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लोगों की प्यास बुझाने को बना था कुआं और ऊपर घंटाघर

शहर का अतिव्यस्त इलाका गोपाली चौक और चौक पर बना घंटाघर आरा शहर की पहचान है। हालांकि वक्त के साथ घड़ियां यहां से गायब हो गईं और घंटाघर की दीवारें अनदेखी से सिसक रहीं हैं। कहा जाता है कि वर्ष 1960 के आसपास अन्य शहरों की तर्ज पर साधु मौनी बाबा ने जन सहयोग से घंटा घर का निर्माण करवाया था। इससे पूर्व इसी के नीचे कुआं हुआ करता था जहां आसपास के गांवों से आरा शहर आने वाले राहगीर अपनी प्यास बुझाते थे।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Jul 2022 11:42 PM (IST)Updated: Fri, 01 Jul 2022 11:42 PM (IST)
लोगों की प्यास बुझाने को बना था कुआं और ऊपर घंटाघर
लोगों की प्यास बुझाने को बना था कुआं और ऊपर घंटाघर

शमशाद 'प्रेम', आरा : शहर का अतिव्यस्त इलाका गोपाली चौक और चौक पर बना घंटाघर आरा शहर की पहचान है। हालांकि, वक्त के साथ घड़ियां यहां से गायब हो गईं और घंटाघर की दीवारें अनदेखी से सिसक रहीं हैं। कहा जाता है कि वर्ष 1960 के आसपास अन्य शहरों की तर्ज पर साधु मौनी बाबा ने जन सहयोग से घंटा घर का निर्माण करवाया था। इससे पूर्व इसी के नीचे कुआं हुआ करता था, जहां आसपास के गांवों से आरा शहर आने वाले राहगीर अपनी प्यास बुझाते थे।

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आज इसकी देखरेख में लापरवाही का आलम यह है कि कब यह टूट कर जमींदोज हो जाएगा और जान-माल का भारी नुकसान होगा, यह कोई नहीं जानता। इलाके के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में गोपाल जी नामक एक शख्स ने यहां कुआं खुदवाया था। उन्हीं के नाम पर यहां का नामकरण भी हुआ। कुछ लोग गोपाल जी को साधु तो कुछ लोग व्यवसायी बताते हैं। जिले के कोने-कोने से शहर में आने वाले लोग इसी कुआं के पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। बाद में स्थानीय दुकानदारों द्वारा पानी पिलाने के लिए एक व्यक्ति को रखा गया था। तब शहर लोग बैलगाड़ी अथवा टमटम से आते थे, इसलिए कुआं के पास ही एक नाद बना हुआ था, जिसमें पशुओं के पीने के लिए पानी रहता था।

घंटा घर निर्माण में मौनी बाबा ने निभाई अहम भूमिका

व्यवसायी श्रीनाथ गुप्ता ने बताया कि कुआं के ऊपर घंटा घर के निर्माण को लेकर स्थानीय लोगों व दुकानदारों की एक बैठक हुई थी। करमन टोला के समीप एक मंदिर में रहने वाले मौनी बाबा की इसके निर्माण में अहम भूमिका थी। लगभग 60-65 साल पूर्व इसका निर्माण हुआ था। उक्त स्थल पर गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर झंडोत्तोलन का कार्यक्रम होता था। तत्कालीन वार्ड पार्षद अली हुसैन समेत अन्य झंडोत्तोलन करते थे। वहीं, शिक्षक व साहित्यकार रणजीत बहादुर माथुर ने बताया कि नगर पालिका के तत्कालीन चेयरमैन महंत महादेवानंद गिरि की सलाह पर मौनी बाबा ने इसका निर्माण कराया था। फिर इसके ऊपर में चारों तरफ इलेक्ट्रानिक घड़ी लगाई गई थी। लोग इस घड़ी से समय देखते थे। बाद में घड़ी खराब होने के कारण उन्हें हटा दिया गया।

धरना-प्रदर्शन का केंद्र रहा है उक्त स्थल

गोपाली चौक आजादी के बाद से धरना प्रदर्शन का केंद्र रहा है। समाजसेवी सुशील कुमार ने बताया कि उक्त स्थल पर धरना-प्रदर्शन होते रहा है। आज भी यह सिलसिला जारी है। घंटा घर का मंदिर नुमा निर्माण होने पर आंदोलनकारियों द्वारा विरोध का स्वर भी उभरा था।

कलक्टर याहिया खां को दी गई थी फांसी

गोपाली चौक इतिहास से भी जुड़ा है। हालांकि, तब इसका नामकरण गोपाली चौक के रूप में नहीं हुआ था। समाजसेवी सुशील कुमार ने बताया कि 1857 के संग्राम के बाद वीर कुंवर सिंह ने शाहाबाद मुख्यालय पर कब्जा कर याहिया खां को यहां का कलक्टर बनाया गया। अंग्रेजों द्वारा पुन: जिला मुख्यालय पर कब्जा करने के बाद यहीं याहिया खां को फांसी पर चढ़ा दिया था। यह चौक तब शहर तब आरा के केंद्र में था और सार्वजनिक रूप से चौक पर फांसी देकर अंग्रेज संदेश देना चाहते थे।


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