चोरी छिपे पहुंच रहे प्रवासियों पर गांव वाले रख रहे नजर
जगदीशपुर अनुमंडल क्षेत्र का आयर गांव। सुबह के 10 बजे। प्रियरंजन सिंह उर्फ डब्ल्यू सिंह के दलान पर पंचायत बैठी है।
आरा। जगदीशपुर अनुमंडल क्षेत्र का आयर गांव। सुबह के 10 बजे। प्रियरंजन सिंह उर्फ डब्ल्यू सिंह के दलान पर पंचायत बैठी है। पंचायत में नीलू सिंह, गोरखनाथ पंडित, विनोद सिंह, रामायण मुसहर, प्रिस, गुड्डू समेत 10 ग्रामीण चौकी पर बैठे हैं। मास्क पहने और शारीरिक दूरी बनाए हुए हैं। मसकद है लॉकडाउन के कारण आ रहे प्रवासियों को गांव में चोरी छिपे घुसने से रोकना। उनका स्वास्थ्य परीक्षण कर उन्हें क्वारंटाइन सेंटर पहुंचाना। इनके पास गांव से बाहर काम करने गए लोगों की सूची भी है। गांव के सभी प्रवासी इनके रडार पर हैं।
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कहते हैं ग्रामीण:
ग्रामीण प्रियरंजन सिंह कहते हैं कि कई प्रवासी चोरी छिपे गांवों में अपने घर पहुंचाने के फिराक में रहते हैं। यहां गांव में हर आने-जाने वाले का हिसाब रखा जाता है। जो अभी तक गांव नहीं पहुंचे हैं, उनसे मोबाइल नंबर से संपर्क साधा जाता है। उनको स्वस्थ्य रहने के लिए हौसला अफजाई की जाती है। सफर को संक्रमण से बचाव करते तय करने की नसीहत दी जाती है। पंचायत में कौन कहां से आया है और कहां रहता था। सबका आंकड़ा है।
रेड जोन से आया है अथवा ग्रीन जोन से इसका भी ख्याल रखा जाता है। शासन प्रशासन अपना काम कर रहा है और गांव वाले अपनी भूमिका निभा रहे हैं। पंचायत में वैसे युवक भी शामिल हैं, जो चुपके से गली पर नजर रखते हैं।
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इन पर रखी जाती है विशेष नजर:
नजर उन लोगों पर विशेष रूप से रखी जा जाती है, जो दूसरे राज्यों में काम-धंधा करने के लिए गए थे। उनकी पैनी नजर उन लोगों पर टोह लगाई रहती है, जो गांव में चुपके से घुसने के फिराक में रहते हैं। हालांकि उनके घर वाले भी उन्हें घर में प्रवेश की इजाजत नहीं देते हैं। खास ध्यान उन लोगों पर रहती है, जिनका घर गांव के बाहर स्थित है।
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17 पट्टी और दो हजार की आबादी वाला है गांव:
17 पट्टी और दो हजार की आबादी वाले इस गांव के तीन सौ लोग बड़े शहरों में मेहनत-मजदूरी करते थे। इनमें से अब तक 150 से अधिक लौटे आए हैं और शेष का आना जारी है। आयर गांव में जिस तरह लोग कोविड-19 से बचाव के जुगत में जुट हैं, उसे गौर से समझने पर इस बात की तसल्ली मिल जाती है कि कहीं कोई मायूसी नहीं है। इनका आत्मविश्वास और उत्साह देख एक सुखद उम्मीद बंध जाती है। उम्मीद इस बात की कि भारत लड़ना और जीतना जानता है। हरे भरे जंगलों के बीच अलग-अलग बस्तियां में इसकी बसाहट है। बसावट ऐसी कि दूर-दूर बने घर मानो फिजिकल डिस्टेंसिग का पाठ पढ़ा रहे हों। रामायण मुसहर ने बताया कि गांव में प्रवेश के सभी रास्ते पर हमारी नजर रहती है। हर अनजान चेहरे से पूछताछ होती है। शंका के निराकरण तक प्रवासी को गांव से बाहर ही रखा जाता है।
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ग्रामीणों ने और अधिक बढ़ा दी है सर्तकता:
जिले में प्रवासियों के अनवरत आने और जिले में भी संक्रमितों की संख्या बढ़ने से गांव वाले और अधिक सर्तक हो गए हैं। गांव में कोरोना का साया तक नहीं पहुंचे, इसकी रणनीति बनाई है। उन्हें उम्मीद है कि सब कुछ ठीक रहेगा, गांव का एक भी व्यक्ति संक्रमण के आगोश में नहीं आएगा। चितरंजन प्रसाद सिंह ने बताया कि अपने स्तर पर सरकार सर्तकता बरती रही है, लेकिन हमारा भी तो कुछ फर्ज बनाता है। है। बिना स्वास्थ्य परीक्षण अथवा क्वारंटाइन के चोरी छिपे घर पहुंच रहे लोगों से खतरा है। दूसरे शहर से सैकड़ों मीलों पैदल, साइकिल, ट्रक और ट्रेन पर से लोग आ रहे हैं। उन्हें कहीं से भी संक्रमण हो सकता है। क्वारंटाइन करके हमलोग गांव के साथ अपने देश और समाज को बचा सकते हैं। डब्ल्यू सिंह कहते हैं कि कोविड 19 के संक्रमण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए विशेष सजगता की जरूरत है।