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प्रचुर संसाधन रहते गोशाला का हाल बेहाल, नहीं है किसी को फिक्र

दरभंगा । गो सेवा के नाम पर शहरी क्षेत्र के मिर्जापुर में गोशाला की स्थापना वर्षों पूर्व वर्ष 1886 म

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Jan 2019 12:13 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 12:13 AM (IST)
प्रचुर संसाधन रहते गोशाला का हाल बेहाल, नहीं है किसी को फिक्र
प्रचुर संसाधन रहते गोशाला का हाल बेहाल, नहीं है किसी को फिक्र

दरभंगा । गो सेवा के नाम पर शहरी क्षेत्र के मिर्जापुर में गोशाला की स्थापना वर्षों पूर्व वर्ष 1886 में की गई। इसका उद्देश्य गाय की देखभाल के साथ-साथ दूध से होने वाली बिक्री से इसकी देखभाल करना था। कालांतर में गोशाला अपनी मूल भावना से भटक गई। नतीजा यह हुआ कि अब यहां नाम मात्र की गायें बची हुई है। किसी तरह उनकी देखभाल का कार्य किया जा रहा है। भवन धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि गोशाला भी धीरे-धीरे राजनीतिक अखाड़ा होते जा रहा है। गोशाला के पुर्नउद्धार के नाम पर बड़े-बड़े भाषण तो दिए जाते हैं, लेकिन इन भाषणों से न तो गायों का न ही गोशाला का उद्धार हो रहा है। सरकारी स्तर पर गोशाला को लेकर की गई घोषणाएं धरातल पर उतरती दिखाई नहीं दे रही। इसके कारण जैसे-तैसे गोशाला का संचालन किसी तरह हो रहा है। श्री दरभंगा गोशाला सोसाइटी के नाम से रजिस्टर्ड इस संस्था के पदेन सदस्य सदर एसडीओ है। प्रशासनिक स्तर पर भी गोशाला का कब तक कायाकल्प होगा, यह समय ही बताएगा।

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गोशाला की स्थापना सन् 1886 में हुई। वर्तमान में गोशाला में कुल 72 पशु मौजूद है। इससे लगभग रोजाना 22 लीटर दूध होता है। गोशाला के पास कुल 50 एकड़ अपनी जमीन है। गोशाला का खर्च प्रतिमाह करीब 1 लाख 40 हजार रुपये है। इसमें 45 हजार रुपये करीब किराया से आता है। जबकि 15-20 हजार रुपये दान स्वरूप आता है। वहीं, करीब 60 हजार रुपये चंदा के रूप में आता है। गोशाला की जमीन पर कुल 42 दुकानें है। इसका बाजार मूल्य करीब 500 करोड़ के आसपास है। गाय की सेवा करने के लिए गोशाला में करीब 15 कर्मचारी है। लावारिस गायों को गोशाला में रखने में सबसे बड़ी समस्या इनकी देखरेख को लेकर है।


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