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गीत-कविताएं पीड़ा एवं खुशी होने पर मुख से सहसा निकल पड़ता

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा रविवार को अंतरराष्ट्र

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Feb 2021 01:17 AM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2021 01:17 AM (IST)
गीत-कविताएं पीड़ा एवं खुशी होने पर मुख से सहसा निकल पड़ता
गीत-कविताएं पीड़ा एवं खुशी होने पर मुख से सहसा निकल पड़ता

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा रविवार को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि कविता के लिए बहुत प्रयास नहीं करना पड़ता है। कविता, गीत , शायरी आदि स्वयं उत्पन्न हो जाती हैं। गीत एवं कविताएं पीड़ा, वियोग एवं खुशी होने पर मुख से सहसा निकल पड़ता है। जब खुशियां एवं अनुभव पराकाष्ठा पर होती हैं, तो विवेक जागृत होता है। हम देखते हैं की खुशी एवं दर्द दोनों में सामान्यतया कोई भी उक्ति मातृभाषा में ही उभरती है। कहा कि दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. अशोक कुमार मेहता द्वार इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन करना सराहनीय है।बहुभाषाओं के विद्वानों द्वारा कवि गोष्ठी का आयोजन कराकर अछ्वुत संगम का प्रर्दशन किया गया है। सभी विद्वान विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं पदाधिकारी ही हैं कोई पेशेवर कलाकार नहीं। इनकी अछ्वुत कलाओं को सुनने वाले श्रोता भी अछ्वुत हैं। कवि गोष्ठी में मातृभाषा में शिक्षा विषय पर व्याख्यान देते हुए हिन्दी के वरीय प्राचार्य प्रो. चंद्र भानु प्रसाद सिंह ने कहा कि बहुभाषिकता के संरक्षण और संवर्धन के लिए अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 21 फरवरी 1952 को मानी जाती है,जब तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और अभी के बंगला देश में उर्दू की जगह बंगला भाषा लागू करने हेतु हुए आंदोलन में लोग शहीद हुए थे। यूनेस्को ने 1999 में इस तिथि को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया। मातृभाषा में सिद्धांतों की ग्राह्यता सबसे अधिक होती है। बहुत सारे देशों में लोग अपनी मातृभाषा में सारे काम काज करते हैं। भारत में भी यह आवश्यक है। अब तक की सारी शिक्षा नीतियों में मातृभाषा पर जोर दी गई है।

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संस्कृत, हिदी और मैथिली भाषा में प्रतिभागियों ने अपनीअ-पनी रचनाएं प्रस्तुत किए

संस्कृत भाषा में डॉ. संजीत कुमार झा एवं डा जयशंकर झा, हिदी में डॉ. अमरकांत कुंवर एवं डॉ. विभा कुमारी, उर्दू में डॉ. मुश्ताक अहमद एवं प्रो. आफताब अशरफ और मैथिली में डॉ. सत्येंद्र कुमार झा एवं प्रो. अशोक कुमार मेहता ने अपनी- अपनी मातृभाषा में रचित रचनाओं को प्रस्तुत किया। कुलसचिव डॉ. मुश्ताक अहमद ने कोरोना एवं लॉकडाउन अवधि में रचित अपनी रचना आईना हैरान है कविता जिसमें भारतीय संस्कृति की प्रत्येक विधाओं के विशेषज्ञों का वर्णन है को सुनाया। कार्यक्रम का संचालन दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. अशोक कुमार मेहता एवं धन्यवाद ज्ञापन सहायक निदेशक डॉ. अखिलेश कुमार मिश्रा ने किया।

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