न्यायालय से सबको मिलता है न्याय
बक्सर : व्यवहार न्यायालय के वरीय अधिवक्ता बबन ओझा बुधवार को प्रश्न पहर कार्यक्रम में पूर्वाह्न 11
बक्सर : व्यवहार न्यायालय के वरीय अधिवक्ता बबन ओझा बुधवार को प्रश्न पहर कार्यक्रम में पूर्वाह्न 11.30 से 12.30 बजे तक मौजूद रहे। इस दौरान जिले भर से लोगों ने आपराधिक मामलों से संबंधित सवालों की बौछार लगा दी। इस दौरान उन्होंने फोन करने वालों के एक-एक सवालों को ध्यान पूर्वक सुने और उनके जवाब दिए।
सवाल : मेरा नाम जमीनी विवाद के एक मुकदमें में दुर्भावनावश डाल दिया गया है। मेरी नौकरी लगने वाली है। इसमें किसी तरह की परेशानी आ सकती है क्या?
डब्बू ¨सह, डुमरांव
जवाब : जब तक आप पर आरोप साबित नहीं हो जाता है। तब तक आप को किसी तरह की परेशानी नहीं है। आप अपने क्षेत्र के थाने को प्रतिरक्षा दे अपनी स्थिति से पुलिस को अवगत करा सकते है। इससे आपको किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी।
सवाल : गांव के कुछ लोग मेरे दरवाजे पर पहुंच कर हमला बोल दिए। इसके बाद उन लोगों ने मारपीट की। कानून आने हाथ में लेने में क्या परेशानी आ सकती है।
संजय ¨सह, कृष्णाब्रहम
जवाब : आप कानून अपने हाथ में किसी स्थिति में नहीं ले सकते है। इसका प्रावधान नहीं है। हां आप पर कोई हमला करता है। और आपके जान की खतरा है तो आप बचाव में हमला कर सकते है। यह सेल्फ डिफेंस में आता है। इसमें किसी प्रकार की परेशानी नहीं है। हालांकि, इसे साबित करना होगा।
सवाल : आइपीसी 34 कामन इंटेंसन व 149 कामन अब्जेक्ट कब लगता है और दोनों में क्या अंतर है ?
सुनील कुमार, विधिक छात्र
जवाब : 34 आईपीसी व 149 दोनों अलग-अलग स्थिति में लगता है। 34 पांच से कम लोग एक साथ है और किसी घटना को एक व्यक्ति भी अंजाम देता है। लेकिन, सभी की मंशा एक है तो कानून की नजर में सभी अपराध किया। सभी को एक समान सजा होगी। उसी तरह चार से अधिक व्यक्ति किसी घटना को अंजाम देते है। अथवा गलत तरीके से मजमा लगा घटना को अंजाम देते है। उस समय सभी की मंशा एक है तो सभी को घटना का अभियुक्त माना जाएगा। उन पर 149 लागू होगा। लेकिन, कुछ लोगों का इरादा गलत नहीं है तो वह इस दोष से मुक्त होगा।
सवाल : प्ली वार्गे¨नग क्या है ?
अमरेन्द्र कुमार, बक्सर
जवाब : किसी भी घटना में पुलिस अनुसंधान के बाद अंतिम प्रतिवेदन कोर्ट में समर्पित करती है। इस केस में सात वर्ष से कम की सजा होगा। वैसे मामले में अभियुक्त कोर्ट में सुलह का आवेदन दे सकता है। कोर्ट अनुसंधानकर्ता, दोनों पक्षकार व दोनों के अधिवक्ता को बुला कर सुलह करा सकता है। सभी के द्वारा दिए गए सुलह निर्णय कोर्ट में मान्य होगा। लेकिन, यह कानून जिससे समाज सरकारी तंत्र व आर्मी नेवी व दहेज हत्या जैसे मामलों में लागू नहीं होगा।
सवाल : पति अपने घर से निकाल दिया। इसके बाद उसने तलाक का मुकदमा भी कर दिया है। इसके साथ ही उसने दूसरी शादी कर ली। इसमें अपने बचाव में क्या कर सकते है।
पूनम देवी, बक्सर
जवाब : आपका मुकदमा पारिवारिक न्यायालय में लंबित है। इस मामले में आपका पति जिससे शादी किया है। उस लड़की का नाम, उसके पिता व शादी में शामिल अन्य लोगों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज करा सकती है। इसके साथ ही हिन्दू विवाह अधिनियम 24 के तहत आवेदन देकर भरण-पोषण के लिए कोर्ट में मुकदमा कर सकती है। साथ ही कोर्ट से मुकदमा लड़ने का खर्च एकमुश्त प्राप्त करने के लिए आग्रह कर सकती हैं।
सवाल : जमीन खरीद मामले में एक व्यक्ति ने देश के कई बड़े शहरों में बुला कर नकद 40 लाख रुपये ले लिए। लेकिन, जमीन नहीं दी। टाल-मटोल कर रहा है। इसमें क्या हो सकता है।
सुरेन्द्र कुमार राय, नया बाजार
जवाब : आपने रुपये लेन-देन का किसी प्रकार का कागजात तैयार नहीं कराया है। लेकिन, जिसके समक्ष आपने रुपये दिए है। उसको गवाह बनाते हुए आप थाने में 420 व 406 के तहत प्राथमिकी व कोर्ट में मुकदमा दर्ज करा सकते है। इससे आपको न्याय मिलेगा।
सवाल : पति के विरुद्ध कोर्ट में दहेज प्रताड़ना का मुकदमा चल रहा है। लेकिन, मै पति के साथ रहना चाहती हूं इसके लिए क्या प्रावधान है।
शबनम खातून, राजपुर
जवाब : इस केस में भदवी की धारा 498 (ए) लगता है। यह सुलहनीय नहीं है। लेकिन, माननीय उच्च न्यायालय ने इस तरह के मामले को सुलहनीय के रुप में रखा है। आप कोर्ट में आवेदन दे सुलह करा सकती है। इसमें पति के साथ रहने की सुविधा मिल सकती है।
सवाल : कोर्ट में मुकदमा साल दर साल चलता रहता है। फैसला जल्द नहीं आता। इसकी क्या वजह हो सकती है। जल्द न्याय कैसे मिल सकता है।
संतोष कुमार, नयाबाजार
जवाब : किसी भी मुकदमें में कोर्ट को निर्णय पर पहुंचने में दोनों पक्ष के अधिवक्ता, पक्षकार, पुलिस व चिकित्सकों की भूमिका अहम होती है। इसमें किसी ने भी अपना कार्य ईमानदारी से नहीं किया तो मुकदमा लंबित रह सकता है। इन्हीं तरह के समस्या को देखते हुए सरकार ने मुकदमें को जल्द निपटारा के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट है।