रमजान के बाद भी बरकरार रखें रोजेदार वाला आचरण
दरभंगा। रमजान का पाक महीना हमें साल भर जीवन बिताने का प्रशिक्षण देता है। इस महीने में हम झूठ नहीं बोलते हैं। बुरे कामों से बचते हैं। नेक काम की ओर बढ़ते हैं। कमजोरों और गरीबों की मदद करते हैं।
दरभंगा। रमजान का पाक महीना हमें साल भर जीवन बिताने का प्रशिक्षण देता है। इस महीने में हम झूठ नहीं बोलते हैं। बुरे कामों से बचते हैं। नेक काम की ओर बढ़ते हैं। कमजोरों और गरीबों की मदद करते हैं। उनको खैरात देते हैं। सदका निकालते हैं। जकात देते हैं। फितरा निकालते हैं। यह सारा काम इंसान से इंसान की हमदर्दी करने वाला है। रोजे का मतलब ही है दूसरों से हमदर्दी जताना। दूसरों की तकलीफ का अहसास करने के लिए ही हम रोजा रखते हैं। मौलाना हुसैन अहमद कासमी ने कहा कि सच्चा रोजेदार वही है जो रमजान के बाद भी अपना रोजेदार वाला आचरण बकरा रखें। रमजान खत्म होने का यह मतलब नहीं है कि हम फिर दुनिया की बुराइयों में उलझ जाएं। हमने अपने जीवन में जो कुछ पाया है वह अल्लाह की देन है। इसमें हमारा धन भी है। भले हम समझे कि इसे हमने अपनी मेहनत से कमाया है। बेशक मेहनत हमने की है। लेकिन इस मेहनत के लिए हमें प्रेरित किया है अल्लाह ने। उनकी प्रेरणा से ही हमने मेहनत की और हमें जो कुछ मिला धन एवं संतान के रूप में वह हमने कुबूल किया है। इस धन में हमारा तो हिस्सा है ही, हमारे बाल बच्चों का भी हिस्सा है। लेकिन ढाई प्रतिशत हिस्सा उन गरीबों का भी है जो भूखे और नंगे हैं। मोहताज हैं, मजबूर हैं, बूढे हैं, यतीम हैं, विधवा हैं। हमारे धन में उनका भी हिस्सा बनता है। हम अपने धन का यदि कुछ प्रतिशत उन गरीबों के लिए निकाल दें तो उनके जीवन में भी खुशहाली आ जाएगी और उनको खुश देखकर हम भी खुश होंगे। इससे हमारे माल में भी बरकत होगी।