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जर्जर भवन में चल रहा जाले का रेफरल अस्पताल, नहीं मिल रहीं उचित स्वास्थ्य सुविधाएं

जाले स्थित रेफरल अस्पताल का ऊंचा भवन बाहर से तो देखने में सुंदर दिखता है लेकिन अंदर से पूरी तरह जर्जर हो चुका है। छतों के टुकड़े जगह-जगह टूट कर गिरते रहते हैं। कई जगहों पर प्लास्टर झड़ चुका है। छत से बारिश के दौरान पानी टपकता है। इन स्थितियों के बीच मरीज अनहोनी की आशंका से भयभीत रहते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Jul 2019 12:35 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jul 2019 06:33 AM (IST)
जर्जर भवन में चल रहा जाले का रेफरल अस्पताल, नहीं मिल रहीं उचित स्वास्थ्य सुविधाएं
जर्जर भवन में चल रहा जाले का रेफरल अस्पताल, नहीं मिल रहीं उचित स्वास्थ्य सुविधाएं

दरभंगा । जाले स्थित रेफरल अस्पताल का ऊंचा भवन बाहर से तो देखने में सुंदर दिखता है, लेकिन अंदर से पूरी तरह जर्जर हो चुका है। छतों के टुकड़े जगह-जगह टूट कर गिरते रहते हैं। कई जगहों पर प्लास्टर झड़ चुका है। छत से बारिश के दौरान पानी टपकता है। इन स्थितियों के बीच मरीज अनहोनी की आशंका से भयभीत रहते हैं। यह अस्पताल अपने नाम रेफरल को चरितार्थ करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। दुर्घटना में घायल मरीजों व गंभीर रोगियों को यहां से फौरन डीएमसीएच रेफर कर दिया जाता है। अस्पताल का प्रसव कक्ष सुसज्जित है, लेकिन नवजात शिशु की प्राथमिक चिकित्सा के लिए बेबी केयर यूनिट कक्ष में ताला लटका रहता है। ब्लड बैंक के लिए तीन वर्ष पूर्व आया उपकरण जंग खा रहा है। अस्पताल में 9 डॉक्टर व 36 स्वास्थ्य कर्मियों पर साढ़े तीन लाख की आबादी के सेहत की जिम्मेवारी है। कई पद वर्षों से रिक्त पड़े हैं। सफाई व्यवस्था आउटसोर्सिंग के सहारे है, लेकिन स्थिति बेहतर नहीं है। पूरा अस्पताल गंदगी व धूल से पटा रहता है। सीमावर्ती सीतामढ़ी जिले के बोखड़ा प्रखंड, मुजफ्फरपुर जिले के औराई व कटरा और मधुबनी के बेनीपट्टी प्रखंड समेत 25-30 किलोमीटर दूर गांवों के मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। प्रतिदिन औसतन तीन से चार सौ मरीज आते हैं। अस्पताल के आउटडोर काउंटर से 55 दवाओं में से 41 उपलब्ध है। इनडोर में 88 में से 68 दवा उपलब्ध है। एंटी रैबिज व एंटी स्नेक दवाएं अस्पताल में है। फिर भी कई जीवन रक्षक दवाएं रोगियों को बाहर से खरीदनी पड़ती है।

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रेफरल अस्पताल में प्रभारी समेत पांच स्थायी डॉक्टर हैं। पीएचसी में संविदा पर तीन चिकित्सक व एक दंत चिकित्सक पदस्थापित हैं। एक्स-रे मशीन व अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था नहीं है। एक मात्र पैथोलॉजिस्ट के सहारे मरीजों की जांच चल रही है।

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रिक्त पदों पर नहीं हुई नई नियुक्ति :

22 अगस्त 1997 को रेफरल अस्पताल का उदघाटन हुआ। पीएचसी को समाहित करने से रेफरल अस्पताल में डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन अवकाश ग्रहण करने वाले कर्मियों के रिक्त स्थान पर नई नियुक्ति नहीं होने से संख्या कम होती गई। दो महिला चिकित्सक पदस्थापित हैं, लेकिन रात में महिला डॉक्टर के अस्पताल में नहीं रुकने से प्रसव पीड़िता को पुरुष डॉक्टर व एएनएम के भरोसे रहना पड़ता है। परिसर में शौचालय व चार चापाकल है। अस्पताल के अंदर नल से पानी सप्लाई होता है।

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बाहर से कराना पड़ता एक्स-रे :

कमतौल से इलाज को पहुचीं प्रतिभा ठाकुर, भमरपुरा की उरहला देवी, बिट्टू कुमार, जोगियारा की मारनी देवी, रेवढा की पवित्री देवी आदि ने बताया कि कुछ दवा रेफरल अस्पताल से मिली है, अन्य दवाएं बाहर से खरीदना पड़ा। जाले की चुन्नी खातून ने बताया कि सभी दवाइयां व एक्स-रे बाहर से कराना पड़ा। रेफरल अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मियों ने बताया कि पिछले आठ माह से वेतन नहीं मिला है। लाखों के उपस्करों को तीन कमरों में बंद कर रखा गया है। इस परिसर में आवासीय एएनएम स्कूल भी चलता है।

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