मुहर्रम पर शहादत-ए-गम में मातमी अश्क से पाक हुआ करबला
इंसानियत के रहनुमा इमाम हसन-हुसैन की शहादत को याद करते हुए मंगलवार को उनकी शान में यहां सेंट्रल जेल के समीप स्थित करबला पर नियाज फातिया पढ़ा गया। इसको लेकर शहर व आसपास के अकीदतमंद वहां पहुंचे हुए थे।
बक्सर । इंसानियत के रहनुमा इमाम हसन-हुसैन की शहादत को याद करते हुए मंगलवार को उनकी शान में यहां सेंट्रल जेल के समीप स्थित करबला पर नियाज फातिया पढ़ा गया। इसको लेकर शहर व आसपास के अकीदतमंद वहां पहुंचे हुए थे। जिसमें मजहबी पुरुष-महिलाओं के साथ भारी संख्या में अन्य समुदाय के लोग शामिल थे। इनके द्वारा इमाम हसन व हुसैन की शहादत के गम में मातमी अश्क (आंसू) बहाए गए। जिससे वहां का माहौल गमगीन हो गया।
इस क्रम में इस्लाम के उस सच्चे नुमाइंदे की मजार पर चादरपोशी की गई तथा नियाज-फातिया के बाद खिचड़ा एवं शिरनी (प्रसाद) वितरित की गई। जहां, उमड़े इस सैलाब में लोगों की अटूट आस्था का भरपूर समागम देखने को मिला। वहीं, प्रसाद लेने में लोगों ने तहजीब दिखाई। इससे पूर्व शहर के दर्जन भर अखाड़ों द्वारा ताजिये के साथ मेन रोड स्थित छबील कब्रिस्तान पर जाकर पहलाम किए गए। इसके बाद सातवीं को वहां रखे गए करबला की मिट्टी के साथ खलिफाओं के नेतृत्व में पैग के द्वारा मातमी धुन पर तलवारबाजी एवं लाठी भांजते हुए जंग-ए-करबला में इंसानियत के गला घोंटने वाले काफीरों के प्रति आक्रोश जताकर जेल के पास करबला मैदान पहुंचा गया। इस विषय में मुहम्मद नईम बताते हैं कि जब इमाम हुसैन खुदा का सजदा कर रहे थे। तब धोखे से एक यजीदी ने हुसैन को शहीद कर दिया। पर वो हमेशा के लिए अमर हैं। वहीं, मुहम्मद रिजवान ने कहा कि यह सदाचार, उच्चविचार, आध्यात्म और अल्लाह से बेपनाह मुहब्बत का अवसर है। 'आस्था के दर' पर मेला का नजारा बक्सर : 'आस्था की दर' पर पहुंची भीड़ के चलते कर्बला मैदान मेलामय हो गया था। वहां मलीदा व बाखरखानी की खूब बिक्री हुई। वहीं, मेला का लुत़्फ लेते लोगों ने खूब मूंगफली फोड़े और खाए-खिलाए। जबकि, बच्चों ने खिलौनों की जमकर खरीदारी की। दूसरी ओर शहर में ताजिये के साथ निकाले गए जुलूस के कारण सड़कों पर जाम का नजारा दिख रहा था। इमामों द्वारा हसन-हुसैन की शहादत का जिक्र करते हुए उनकी तारीफ में काढ़े गए कसीदा को सुनते ही उनकी याद में अकीदतमंदों के अश्क ढरकने लगते थे। इस दौरान इमामों द्वारा तकरीर में इस्लाम की दुहाई देते हुए इंसानियत की रक्षा के लिए खुदा के बंदों को खुद की शहादत के लिए तैयार रहने की नसीहत दी गई, ताकि इमाम हसन-हुसैन की याद जिदा रह सके।