छठ में कोसी भरने से होती कामनाओं की पूर्ति
लोक आस्था के महा अनुष्ठान में पुत्र रत्न प्राप्ति की मनोकांक्षा के साथ-साथ विशेष कामनाओं की पूर्ति के लिए महिलाएं कोसी (मिट्टी का पात्र) भरने की मन्नत मांगती हैं और मन्नत पूरी होने पर छठ में कोसी भरती हैं। छह दीप वाले कोसी से
बक्सर। लोक आस्था के महा अनुष्ठान में पुत्र रत्न प्राप्ति की मनोकांक्षा के साथ-साथ विशेष कामनाओं की पूर्ति के लिए महिलाएं कोसी (मिट्टी का पात्र) भरने की मन्नत मांगती हैं और मन्नत पूरी होने पर छठ में कोसी भरती हैं। छह दीप वाले कोसी से सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी प्रकृति के रूप षष्ठी और द्वादश दीपों वाले कोसी से द्वादश आदित्य को ध्यान में रखा जाता है। ज्ञातव्य है कि कामना की पूर्ति होने पर बारह या छह दीप युक्त मिट्टी से बनी हुई कोसी में फलादि रखकर द्वादश आदित्य को अर्घ्य दिया जाता है। सविता और षष्ठी दोनों की एक साथ उपासना से अनेक वांछित फलों को प्रदान करने वाला चार दिनों का यह सूर्यषष्ठी व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। कहा गया है कि भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। उनकी आराधना से समस्त कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। परन्तु, वात्सल्य का महत्व माता से अधिक कौन जान सकता है। इसी लिए परम ब्रह्मा की शक्ति स्वरुपा प्रकृति देवी षष्ठी संतति प्रदान करने के लिए अधिकृत हैं। लिहाजा, छठ में समस्त वैभव की कामना भगवान सूर्य से की जाती है। जबकि, पुत्र की कामना षष्ठी से की जाती है। इन तथ्यों को ग्रामीण महिलाओं ने गीतों में पिरोकर अक्षुण्य रखा है। इस संबंध में पं.नित्यानंद स्वामी ने बताया कि छठ पर्व में कोसी भरने का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने बताया कि पवित्रता के साथ किया जाने वाला यह पर्व काफी उल्लेखनीय है और इसकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसकी परंपराओं में आज भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।