लंदन की नौकरी छोड़ बकरी पालन से बना रहे आत्मनिर्भर
दरभंगा। कोरोना काल में लोग नौकरी छूटने से बेरोजगार हैं। सरकार की ओर राहत के लिए टकटकी लगाए हैं।
दरभंगा। कोरोना काल में लोग नौकरी छूटने से बेरोजगार हैं। सरकार की ओर राहत के लिए टकटकी लगाए हैं। लेकिन, सिंहवाड़ा प्रखंड के बनौली और आसपास के गांवों के लोग बकरी पालन से आत्मनिर्भर हो रहे। वे उन प्रवासियों को राह दिखा रहे, जो रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं। यह सब हो रहा यहां के अक्षय वर्मा की बदौलत। वे लंदन की नौकरी छोड़ गरीबों की मदद कर रहे।
उन्होंने कमरौली गांव में पांच माह पहले अच्छे नस्ल की 43 बकरियों से फॉर्म की शुरुआत की थी। अभी उनके पास 110 बकरियां हैं। वे यहां गरीबों को बकरी पालन का निशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। उनकी प्रेरणा से महेंद्र सहनी, जीत सहनी, नंदन कामती, लक्ष्मण कुमार, मो. मुमताज व मनोज चौधरी सहित एक दर्जन लोग इस काम से जुड़ चुके हैं।
इन लोगों का कहना है कि थोड़ी सी जगह में पांच से सात बकरियों से शुरुआत कर सकते हैं। 20 से 25 हजार रुपये पूंजी लगती है। एक वर्ष में बकरी तैयार हो जाती है। साल में दो बार तीन से चार बच्चे देती है। छह माह बाद छह से 10 हजार में बिक्री हो जाती है। 10 बकरियों से पशुपालक सालाना 80 हजार तक आमदनी कर सकते हैं। बकरी का दूध भी 100 से 150 रुपये लीटर तक बिक जाता है।
पटना से भी आते खरीदार : यहां लोग बरबरी, सिरोही और ब्लैक बंगाल सहित अन्य नस्ल की बकरियों का पालन करते हैं। इन्हें नियमित रूप से चना, मकई, खेसारी का दाना व सूखा चारा दिया जाता है। इससे इनका तेजी से विकास होने के साथ वजन बढ़ता है। बकरियों की बिक्री वजन के हिसाब से होती है। साढ़े चार सौ रुपये किलोग्राम बकरी की बिक्री होती है। यहां बेहतर नस्ल की बकरियों के मिलने के चलते पटना, मुजफ्फरपुर और मधुबनी से भी खरीदार आते हैं।
लंदन के यूबीएस इंवेस्टमेंट बैंक में वाइस प्रेसीडेंट की नौकरी वर्ष 2014 में छोड़ अपने गांव आए अक्षय कहते हैं कि बकरी पालन के लिए दो दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है। वे मछली पालन भी करते हैं। इससे दर्जनों लोगों को रोजगार दिया है। उप निदेशक, पशु विकास मध्यम डॉ. प्रेम कुमार झा का कहना है कि सरकार भी बकरी पालन को बढ़ावा दे रही। ऋण की भी सुविधा है। इस व्यवसाय से जुड़ने वाले को विभाग मदद करने को तैयार है।
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