अकारण क्रोध करने वाला दंड का भागी : जीयर स्वामी
प्रखंड स्थित इन्दौर पंचायत के काशीमपुर गांव के मैदान में चल रहे चार्तुमास्य यज्ञ के दौरान श्रीत्रिदण्डी स्वामी जी महाराज के शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि दया के समान दुनिया में कोई श्रेष्ठ धर्म नहीं है।
बक्सर । प्रखंड स्थित इन्दौर पंचायत के काशीमपुर गांव के मैदान में चल रहे चार्तुमास्य यज्ञ के दौरान श्रीत्रिदण्डी स्वामी जी महाराज के शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि दया के समान दुनिया में कोई श्रेष्ठ धर्म नहीं है। दया का मानक होना चाहिए। जो दया का पात्र हो उसी पर दया करनी चाहिए। कुकर्मी व्यक्ति क्षमा योग्य नहीं है। ऐसी दया न की जाए, जिसमें हम अपने स्वरूप को भूल जाएं। मरते समय जैसी मति वैसी ही गति स्वामी जी ने कहा कि ज्ञान मार्ग से जो जी रहे हैं। उनके लिए मरते समय जैसे मति होगी वैसे ही गति भी होगी। जो व्यक्ति जिस भावना के साथ मरता है, मरने के बाद वह वही गति तथा स्थिति को प्राप्त करता है। भक्ति मार्ग के लिए ऐसा नियम नहीं है। भगवान ने बताया हैं कि यदि मेरी भक्ति करनेवाला मरते समय वात, पित्त, कफ के कारण हमारा नाम नहीं लिया और मर गया तो उसको अधोगति नहीं मिलती है। क्योंकि मैं उसको स्मरण कराता हूं। विवाह को जीवन का भोग नहीं बनाना चाहिए घर, गृहस्थी, पत्नी, बाल-बच्चे, खेती, व्यापार, नौकरी ये सब झंझट नहीं है। जब तक जिम्मेवारी हो आप अपना कर्तव्य प्रसन्नता के साथ करिए। भगवान भी रामावतार, कृष्णावतार में जन्म लेकर गृहस्थ मर्यादा का अनुसरण किए। विवाह का मतलब होना चाहिए कि 84 लाख योनी से मुक्त हो गए। विवाह करके पत्नी के साथ मर्यादा से रहकर एक दो संतान उत्पन्न कर, संस्कार देकर वैरागी हो जाना चाहिए। अकारण क्रोध में किसी का अहित करनेवाला नरक का भागी स्वामी जी ने बताया कि कोई अत्याचार करे और क्रोध न करें ऐसा नहीं होना चाहिए। यदि क्रोध को दुनिया से हटा दिया जाए तो पूरी दुनिया अस्त-व्यस्त हो जाएगी। बेटा कहेगा हमें जो मन करे सो करेंगे, प्रजा कहेगी हम अपनी मनमर्जी करेंगे। ऐसे समाज नहीं चलेगा। इसलिए अपने-आप में कड़ा होना चाहिए। परंतु जो अकारण ही क्रोध करता है वह नरक का भागी होता है।