होली में आए सर्जिकल स्ट्राइक वाले पिचकारी
अब तक सर्जरी की बात स्वास्थ्य चिकित्सा के तहत ही लोगों के जेहन में थी। परंतु जब से देश की सुरक्षा में सर्जिकल शब्द प्रयुक्त हुआ है। हर कोई की जुबां ऐसे बोल रही है मानों उनके मानस पटल पर यह शब्द पूरी तरह से उभर गए हों।
बक्सर । अब तक सर्जरी की बात स्वास्थ्य चिकित्सा के तहत ही लोगों के जेहन में थी। परंतु, जब से देश की सुरक्षा में सर्जिकल शब्द प्रयुक्त हुआ है। हर कोई की जुबां ऐसे बोल रही है, मानों उनके मानस पटल पर यह शब्द पूरी तरह से उभर गए हों। खास बात तो यह है कि होली के बाजार में व्यवसायी भी इसे भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते। तभी तो बाजार में बिकने वाली पिचकारी वही, लेकिन यह कहकर बेच रहे है कि सर्जिकल स्ट्राइक वाली पिचकारी है। जिससे शोर के साथ रंगों की फुहार निकलेगी। दुकानदारों ने बताया कि लोग इसे पसंद भी कर रहे हैं। जाहिर हो कि एक माह तक लगन मुहूर्त नहीं होने से वैवाहिक एवं अन्य मांगलिक आयोजनों पर शुक्रवार से विराम लग गया है। साथ ही, गत दो माह से लगन पर आश्रित बाजार का रंग भी बदल गया है। जो अब रंगों का त्योहार होली की तैयारी में पूरी तरह से डूब गया है। पर्व को लेकर जगह-जगह नई दुकानें सजने लगी हैं। एक तरफ जहां थोक से लेकर खुदरा दुकानों पर मनभावन पिचकारियां बिकते दिख रही हैं। वहीं, किराना की दुकानों पर भी डब्बा बंद रंग एवं पैकेट सील अबीर-गुलाल की बिक्री हो रही है। इन दुकानों पर मावा की आमद भी बढ़ा दी गई है। एक किराना दुकानदार ने बताया कि खासकर होली पर्व पर मावा की बिक्री प्रचुर मात्रा में होती है। क्योंकि, इस पर्व में छोटे-बड़े सभी कुछ न कुछ मावा की खरीदारी जरूर करते हैं। पर्व को ले बाजार की बढ़ी रौनक होली पर्व को लेकर बाजार की रौनक धीरे-धीरे बढ़ने लगी है। हालांकि, दुकानदार बताते हैं कि अभी बाजार ठंडा है। होली में चार-पांच दिन समय है। उनका कहना है कि अब पहले वाली वो बात नहीं रही जब होली के काफी पहले से ही रंगों का खेल शुरू हो जाता था। लोगों के बदन पर चढ़े कपड़े रंगों में पुते दिखते थे। अब तो बस पिचकारी बाजार दो से तीन दिनों का ही रह गया है। ऐसे में अगले दो-तीन दिनों में बाजार में पिचकारी की जबरदस्त मांग होने की संभावना है। इससे इतर, थोक मंडियों में इसकी बिक्री शुरू हो गई है। पर्व में सूखे रंग का करें इस्तेमाल होली सभी को उमंग एवं उत्साह के साथ मनाना चाहिए। इसी कारण इसे मेल-मिलाप का त्योहार भी कहा गया है। जहां पुरानी वैमनस्यता को भी भूलकर लोग एक-दूसरे से गले मिलकर हर्षित भाव से मेल-मिलाप करते हैं। यही वो त्योहार है जहां दूर बैठे सगे-सम्बन्धी भी एक-दूसरे से मिलना और साथ-साथ होली की ठिठोली में रंगोत्सव मनाना नहीं भूलते। बल्कि, उन्हें इस पर्व के आने का बेसब्री से इंतजार रहता हैं। पर कुछ परेशानियां भी हैं। बिना रजामंदी के भी कुछ लोग राह चलते लोगों पर रंग उड़ेल देते हैं। जो इसकी मर्यादा को भंग करते दिखता है। शिक्षाविद् श्रीभगवान पांडेय का कहना है कि लोगों को चाहिए कि वे अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ भी पानी की जगह सूखे रंग का प्रयोग करें। बल्कि, कई लोग तो रंग के भय से वैवाहिक आयोजन की तिथि पर्व के निकट रखने से भी परहेज करने लगे हैं।