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कर्म करके मांगना भक्ति नहीं, ईश्वरीय व्यवस्था के सहयोगी बनें

अष्टम दिवसीय कथा सत्र में गुरुवार को केंद्रीय कारा परिसर स्थित वामनेश्वरनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में ध्रुव चरित्र एवं प्रहलाद चरित्र की चर्चा हुई।

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 04:36 PM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2019 04:36 PM (IST)
कर्म करके मांगना भक्ति नहीं, ईश्वरीय व्यवस्था के सहयोगी बनें
कर्म करके मांगना भक्ति नहीं, ईश्वरीय व्यवस्था के सहयोगी बनें

बक्सर । अष्टम दिवसीय कथा सत्र में गुरुवार को केंद्रीय कारा परिसर स्थित वामनेश्वरनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में ध्रुव चरित्र एवं प्रहलाद चरित्र की चर्चा हुई। कथा व्यास आचार्य नरहरि दास जी महाराज ने कहा कि ध्रुव ने माता और प्रहलाद ने पिता के वचनों को ना सिर्फ सत्य कर दिया बल्कि, अल्प आयु में ही ईश्वर को प्राप्त कर लिए। आचार्य ने कहा कि भक्ति या भजन का अर्थ कर्म से मांगना नहीं है अपितु, संसार की सेवा करते हुए अपने को कर्म का कर्ता न मानकर ईश्वरीय व्यवस्था का सहयोगी बनना है। उन्होंने कहा कि इन दोनों प्रसंगों में एक बात और स्पष्ट है कि माता-पिता अगर पुत्र को असत्य के मार्ग पर ले जाना चाहे तो भी उसका मौन विरोध करते हुए सत्यपथ का ही अनुसरण करना चाहिए। ज्ञान यज्ञ में हजारों की संख्या में उमड़े भक्त खुद को धन्य मान रहे थे। आचार्य, कथा प्रसंग के बीच-बीच में भजन गायन कर लोगों को झुमाते भी रहे। इस दौरान कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए आचार्य ने कर्म सिद्धांत को श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि किसी भी परिस्थिति में निष्क्रिय न हों, बल्कि निष्काम हों। निष्क्रिय होना जड़ता है जो जीवन का उद्देश्य एवं लक्ष्य नहीं है। उनका कहना था कि जीवन में सुख की प्राप्ति का अर्थ भौतिक और इंद्रिय सुख नहीं बल्कि, आत्मिक एवं आचरित सुख है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में हम दूसरे को खिलाकर सुखी होते हैं। अर्थात, हमारा धर्म शाश्वत सत्य'वसुधैव कुटुंबकम'की बात कहता है।

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