विश्राम सरोवर कूड़े से भरा, कब्रिस्तान पोखरा भी सूखा
जलस्त्रोतों को लूटने की प्रवृत्ति केवल दबंगों में ही नहीं बल्कि शहरी निकायों में भी जबरदस्त रूप से रही। नगर के स्टेशन रोड स्थित बसांव मठिया के सामने विश्राम सरोवर इसका जीता-जागता प्रमाण है।
बक्सर । जलस्त्रोतों को लूटने की प्रवृत्ति केवल दबंगों में ही नहीं, बल्कि शहरी निकायों में भी जबरदस्त रूप से रही। नगर के स्टेशन रोड स्थित बसांव मठिया के सामने विश्राम सरोवर इसका जीता-जागता प्रमाण है। विश्राम सरोबर कभी नगर का एक प्रमुख जल स्त्रोत माना जाता था, लेकिन नगर परिषद ने इसे कूड़ा फेंकने का स्थान बना दिया और देखते ही देखते पूरा तालाब कूड़ा से भर गया।
जब तालाब नहीं रहा तो इसे लूटने की साजिश शुरू हुई। किसी ने इसे अपनी पुश्तैनी जमीन बताते हुए इस पर कब्जा करना चाहा। हालांकि, दैनिक जागरण में पूरा मामला आने के बाद डीएम राघवेंद्र सिंह ने इसे गंभीरता से लिया और जमीन पर कब्जे की कोशिश नाकाम हुई। इसके बाद भी तालाब के दिन नहीं बहुरे और आज भी इसमें पानी की जगह कूड़ा भरा हुआ है। बताया जाता है कि, आदि काल में प्रभु श्री राम ने इस पोखर में स्नान करते हुए यही पर विश्राम किया था। जिसके बाद से इसे विश्राम सरोवर के नाम से जाना जाता है। तकरीबन 5 वर्ष पूर्व नगर परिषद ने मत्स्य विभाग के इस पोखर में डंपिग जोन बना दिया। परिषद का कहना था कि इस पोखर को पाटकर यहां वृद्धाश्रम बनाया जाएगा। हालांकि, बाद में मत्स्य विभाग तथा तत्कालीन जिलाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल की आपत्ति के बाद नगर परिषद ने अपने कदम पीछे खींच लिए। बताया जाता है कि जिलाधिकारी ने उस समय नगर परिषद को कड़ी फटकार भी लगाई थी। ऐसे मिला भू माफियाओं को मौका नगर परिषद द्वारा पोखरे के आधे से अधिक भाग को पाट दिया गया था। जिसके बाद भू-माफियाओं को भी मौका मिल गया तथा उन्होंने गलत तरीके से न्यायालय को अंधेरे में रखते हुए इस जमीन को अपने नाम करा लिया। इस मामले में दैनिक जागरण में खबर छपने के बाद प्रशासन की नींद खुली जिसके बाद न्यायालय के एकतरफा फैसले को चुनौती दी गई। न्यायालय ने सरकार द्वारा दायर विविध वाद को स्वीकार किया तथा मामले में सुनवाई करनी शुरू कर दी है। उम्मीद है कि विश्राम सरोवर एक बार पुन: नगर की शान बनेगा। दुकानें बनाकर सिमटा दिया अंग्रेज कब्रिस्तान पोखर का क्षेत्रफल : नगर के स्टेशन रोड में कोइरपुरवा के समीप अवस्थित अंग्रेज कब्रिस्तान के बगल में बने पोखर से जल निकालकर कब्रिस्तान में लगाए पेड़ पौधों की सिचाई की जाती थी। अंग्रेजों के जाने के बाद मत्स्य विभाग के द्वारा इस पोखर में मछली पालन कराया जाने लगा। यह कई मछुआरों की जीविका का साधन था। पोखर के आस-पास कई छायादार पेड़-पौधे भी लगाए गए थे जिससे पोखर की सुंदरता देखते ही बनती थी। स्थानीय निवासी बताते हैं कि उस समय इस पोखर का कुल क्षेत्रफल तकरीबन एक बीघा था। लेकिन बाद में स्थानीय लोगों द्वारा धीरे-धीरे पोखर की जमीन का अतिक्रमण किया जाने लगा। अंचलाधिकारी सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि पोखर का अतिक्रमण कर कई दुकानें तथा घर यहां बना लिए गए हैं। ऐसे में अब स्थिति यह है कि, पोखर केवल 5-6 कट्ठे में ही सिमट कर रह गया है। नगर में कई पोखरों का अतिक्रमण कर लिया गया है। स्थिति यह है कि, अब पोखर कई जगह तो अस्तित्व विहीन हो गए हैं। ऐसे में सभी अतिक्रमणकारियों को नोटिस भेजकर अतिक्रमण के संबंध में जवाब देते हुए पोखरे को अतिक्रमण मुक्त करने का निर्देश दिया जा रहा है। सत्येंद्र कुमार सिंह, अंचलाधिकारी, सदर अंचल।