प्रखंड बनने के बावजूद लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं
दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय वाली कहावत किरतपुर प्रखंड के संदर्भ में बिल्कुल सटीक बैठता है।
दरभंगा। दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोय वाली कहावत किरतपुर प्रखंड के संदर्भ में बिल्कुल सटीक बैठता है। जिले की सबसे पूर्वी छोर पर बसी घनश्यामपुर प्रखंड की कुल आबादी 84,423 है। आठ पंचायतों का यह प्रखंड कोसी, कमला-बलान, तिलजुगा, गेंहुमा आदि नदियों की बाढ़ से त्रस्त है। भौगोलिक रूप से जिला का सबसे दुरूह प्रखंड है। किरतपुर प्रखंड की सीमा मधुबनी, सहरसा तथा सुपौल जिला से मिलती है। यह प्रखंड शत प्रतिशत बाढ़ से प्रभावित है। आधे दर्जन से अधिक गांव कोसी नदी के पूर्वी व पश्चिमी तटबंध के बीच बसे हैं। अमृतनगर, सिरनियां, रघुनाथपुर, वर्दीपुर, ककोरबा, रामखेतरिया आदि गांवों के लोग कोसी तथा तिलजुगा नदी की मार से त्रस्त हैं। बाकी गांव कोसी पश्चिमी तटबंध तथा कमला-बलान पूर्वी तटबंध के बीच बसे हैं। दोनों तटबंधों के बीच बसे किरतपुर, झगरूआ, तरबाड़ा, कुबौल ढांगा, जमालपुर पंचायत के दर्जनों गांव साल में 6 माह पानी में डूबे रहते हैं। दोनों तटबंध के बीच होकर बह रही गेंहुमा नदी कोढ में खाज पैदा कर रही है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि किरतपुर प्रखंड का कैंप कार्यालय घनश्यामपुर में संचालित है। जिससे वहां के लोगों को 20 किलोमीटर चलकर प्रखंड मुख्यालय आना पड़ता है। थाना जमालपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र किरतपुर में है। जिससे छोटे-मोटे कार्य के लिए भी लोगों को भारी असुविधा हो रही है। कुल मिलाकर किरतपुर के लोगों की दिनचर्या और रास्ते दोनों कठिन है। बोले जनप्रतिनिधि
उपप्रमुख राम प्रकाश राय का कहना था कि 20से 25 किमी की दूरी तय कर
कैंप कार्यालय घनश्यामपुर कार्यालय आना पड़ता है। अगर किरतपुर प्रखंड कार्यालय झगरूआ
में हो जाए तो चोरों ओर के लोगों को सुविधा होगी। खासकर
महिलाओं को। जिप सदस्या पूनम देवी का कहना है कि कैंप कार्यालय घनश्यामपुर में चलने से किरतपुर प्रखंड क्षेत्र के लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि उस क्षेत्र के लोगों को आवासीय या कोई भी प्रमाण
पत्र बनवाने के लिए 10 से 15 कि.मी. की दूरी तय करनी पड़ती है।