महर्षि नारद की तपस्या से डोला इंद्र का सिंहासन
प्रखंड क्षेत्र के आशापड़री गांव स्थित मां काली मंदिर के प्रांगण में आयोजित शतचंडी महायज्ञ में सोमवार को वृंदावन से आए कलाकारों द्वारा रामलीला में नारद मोह की लीला का मंचन किया गया। इस दौरान कलाकारों ने भावपूर्ण प्रस्तुति देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
बक्सर । प्रखंड क्षेत्र के आशापड़री गांव स्थित मां काली मंदिर के प्रांगण में आयोजित शतचंडी महायज्ञ में सोमवार को वृंदावन से आए कलाकारों द्वारा रामलीला में नारद मोह की लीला का मंचन किया गया। इस दौरान कलाकारों ने भावपूर्ण प्रस्तुति देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जय श्रीराम के गगनभेदी जयघोष से महायज्ञ स्थल का माहौल भक्तिमय हो गया। हिमालय की मनोरम वादियां देवर्षि नारद को भा जाती हैं और वे वहीं पर तपस्या करने लगते हैं। उनके तपोबल से देवराज इंद्र का सिंहासन हिलने लगता है। इससे भयभीत इंद्र अपने प्रिय कामदेव को उर्वसी, रंभा, मेनका आदि अप्सराओं के साथ देवर्षि की तपस्या भंग करने के लिए भेजते हैं।
कामदेव तप भंग नहीं कर पाते, बल्कि वह नारद के समक्ष शरणागत हो जाते हैं। ऐसे में नारद को कामदेव पर विजय पा लेने का घमंड हो जाता है। तमाम देवताओं के मना करने के बाद भी यह बात जाकर भगवान विष्णु को बताते हैं। इस पर नारद का अहंकार खत्म करने के लिए विष्णु भगवान माया की नगरी का निर्माण करते हैं। इनमें विश्वमोहिनी के स्वयंवर का आयोजन होता है। नारद विश्वमोहिनी से विवाह करने को भगवान विष्णु के पास सुंदर स्वरूप मांगने जाते हैं। विष्णु उन्हें वानर का रूप दे देते हैं। इससे स्वयंवर सभा में उनका उपहास होता है और अहंकार भी दूर हो जाता है। बाद में विष्णु स्वयंवर में पहुंचकर विश्वमोहिनी से अपने गले में वरमाला डलवा लेते हैं। जिससे नाराज नारद विष्णु को श्राप देते हैं कि विपत्ति की घड़ी में वानर-भालू ही उनकी मदद करेंगे। इसी श्राप के चलते त्रेतायुग में विष्णु जब भगवान राम के रूप में अवतरित होते हैं तो सीता हरण के वक्त रावण वध करने में वानर सेना उनकी मदद करती है। इसका सजीव चित्रण बड़े ही सारगर्भित ढंग से कलाकारों ने प्रस्तुत किया।