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डॉ. मदन मोहन झा को समर्पण से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की मिली कुर्सी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री डॉ. मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने पर मिथिलांचल में हर्ष का माहौल है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 01:32 AM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 01:32 AM (IST)
डॉ. मदन मोहन झा को समर्पण से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की मिली कुर्सी
डॉ. मदन मोहन झा को समर्पण से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की मिली कुर्सी

दरभंगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री डॉ. मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने पर मिथिलांचल में हर्ष का माहौल है। मिथिलांचल की हृदय स्थली दरभंगा से पहली बार किसी व्यक्ति को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनने से लोगों में काफी प्रसन्नता है। समझा जाता है कि पीढ़ी से कांग्रेसी एवं सदा पार्टी के प्रति समर्पित होने के कारण डॉ. झा को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। वैसे इससे पहले भी कई बार वे इस कुर्सी की दौड़ में रहे हैं। लेकिन, ब्राह्मण होना ब्रेकर बनकर खड़ा रहा। देश में राजनीतिक परि²श्य बदला तो अध्यक्ष की कुर्सी पाने में कामयाब रहे। इस बार जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने डॉ. झा के कंधे पर विपरीत परिस्थिति में यह जिम्मेदारी दी है उससे आने वाले समय में कांग्रेस को निश्चित रूप से लाभ होने वाला है। स्वाभाव से शालीन और अपने कर्तव्य के प्रति सदा समर्पित रहने के कारण जो उपलब्धि उन्हें मिली है उससे यहां के कांग्रेसी सहित आम लोगों में जान आ गई है। अभी से ही कई लोग मानने लगे हैं कि खासकर मिथिलांचल में आने वाले समय में इसका लाभ कांग्रेस को मिलेगा। मदन कांग्रेस के लिए संजीवनी बनेंगे। इनके माध्यम से कांग्रेस ने अपने खोये जनाधार की जोड़ेगी। डॉ. झा के पिता डॉ. नागेंद्र झा कांग्रेस के कदावर नेता रहे हैं। प्रदेश में कई बार मंत्री बने। लेकिन, शिक्षा मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल काफी चर्चित रहा। नारी शिक्षा के प्रति काफी संवेदनशील रहे स्व. डॉ. झा संयुक्त बिहार में प्रोजेक्ट ग‌र्ल्स हाई स्कूल खोलकर अभी ¨जदा बने हुए हैं। स्व. डॉ. झा 1967 से 1985 तक मनीगाछी विधान सभा के सदस्य रहे। अपने जीवन में स्व. झा को कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा। 1985 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष स्व. राजीव गांधी ने बुजुर्ग नेताओं को टिकट काट दिए। लेकिन, उनके उस समय स्व. झा के पुत्र डॉ. मदन मोहन झा को मनीगाछी से टिकट मिल गया। वे दो टर्म यानी 1985 से 1995 तक मनीगाछी के विधायक रहे। लेकिन, 1995 के चुनाव में ललित कुमार यादव से उन्हें हारना पड़ा।

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समर्पण से मिला सम्मान : पार्टी में पूर्ण समर्पण के कारण ही डॉ. मदन मोहन झा को आज यह सम्मान मिला है।प्रदेश में 2005 के चुनाव में डॉ. झा के ऊपर कांग्रेस छोड़ने का बहुत दबाव था। उनके परिवार से लेकर सभी शुभ¨चतक उन्हें कांग्रेस छोड़ने के लिए कह रहे थे। दूसरी ओर नीतीश कुमार की ओर से भी उन्हें पार्टी में शामिल होकर चुनाव लड़ने को कहा था। लेकिन, डॉ. झा नहीं माने। उनका कहना था कि उनके पिताजी आजीवन कांग्रेसी रहे। अगर वे कांग्रेस छोड़ेंगे तो उनकी आत्मा को कष्ट होगा। फिर उन्होंने भी अपना संपूर्ण जीवन जो इस पार्टी के लिए समर्पित किया था उसका भी कोई महत्व नहीं रहेगा। उनके नहीं मानने पर प्रभाकर चौधरी को जदयू का टिकट मिला। वे जेल में थे। फिर भी 2005 में ललित कुमार यादव को हरा कर वह चुनाव जीत गए। ऐसे में डॉ. झा के समर्थकों को और अफसोस हुआ कि अगर मदन जी चुनाव लड़े होते तो उनकी भी जीत पक्की थी। लेकिन, डॉ. झा को थोड़ा भी इसके लिए अफसोस नहीं था। वे उसी तरह कमजोर हो रही कांग्रेस में पूरी शक्ति के साथ काम करते रहे। इसका फल प्राप्त होने में भले ही उन्हें करीब 19 साल लगा। वे 2014 के शिक्षक क्षेत्र से पार्टी के टिकट पर वे एमएलसी बने। फिर जदयू से पार्टी के गठबंधन में उन्हें मंत्री पद भी मिला। डॉ. झा करीब दो साल तक राजस्व एवं भूमि सूधार मंत्री रहे।

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एनएसयूआइ से सफर की शुरुआत : एनएसयूआइ से डॉ. झा के राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। इसमें प्रदेश स्तर के पदाधिकारी रहे। इसके बाद युवक कांग्रेस में प्रदेश महासचिव एवं उपाध्यक्ष बनने को अवसर मिला। फिर कांग्रेस में महासचिव, उपाध्यक्ष के साथ ही कार्यकारी अध्यक्ष बनने का मौका मिला।

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