कोरोना वायरस के प्रकोप से बदलेगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तस्वीर
दरभंगा। कोरोना वायरस ने ना केवल लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित कर दिया है बल्कि स्थापित व्यवस्था पर भी इसका गहरा चोट पड़ रहा है।
दरभंगा। कोरोना वायरस ने ना केवल लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित कर दिया है, बल्कि स्थापित व्यवस्था पर भी इसका गहरा चोट पड़ रहा है। आने वाले समय में इसके कई परिणाम सामने आने की संभावना जताई जा रही है। विशेषकर, अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस के असर को लेकर विशेषज्ञ चितित हैं। एक माह से अधिक समय से पूरे देश में लॉकडाउन लागू है। आर्थिक गतिविधियां ठप हैं। बैंक खुले तो हैं, लेकिन उनमें जमा कर, निकासी अधिक हो रही है। शहरों में व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद पड़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थिति बेहतर नहीं। ऐसे में आर्थिक मंदी से इन्कार नहीं किया जा सकता। आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि लॉकडाउन लंबा चला तो अर्थव्यवस्था औद्योगिक या आर्थिक मंदी का शिकार होगा। इसका परिणाम यह होगा के कामगारों के रोजगार छिनेंगे। देश के विभिन्न कोनों में इसकी शुरुआत भी होती दिख रही है। कई महानगरों से ऐसी सूचनाएं मिल रही हैं कि निजी कंपनियों में काम करने वाले कई कर्मियों को लॉकडाउन के कारण ना केवल अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ गया है, बल्कि कई को वेतन नहीं मिल रहे हैं। स्वाभाविक है कि इस स्थिति में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अचानक से भार बढ़ सकता है। कृषि जैसे परंपरागत पेशे के साथ-साथ गांवों में पशुपालन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन, फूलों की खेती जैसे कामकाज के प्रति लोगों का व्यावसायिक रुझान बढ़ेगा।
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगा बल :
आर्थिक मामलों के जानकार प्रो. अनिल कुमार झा का कहना है कि वर्तमान स्थिति ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर साबित हो सकती है। लॉकडाउन के कारण लोगों का अपने गांवों से जुड़ाव बढ़ा है। पहले लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे थे, लेकिन इस वैश्विक संकट के दौर में लोग शहरों से अपने गांवों की ओर जा रहे हैं। अगर हालात ऐसे ही चले या यह लॉकडाउन लंबा चला तो गांवों की ओर लोगों का झुकाव और बढ़ेगा। इससे ग्रामीण स्तर पर आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होगी। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा। गांवों में ना केवल खेती बढ़ेगी, बल्कि उसके सहायक पेशों में भी लोगों का रूझान बढ़ेगा। अनाज या खाद्य सामग्री की पैकेजिग और खाद्य प्रसंस्करण का काम भी गांवों में बढ़ेगा। इसके चलते गांवों से पलायन और शहरीकरण की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ सकती है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था में गांवों की हिस्सेदारी बढ़ेगी।
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नई योजनाएं बनाने में जुटे युवा :
लॉकडाउन के चलते जिले में बड़ी संख्या में प्रवासी घर लौट आए हैं। ऐसे लोग जो कभी गांव नहीं आते थे, वे भी गांव की ओर उन्मुख हैं। लॉकडाउन टूटने के बाद भी स्थिति तुरंत नहीं सुधरनेवाली है। लोग इस बात को बखूबी समझ रहे हैं। यही कारण है कि अब ये परदेस नहीं जाना चाहते, बल्कि गांव में ही रहकर खुद का व्यवसाय करना चाहते हैं। पढ़े़ लिखे नौजवान भी भविष्य की योजना बना रहे हैं। कई तो स्टार्टअप के जरिए नई जिदगी शुरू करना चाहते हैं। बेनीपुर के युवा रोहित कुमार, गंगेश ठाकुर, सुजीत सिंह, बहादुरपुर के अमित कुमार, अमरेश प्रसाद आदि का कहना है कि गांव में रोजगार की कमी नहीं है। कमी है योजनाओं की व उसे अमल में लाने वाले लोगों की। कम पूंजी में कई कुटीर उद्योग संचालित किए जा सकते हैं। विशेषकर खाद्य सामग्रियों की पैकेजिग व खाद्य प्रसंस्करण का काम किया जा सकता है। खाद्य सामग्रियों के स्टोरेज का काम भी बढ़ाया जा सकता है। पशुपालन में भी काफी संभावनाएं हैं। इन युवाओं का कहना है कि नई संभावनाओं पर विचार चल रहा है। कोशिश यही है कि अब गांव में रहकर ही जीविकोपार्जन के साधन तलाशे जाएं।
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