध्यापक, राजकीयकृत मध्य विद्यालय राजेंद्रपुरी, शाहसुपन।