तब लंदन देता था बिहार को चिकित्सक अब दरभंगा के चिकित्सक वहां
दरभंगा। दरभंगा मेडिकल स्कूल ऑफ टेंपल से दरभंगा मेडिकल कॉलेज (डीएमसी) तक इस संस्थान ने क
दरभंगा। दरभंगा मेडिकल स्कूल ऑफ टेंपल से दरभंगा मेडिकल कॉलेज (डीएमसी) तक इस संस्थान ने कई बदलाव देखे हैं। यह आज भी जारी है। मंगलवार को यह अपना 96वा स्थापना दिवस मनाएगा। यह स्थापना दिवस कई मायनों में ऐतिहासिक होगा। अगले आयोजन तक इसके परिसर के 200 एकड़ में एम्स के निर्माण की गतिविधि शुरू हो जाएगी। अभी डीएमसी 227 एकड़ में है। तब इसका आकार छोटा हो जाएगा।
अंग्रेजी हुकूमत के वक्त दरभंगा के तत्कालीन महाराज रामेश्वर सिंह ने 1925 में दरभंगा मेडिकल स्कूल ऑफ टेंपल की स्थापना पुलिस अस्पताल लहेरियासराय में की थी। तब कई चिकित्सक अंग्रेज थे। वक्त के साथ इसका दायरा बढ़ा और इसे कर्पूरी चौक अल्लपट्टी के पास एक बड़े भू-भाग में स्थानांतरित किया गया। 1938 में यह दरभंगा मेडिकल कॉलेज हुआ। रामेश्वर सिंह के पुत्र कामेश्वर सिंह के कार्यकाल में भी कॉलेज खूब फला-फूला। समय के साथ अस्पताल सुविधा संपन्न होता गया। जिस कॉलेज में प्राचार्य और शिक्षक सात समंदर पार लंदन से आते थे, आज वही कॉलेज लंदन को चिकित्सक देने में सक्षम हुआ है। 1978 बैच के तीन चिकित्सक डॉ. संजय चौधरी इंग्लैंड (लंदन) अपनी योग्यता के बूते पहुंचे हैं। उसी बैच के डॉ. अशोक कुमार सिंह व डॉ. मिथिलेश झा अमेरिका में हैं।
देश व राज्य में एनडीए की सरकार बनी तो इस अस्पताल को सुपर स्पेशियलिटी भवन, सर्जिकल भवन, अत्याधुनिक मशीनें उपलब्ध हुईं। लेकिन कॉलेज में शिक्षकों की संख्या घटती गई। नतीजा यहां एमबीबीएस के लिए पहले से निर्धारित 150 सीटें घटकर 120 हो गईं। कुल 22 विषयों की पढ़ाई के लिए वर्तमान में करीब 200 प्रोफेसर हैं। जबकि इनकी संख्या 400 होनी चाहिए।
इस बार की खास बात यह है कि इस समय यहां के प्राचार्य इसी कॉलेज के छात्र रहे डॉ. केएन मिश्रा हैं। प्राचार्य बताते हैं कि 1978 बैच में उन्होंने यहां से पढ़ाई की।
स्थापना दिवस इस बात का साक्षी है कि इसके विशाल परिसर में एम्स की स्थापना को मंजूरी मिली है। सरकारी प्रावधान के मुताबिक एम्स को बनने में घोषणा तिथि से चार साल का वक्त लगना है। जब डीएमसी का 100वां स्थापना दिवस होगा, तब उसके साथ एक नया साथी भी बगल में खड़ा होगा।