Bihar Chunav: बक्सर में 'भीतरघात' से बदल सकता है जीत-हार का समीकरण, बागियों पर पैनी नजर
बक्सर में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दलों में घमासान तेज हो गया है। इस बार मुकाबला विपक्षी दलों के साथ-साथ पार्टी के अंदर के विरोधियों से भी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कई सीटों पर 'भीतरघात' का खेल परिणाम को प्रभावित कर सकता है। पार्टी टिकट की दौड़ में पीछे रह गए कई नेताओं में नाराजगी है, जिससे भीतरघात की आशंका बढ़ गई है।
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बागी बदल सकते हैं चुनावी समीकरण। (फोटो जागरण)
राजेश तिवारी, बक्सर। विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, राजनीतिक दलों के भीतर घमासान तेज होता जा रहा है। इस बार मुकाबला सिर्फ विरोधी दलों के बीच नहीं, बल्कि अपने ही घर के भीतर ‘भीतरघात’ से भी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कई सीटों पर जीत-हार का अंतर ‘भीतरघात’ का खेल प्रभावित कर सकता है। भीतरघात के इस खेल ने सभी प्रमुख दलों के बड़े नेताओं की नींद उड़ा रखी है। वे अब भाषण और घोषणापत्र से ज़्यादा, अपने कार्यकर्ताओं की वफादारी सुनिश्चित करने में लगे हैं।
उन्हें पता है कि यह शातिराना खेल मतदान के दिन किसी भी उम्मीदवार की जीत को हार में और हार को जीत में बदल सकता है।
कांटे का मुकाबला
बक्सर में इस बार मुकाबला बेहद कांटे का है। परिणाम जो भी हो, लेकिन यह तय है कि इस बार के विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद कई उम्मीदवारों को अपनी हार का कारण बाहरी विरोधी नहीं, बल्कि अपने ही विभीषणों और उनके भीतरघात में नजर आएगा।
आज की राजनीति के विभीषण तो दिन और रात में चोला बदल ले रहे हैं। वे दिन में किसी और का दामन थामे नजर आ रहे हैं, रात में किसी और की महफिल को गुलजार कर रहे हैं। दिन में किसी और की दुहाई दे रहे हैं, तो रात में किसी और का गुणगान कर रहे हैं।
इसकी बानगी जिले के सभी विधानसभाओं में देखी जा सकती है। आज के परिदृश्य में राजनीतिक धुरंधरों को मात दे रहे उनके बगलबच्चे राजनीति की बिसात पर कुछ इसी तरह के मोहरे खेल रहे हैं। पार्टी टिकट की दौड़ में पीछे रह गए कई नेताओं में नाराजगी साफ झलक रही है।
खुले तौर पर विद्रोह
कुछ खुले तौर पर विद्रोह का बिगुल फूंक चुके हैं, तो कुछ अंदरखाने प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करने में जुटे हैं। ऐसे में मैदान में सक्रिय प्रत्याशियों के लिए भीतरघात सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है।
स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी नेतृत्व को अब केवल बाहरी विरोधियों से नहीं, बल्कि अपने ही असंतुष्ट नेताओं से भी सावधान रहना होगा। क्योंकि बाहर के दुश्मन से लड़ाई आसान होती है, भीतर के विभीषण से नहीं। अब देखना यह होगा कि कौन-सी पार्टी अपने भीतरघात पर काबू पाती है और कौन इस अदृश्य चोट से हार का स्वाद चखती है।
बहरहाल, यह कहना गलत नहीं कि इनके भीतरघात से किसी का भी चुनावी समीकरण गड़बड़ा सकता है। जीत का दावा करने वाला हार का स्वाद चख सकता है। चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों को इन पर पैनी नजर रखनी होगी।
52 प्रत्याशी कर रहे जोर आजमाइश
गौरतलब है कि यह स्थिति जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में बन रही है। राजनीतिक के जानकार कहते हैं, विभीषण रूपी ऐसे सिपहसालारों का भीतरघात कई बार सियासी मैदान में जीत का दावा कर रहे प्रत्याशी पर भी भारी पड़ जाता है और उनकी जीत का सपना बिखर जाता है।
बताते चलें कि बक्सर के चारों विधानसभा से इस बार कुल 52 प्रत्याशी चुनावी मैदान में जोर आजमाइश कर रहे हैं। इनमें राष्ट्रीय पार्टियों से लेकर निर्दलीय उम्मीदवार तक शामिल हैं। अब देखना है कि कौन चार उम्मीदवार किस्मत वाले हैं, जो अन्य लोगों को पीछे छोड़कर अपने जीत के दावे को सच साबित कर पाते हैं।

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