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जीवन रक्षा के लिए जरूरी है जल प्रबंधन : प्रो. जीतेंद्र नारायण

दरभंगा। धड़ल्ले से हो रही वृक्षों की कटाई और जल संसाधन के पारंपरिक स्त्रोतों के संरक्षण में प्रशासनिक एवं सामाजिक स्तर पर हो रही अनदेखी के कारण जल संकट राष्ट्रीय स्तर पर भयावह रूप लेता जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Nov 2019 01:12 AM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 01:12 AM (IST)
जीवन रक्षा के लिए जरूरी है जल प्रबंधन : प्रो. जीतेंद्र नारायण
जीवन रक्षा के लिए जरूरी है जल प्रबंधन : प्रो. जीतेंद्र नारायण

दरभंगा। धड़ल्ले से हो रही वृक्षों की कटाई और जल संसाधन के पारंपरिक स्त्रोतों के संरक्षण में प्रशासनिक एवं सामाजिक स्तर पर हो रही अनदेखी के कारण जल संकट राष्ट्रीय स्तर पर भयावह रूप लेता जा रहा है। पग-पग पोखर की संस्कृति के लिए विश्व विख्यात मिथिला क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। उक्त बातें तीन दिवसीय मिथिला विभूति पर्व समारोह के दूसरे दिन सोमवार को जल प्रबंधन मिथिला विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में राजनीति विज्ञान के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. जितेंद्र नारायण ने कही। संगोष्ठी के संयोजक मणिकांत झा के संचालन में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता एमएलएसएम कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. विद्यानाथ झा ने की। महापौर बैजयंती देवी खेड़िया एवं विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने आगत अतिथियों के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर संगोष्ठी का विधिवत शुभारंभ की उदघाटन भाषण में महापौर खेड़िया ने विद्यापति सेवा संस्थान द्वारा इस ज्वलंत विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित किए जाने को उपयोगी और समयानुकूल बताते हुए संस्थान परिवार से सेमिनार में छनकर आनेवाले विचारों से नगर निगम को अवगत कराने का आग्रह किया, ताकि वह उसका अनुपालन कर जल संरक्षण के बेहतर निदान खोजने में सफल हो सकें। उन्होंने निगम द्वारा जल संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की भी विस्तार से चर्चा की। संस्थान के महासचिव डॉ. बैजू ने मिथिला क्षेत्र के पारंपरिक जल संरक्षण स्त्रोतों की विस्तार से चर्चा करते हुए इसके संरक्षण के लिए प्रशासन और समाज के लोगों को एक साथ कदम से कदम मिलाकर संकट का निदान खोजने की अपील की। उन्होंने इस बात का खासतौर पर जिक्र किया कि किस प्रकार मिथिला के पुरातन समाज ने पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षों को धर्म से जोड़ कर इसके अस्तित्व की रक्षा के लिए कदम उठाएं। उन्होंने पुरखों के बनाए नियमों के उल्लंघन पर चिता जाहिर की। डीएमसीएच के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. ओमप्रकाश ने जल प्रबंधन के चिकित्सकीय कारकों की विस्तार से चर्चा करते हुए जल बचत के अनेक उपाय सुझाए। वरिष्ठ पत्रकार विष्णु कुमार झा ने मानव जीवन में जल के महत्व की चर्चा करते हुए समुचित जल प्रबंधन के लिए भौतिकवादी एवं सुख-सुविधावादी सोच से परहेज करने की सलाह दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. विद्यानाथ झा ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण मिथिला क्षेत्र में अनावृष्टि एवं अतिवृष्टि एक नई समस्या बनकर सामने आई है, जिसके कारण वह कभी बाढ़ तो कभी सुखार का दंश झेलने को मजबूर हो रहा है। उन्होंने मिथिला के जल प्रबंधन की बदहाल स्थिति के लिए बांधों के निर्माण को महत्वपूर्ण बताते हुए जल को बांधने की नीति पर पुनर्विचार किए जाने को समय की जरूरत बताया। संगोष्ठी के लिए प्राप्त सभी आलेखों को पुस्तक आकार में कर कार्यक्रम में विमोचन किया गया। संगोष्ठी के लिए प्राप्त कुल 30 आलेखों में से करीब दो दर्जन आलेखों का वाचन प्रतिभागियों द्वारा किया गया। आलेख के माध्यम से पंडित विष्णु देव झा विकल ने जहां जल के मायके के रूप में मिला को इंगित किया, वहीं डॉ. महेंद्र नारायण राम ने मिथिला के धार्मिक कार्यों में इसके संरक्षण के लिए निहित लोकाचारों की ओर ध्यान खींचा। डॉ. सत्येन्द्र कुमार झा ने जल संरक्षण पर स्वरचित कविता पढी तो सुधीर कुमार ने निरंतर प्रयास को जल संसाधन के संरक्षण के लिए जरूरी बताया। नीलम झा ने मिथिला की परंपरा में निहित समाधानों की विस्तार से चर्चा की। आभा झा ने जल संकट से उबरने के उपाय सुझाए तो कल्पना झा ने धरोहर तालाबों को संरक्षित किए जाने की ओर ध्यान खींचा। संगोष्ठी में रघुवीर मिश्र, अखिलेश कुमार झा, पुतुल प्रियंवदा, प्रवीण कुमार झा, अमित मिश्र, विजय कुमार साह, संजीव कुमार मिश्र, शारदानंद सिंह, रामचंद्र राय, गौरीशंकर मिश्र, साहेब ठाकुर आदि ने भी अपने आलेख प्रस्तुत किए। धन्यवाद ज्ञापन स्वागत महासचिव प्रो. जीवकांत मिश्र ने किया। कार्यक्रम में रामकुमार झा, प्रो. चंद्रशेखर झा बूढा भाई, प्रो. चंद्र मोहन झा पड़वा, डॉ. रमेश झा, संतोष कुमार झा, गंधर्व कुमार झा, सौरभ नीतीश आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

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