अब छोटे शहरों में आकार ले रहे बड़े-बड़े ख्वाब
बक्सर। शिक्षा को लेकर आज हर वर्ग जागरुक हो गया है और इसमें दो राय नहीं। गांव व दूरदराज के इलाकों में भी पढ़ाई के प्रति उत्साह की बानगी दिख रही है।
बक्सर। शिक्षा को लेकर आज हर वर्ग जागरुक हो गया है और इसमें दो राय नहीं। गांव व दूरदराज के इलाकों में भी पढ़ाई के प्रति उत्साह की बानगी दिख रही है। साइकिल पर सवार मुनिया के सपने शिक्षा की बुनियाद पर कुलांचे मार रहे हैं तो शिक्षा के प्रति लोगों में जागरुकता भी दिख रही है। वैसे भी प्रतिभा किसी क्षेत्र विशेष की मोहताज नहीं होती। इसी का परिणाम है कि अब छोटे शहरों में भी बड़े-बड़े ख्वाब आकार लेने लगे हैं। इन शहरों में सपने संजोने को हर साल नए-नए को¨चग संस्थान खुल रहे हैं तो इंजीनिय¨रग, मैनेजमेंट और मेडिकल के छात्रों की संख्या में भी साल दर साल इजाफा हो रहा है।
खत्म हो रहा बड़े शहरों का एकाधिकार : शिक्षा और सहूलियत के मामले में बड़े शहरों का एकाधिकार खत्म होने लगा है। अब छोटे शहरों में भी गांव व कस्बों से आकर पढ़ रहे विद्यार्थियों के मन में बड़े-बड़े सपने पल रहे हैं। खास बात यह कि पहले जिनकी तैयारियों के लिए छात्रों को पटना, दिल्ली व कोटा जाना पड़ता था वह अब उन्हें अपने जिले में ही मिलने लगी है।
प्रतिस्पर्धा के दौर में आगे बढ़ने की होड़ : प्रतिस्पर्धा के इस दौर में आगे बढ़ने की होड़ सी मची है। यही वजह है कि उच्च शिक्षा की अहमियत के साथ-साथ लोगों की आकांक्षाओं में इजाफा हुआ है। आज हर मां-बाप अपने बच्चों को इंजीनियर, डाक्टर या आईएएस, आईपीएस के रूप में देखना चाहता है।
तीन साल में बदला को¨चग का स्वरूप : बक्सर जैसे छोटे शहर को ही लें तो यहां दो से तीन साल पहले तक कायदे के को¨चग संस्थान तक नहीं थे। जबकि, आज यहां बैंक के पीओ से लेकर मेडिकल, इंजीनिय¨रग व प्रबंधन कालेजों में प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराई जा रही है। राज को¨चग के निदेशक राजेश चौबे कहते हैं कि अब यहां के बच्चे भी बड़े-बड़े ख्वाब देख रहे हैं और पहले की अपेक्षा उन्हें बेहतर शिक्षा भी मिल रही है।
मल्टीनेशनल कंपनियों में लहरा रहे परचम : छोटे शहरों में खुल रहे संस्थानों का ही नतीजा है कि वहां से निकलकर मल्टीनेशनल कंपनियों में लड़के परचम लहरा रहे हैं। इंग्लिश स्टडी सेंटर के निदेशक रामबिहारी ¨सह ने कई ऐसे छात्रों के नाम गिनाए जो उनके संस्थान से पढ़कर आज मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छी तनख्वाह पर कार्यरत हैं। श्री ¨सह के अनुसार कभी उनके यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले विनोद कुमार अमेरिका की एक कंपनी में अभियंता के पद पर है तो उनके यहां का छात्र दीपक कुमार मर्चेन्ट नेवी में हांककांग में कार्यरत है। इसी तरह नितू, विभा व कंचन भी कहीं न कहीं अच्छे पद पर कार्यरत हैं।
कम फीस बन रही बड़ी वजह : बड़े शहरों के माफिक छोटे शहरों में स्थित को¨चग संस्थानों की फीस का कम होना भी छात्रों के लिए बड़ी वजह है। इसी का नतीजा है कि छात्र बाहरी संस्थानों की अपेक्षा स्थानीय संस्थानों को तरजीह दे रहे हैं। सबसे बड़ी बात कि खर्च कम होने के कारण गरीब छात्रों को भी पढ़ने का मौका मिल रहा है। ऐसे में छोटे शहर बड़े ख्वाब के गवाह बन रहे हैं।