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उच्च शिक्षा और किसानी में हांफ रही व्यवस्था

कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। चुनाव आते ही कृषकों के लिए वादों की झड़ी लग जाती है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 12:36 AM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 06:46 AM (IST)
उच्च शिक्षा और किसानी में हांफ रही व्यवस्था
उच्च शिक्षा और किसानी में हांफ रही व्यवस्था

दरभंगा। कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। चुनाव आते ही कृषकों के लिए वादों की झड़ी लग जाती है। लेकिन चुनाव खत्म होने के साथ ही ज्यादातर वादे भूला दिए जाते हैं। सरकारी आंकड़े के अनुसार, तारडीह प्रखंड में 3500 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। कृषक जी तोड़ मेहनत कर अनाज उपजाते हैं। लेकिन बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदा से किसानों का पीछा नहीं छूटता है। खेती के लिए न तो समुचित पटवन की व्यवस्था है न कोई वैकल्पिक सुलभ साधन। निजी स्त्रोतों पर पूरी तरह निर्भरता है। किसान क्षेत्र से बहने वाली कमला नदी से बाढ़ की विभीषिका तो झेलते हैं पर सिचाई का लाभ नहीं उठा पाते। नहरें नहीं हैं, इस कारण खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता। बात जब उच्च शिक्षा की आती है तो यहीं कृषक अपने पाल्यों को शहर की महंगी शिक्षा देने में खुद को असमर्थ महसूस करते हैं। बड़ा मुद्दा में तारडीह की उच्च शिक्षा एवं सिचाई के संसाधनों की पड़ताल करती अमित कुमार की रपट।

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दो को छोड़ सभी स्लुइस गेट अनुपयोगी

कमला नदी के पश्चिमी तटबंध में सात स्लुइस गेट पोखरभिडा, गौरीचौर, ककोढा, विष्णुपुर, देवना पूर्वी व पश्चिमी तथा ठेंगहा में लगा है। पोखरभिडा एवं विष्णुपुर को छोड़ दिया जाए तो सभी स्लुइस गेट अनुपयोगी साबित हो रहा है। गाद से गेट स्थल पूरी तरह से जाम हो गया है। ग्रामीणों ने बताया कि देवना पूर्वी भाग का स्लुइस गेट 1992 की बाढ़ में बह गया। इसके बाद निर्माण नहीं हुआ। पश्चिमी भाग के गेट को पूरी तरह बंद कर दिया गया।पहले नदी में पानी आने के दौरान इन गेटों के फाटक को खोल दिया जाता था जिससे पानी अलीनगर और घनश्यामपुर में खेतों तक पहुंचती थी। समुचित देखरेख के अभाव में स्लुइस गेट अनुपयोगी हो गए हैं। हालांकि कुछ गेटों की मरम्मत हुई जो नाकाफी है। आठ राजकीय नलकूप कबाड़ में तब्दील :

कहने को तो प्रखंड में आठ राजकीय नलकूप हैं। सभी जर्जर होकर कबाड़ में तब्दील है। नदियामी के ग्रामीणों का कहना है कि यहां के नलकूप का उदघाटन ही हुआ, उससे कभी एक बूंद पानी नहीं निकला। महथौर में राजकीय नलकूप के लिए बने पईन का अतिक्रमण कर सड़क निर्माण कर लिया गया है। महथौर, ठेंगहा, कठरा, पोखरभिडा, लगमा और नदियामी में एक-एक और बैका में दो राजकीय नलकूप बंद हालत में है। इलाके के अकेले महाविद्यालय का अस्तित्व हो गया समाप्त :

1979 में कुर्सो नदियामी में भूपतारा चंद्रशेखर चौधरी महाविद्यालय की स्थापना हुई। इलाके में यह उच्च शिक्षा का केंद्र था। यहां से निकले सैकड़ों छात्र छात्राएं देश के उच्च संस्थानों में अपनी सेवा दे रहे हैं। अब इस महाविद्यालय का अस्तित्व समाप्त हो गया है। यहां 40 प्रोफेसर एवं लेक्चरर के साथ दस नन टीचिग स्टाफ ग्रामीण परिवेश में छात्र छात्राओं को शिक्षा प्रदान करते थे। महाविद्यालय के सचिव विजयकांत ठाकुर थे। कांग्रेस नेता स्व. ललित नारायण मिश्र के प्रतिनिधि चंद्रशेखर चौधरी ने महाविद्यालय की स्थापना की थी।

1986 में इसे स्वतंत्र इंटरमीडिएट महाविद्यालय की मान्यता मिली। उस दौरान संयुक्त बिहार में मान्यता प्राप्त कॉलेजों में इसका तीसरा स्थान था। यहां कला, विज्ञान एवं वाणिज्य विषयों की पढ़ाई होती थी। राज्यपाल के नाम से 9 बीघा जमीन की रजिस्ट्री की गई थी। पहले प्रधानाचार्य राधाकांत झा थे। सत्र 90-92 ,91-93, 92-94 में होम सेंटर के साथ-साथ कोरथू महाविद्यालय का सेंटर यहां हुआ था। मुख्यालय से जांच टीम महाविद्यालय का निरीक्षण करने आई। प्रयोगशाला, पुस्तकालय एवं समुचित भवन का अभाव बताकर मान्यता रद कर दी गई। मान्यता बहाल करने को लेकर दौड़ धूप हुई। लेकिन लालफीताशाही के आगे किसी की कुछ नहीं चली।

उच्च शिक्षा को लेकर कोई जनप्रतिनिधि आवाज नहीं उठाते हैं। भूपतारा चंदशेखर महाविद्यालय जमींदोज हो गया। कभी तारडीह प्रखंड ही नहीं बल्कि पूरे अलीनगर विधानसभा क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को इसका लाभ मिलता था, अब यह इतिहास की बातें हो गई।

--रौशन झा, नदियामी। कभी इस महाविद्यालय का स्वर्णिम समय था, जब योग्य शिक्षकों द्वारा यहां शिक्षा दी जाती थी। इसका लाभ ग्रामीण क्षेत्र के छात्र छात्राओं को मिलता था समय के साथ इसमें प्रगति होनी चाहिए पर यह आज जमींदोज हो गई है।

--डॉ. एसके झा, दंत चिकित्सक। इस महाविद्यालय से निकले छात्र-छात्राएं देश के कई प्रतिष्ठानों में कार्यरत हैं। लेकिन महाविद्यालय अपने अस्तित्व को बचाने के लिए उद्धारक की बाट जोह रहा है। मगर फिलहाल उम्मीद की रोशनी नहीं दिख रही है।

--रेवती चौधरी, नदियामी किसानों की बात तो सभी करते हैं पर उनकी समस्या का समाधान करने का प्रयास जमीनी स्तर पर नगण्य है। किसान बाढ़ और सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहे हैं। बगल में बहने वाली कमला नदी सिर्फ बाढ़ की विभीषिका के लिए जानी जाती है।

--हरि पासवान, ठेंगहा कमला नदी के पश्चिमी तटबंध में आठ स्लुइस गेट का निर्माण हुआ। देखरेख के अभाव में सभी ध्वस्त हो गए हैं। नहर की सुविधा नहीं होने के कारण किसानों को पटवन का लाभ नहीं मिल पाता। इस बार यह चुनावी मुद्दा होगा।

--लखन पासवान, कुर्साे मछैता। महाविद्यालय में छात्र-छात्राओं की काफी संख्या रहती थी। खासकर छात्राओं को काफी फायदा होता था। वेतन के अभाव में भी शिक्षक यहां शैक्षणिक कार्य में लगे रहते थे।

- अशोक झा, नदियामी।


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