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उम्मीद नहि छल से मरय स पहिले बेटा के मुंह देख पायब...

हायाघाट में बूढ़ी मां के कलेजे को वर्षों बाद सुकून मिलेगा। राह तकते थक चुकी पत्नी अमोला को उसका सुहाग वापस मिल रहा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 12 Sep 2019 01:50 AM (IST)Updated: Thu, 12 Sep 2019 06:29 AM (IST)
उम्मीद नहि छल से मरय स पहिले बेटा के मुंह देख पायब...
उम्मीद नहि छल से मरय स पहिले बेटा के मुंह देख पायब...

दरभंगा । हायाघाट में बूढ़ी मां के कलेजे को वर्षों बाद सुकून मिलेगा। राह तकते थक चुकी पत्नी अमोला को उसका सुहाग वापस मिल रहा है। पिता के प्यार से महरुम छोटे-छोटे बच्चों को आखिरकार अब अपने पिता की छाया नसीब होगी। सब उस पल के इंतजार में पलकें बिछाए बैठे हैं, जब उनका अजीज सतीश वापस घर लौटेगा। सतीश बांग्लादेश की जेल से रिहा होकर वापस आने वाला है, यह खबर मिलने के साथ ही घर-परिवार के साथ ही आस-पड़ोस का माहौल खुशनुमा हो गया है। बूढ़ी मां की पथराई आंखों से सतीश का जिक्र होते ही आंसू की धारा बहने लगती है। सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस घर का लाल पिछले ग्यारह साल से बांग्लादेश की जेल में बंद है, उसके वापसी की खबर उस परिवार के लिए कैसी खुशी लेकर आई होगी। बूढ़ी मां व पत्नी भगवान का शुक्रिया अदा करते थक नहीं रहे। उन दो छोटे-छोटे बच्चों आशिक (13) व भोला (11) को पिता की सरपरस्ती मिलने वाली है। वे अब तक बस कागज पर ही अपने पिता का नाम लिखते रहे हैं, लेकिन पिता की यादें उनके जेहन में नहीं है। दादी व मां के आंसू इन बच्चों को पिता की अहमियत बताते हैं। बच्चे खुश हैं कि अब उनका ख्याल रखने वाला उनका पिता उनके पास आ रहा है जिनके बारे में अब तक बस वे मां व दादी के मुंह से सुनते रहे हैं, अब उन्हें वे अपने सामने देखने वाले हैं। पत्नी अमोला की खुशी का ठिकाना नहीं है। जिले के हायाघाट प्रखंड के अशोक पेपर मिल थाना क्षेत्र के श्रीरामपुर पंचायत के मनोरथा गांव में वार्ड 11 स्थित तुलसीडीह मोहल्ले में सतीश का घर का। सुदूर देहात में जब से यह खबर फैली है कि बांग्लादेश के जेल से अधेड़ सतीश चौधरी रिहा होकर अपने मुल्क आ रहा है, तब से पूरे इलाके में खुशी का माहौल है। सभी के चेहरे पर कौतूहल के भाव हैं और जुबान पर बस सतीश की चर्चा। बता दें कि मनोरथा का सतीश 11 साल पहले गया तो था रोजी-रोटी कमाने के लिए पटना स्थित कदमकुंआ, लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था। वह पहुंच गया बांग्लादेश की जेल में। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। वह भूले-भटके बांग्लादेश पहुंच गया, जहां उसे सलाखों के पीछे रहना पड़ा। इधर, सतीश की मां काला देवी खुशी में कहती हैं, दैनिक जागरण पेपर के प्रयास स आई हमर घर आबि रहल छय। उम्मी नहि छल से मरय स पहिले बेटा के मुंह देखब, पर भगवान हमरा झोली खुशी से भरि देलखिन। सतीश के छोटे भाई मुकेश की माने तो विभागीय औपचारिकताओं को पूरा कर लिया गया है। सारे हालात यथावत रहे तो उम्मीद की जा रही है कि अगले दो-तीन दिनों में सतीश परिजनों के बीच रहेगा। सतीश के दोनों पुत्र अब स्कूल जाने लगे हैं। वे हर दिन अपने पिता की वापसी के लिए भगवान से प्रार्थना करते थे। दोनों बच्चों ने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वे अपने पिता को देख पाएंगे। इस बार दशहरा और दीपावली भी जमकर मनाएंगे। बता दें कि जब सतीश भटककर बांग्लादेश चल गया तो उस समय भोला अपनी मां के गर्भ में ही पल रहा था। जबकि, आशिक पूरी तरह नादान था। इधर, सतीश के साथी संजय कुमार, छेदी दास, उमेश मांझी, ललित मांझी, धर्मेंद्र मांझी, विनोद मांझी, गंगा मांझी, रमेश मांझी, अमरजीत मांझी ने सतीश के साथ-साथ पढ़ाई की दौर को याद करते हुए बताया कि सतीश गांव के मध्य विद्यालय आनंदपुर से सातवीं तक पढ़ा है। उसके बाद उसने आनंदपुर हाईस्कूल में आठवीं क्लास में नाम तो लिखाया, लेकिन गरीबी के कारण वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया। घर के हालात इतने खराब थे कि वह पटना में अपने भाईयों के साथ टेंट का काम करने लगा। सतीश के दोस्त समेत पूरा गांव सतीश के वापसी का इंतजार कर रहा है।

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