बाढ़ से पलभर में उजड़ा आशियाना, अपनों का भी छूटा साथ
जिस बाढ़ की तस्वीर को अखबार या टीवी में देखकर आपकी रूहें कांप उठती हो उस बाढ़ में पिछले तीन-चार दिनों से फंसे लोगों का क्या हाल होगा इसकी कल्पना शायद ही कोई कर सकता।
दरभंगा । जिस बाढ़ की तस्वीर को अखबार या टीवी में देखकर आपकी रूहें कांप उठती हो, उस बाढ़ में पिछले तीन-चार दिनों से फंसे लोगों का क्या हाल होगा, इसकी कल्पना शायद ही कोई कर सकता। हम बात कर रहे हैं जिला के मनीगाछी प्रखंड की। बाढ़ ने मानों गांव से लेकर पंचायत तक की सूरत ही बदल डाली है। लोग अपना घर-द्वार छोड़ सड़कों पर आ गए। जो फंस गए, वे वहां से निकलने की आस लगाए बैठे हैं। बाढ़ की सबसे ज्यादा मार उजान और आसपास के गांव झेलने को मजबूर हैं। पिछले तीन दिनों से गांव वालों की आंखें पथरा गई है, लेकिन उनको बचाने या उनकी मदद को कोई आगे नहीं आया है। यहां तक की किसी तरह की कोई प्रशासनिक सुविधा उन तक नहीं पहुंचाई गई है। हालांकि, मंगलवार को एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम दो नाव और राहत साम्रगी लेकर गांव के लिए निकली है। इधर, बाढ़ ने गरीब लोगों की वर्षों की कमाई को मिनटों में निगल लिया। जिस फूस के घर को बनाने में जीवन में कमाई गई पूंजी लगाई, वह बाढ़ की भेंट चढ़ गई। ऐसा ही कुछ नजारा मनीगाछी प्रखंड के टटुआर, बह्मपुरा, भटपुरा आदि गांवों में देखने को मिला। एनएच 57 के दोनों ओर जहां तक नजर गई, बाढ़ का पानी फैला हुआ था। एनएच के बीच बने डिवाइडर पर लोग पॉलीथीन लगाकर अपने परिवार के साथ गुजर-बसर को मजबूर हैं। मनीगाछी रेलवे स्टेशन से जैसे-जैसे पूरब दिशा की ओर बढ़ते जाएंगे, आपको चारों तरफ बाढ़ की विभीषिका नजर आएगी। पानी की तेज धारा में लोग जान हथेली पर रख आने-जाने को मजबूर हैं। कई स्थानों पर सड़क संपर्क भंग हो चुका है। लिहाजा, बांस के सहारे लोग किसी तरह अपनों की सुधि लेने एक स्थान से दूसरे स्थान आते-जाते दिखें। कुछ लोग ऐसे भी नजर आए जिनके परिजन या संबंधी अभी भी बाढ़ से घिरे हुए हैं। वे उनकी सलामती की दुआ और अधिकारियों से मिन्नतें कर रहे हैं।
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बच्चों के चेहरे खिले तो परिजनों के थे मुड़झाए :
बाढ़ से जहां एक ओर बच्चों में उमंग-तरंग का माहौल देखने को मिल रहा था, वहीं परिजनों के चेहरे मुड़झाए नजर आए। परिवार के भरण पोषण और पशुओं के लिए पशुचारा एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। बच्चे शायद इसलिए खुश नजर आ रहे थे, क्योंकि वे अभी यथार्थ से अनभिज्ञ हैं। पानी में मछली पकड़ने और नहाने का मजा जो बाढ़ ने उनको दिया है, शायद पैसे के अभाव में यह मजा उनको वॉटर पॉर्क में नसीब नहीं हो सकता। लिहाजा, पूरा दिन वे मौज-मस्ती और अटखेलिया करते नजर आते हैं।
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महिलाएं कर रही कठिन चुनौती का सामना :
घर को बनाने और सजाने का श्रेय महिलाओं को जाता है। आप समझ सकते हैं कि जिस घर को पल भर में बाढ़ निगल गई हो, उस घर की मालकिन पर क्या बीत रही होगी। बाढ़ ने पल भर में उन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। सबसे बड़ी समस्या भोजन से लेकर शौचालय तक की नजर आई। एक ओर बच्चों के रोने की आवाज तो दूसरी ओर मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध कराना एक कठिन चुनौती बन गया है। सम्मानजनक जीवन जीने के लिए सरकार ने घर-घर शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराई थी। सड़कों पर शौचालय तो नहीं है, लिहाजा लोगों को शर्म से सर झुकाए सड़क किनारे ही शौच करना पड़ता है।
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पानी की तेज धारा में दो की मौत, एक लापता :
बाढ़ की विभीषिका से जहां लोग अपने-अपने घरों से निकलने को बेकरार हैं, वहीं दूसरी ओर बाढ़ में डूबकर तीन के मौत की सूचना है। बाढ़ से उजान गांव के महेंद्र ठाकुर सहित एक अन्य की मौत हो गई है। इसकी पुष्टि सीओ रवींद्र कुमार झा ने की। बताया कि एक अन्य युवक पानी के तेज बहाव में बह गया है। उसकी खोजबीन की जा रही है।
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लोगों में स्थानीय प्रशासन और सरकार के खिलाफ आक्रोश :
टटुआर पंचायत के बिसैला गांव निवासी राहुल कुमार, आशीष झा, हेमंत, आशीष पाठक व अमित झा ने बताया कि प्रतिवर्ष बाढ़ का सामना लोगों को करना पड़ रहा है। तीन दिनों से यहां बाढ़ का पानी फैला हुआ है, सड़क संपर्क भंग हो चुका है, लेकिन सरकारी स्तर पर कोई सुविधा लोगों को नहीं मिल रही। न तो राहत साम्रगी का वितरण किया गया है, न तो कोई अन्य व्यवस्था ही नजर आती है। सरकार बाढ़ के स्थायी समाधान की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। जबकि, स्वंय सूबे के जल संसाधन मंत्री इस क्षेत्र से ताल्लुकात रखते हैं। ऐसे में बाढ़ के स्थायी निदान की ओर सरकार को ठोस प्रयास करने चाहिए। केवल बात करने से समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता। बाढ़ के कारण जान हथेली पर रखकर जैसे-तैसे स्नातकोत्तर की परीक्षा देने दरभंगा जाते है। कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। बाढ़ के पानी में आते-जाते कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है।
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