Move to Jagran APP

नाटक अभिव्यक्ति का प्रमुख व सशक्त माध्यम

नाटक अभिव्यक्ति का एक प्रमुख व सशक्त माध्यम है। इसका इतिहास प्राचीन है। बहुत पहले लोगों का नाटकों से गहरा लगाव था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 06 Mar 2020 10:28 PM (IST)Updated: Sat, 07 Mar 2020 06:10 AM (IST)
नाटक अभिव्यक्ति का प्रमुख व सशक्त माध्यम
नाटक अभिव्यक्ति का प्रमुख व सशक्त माध्यम

आरा। नाटक अभिव्यक्ति का एक प्रमुख व सशक्त माध्यम है। इसका इतिहास प्राचीन है। बहुत पहले लोगों का नाटकों से गहरा लगाव था। इसमें अभिनय से लेकर आयोजन तक में बढ़-चढ़कर एक बड़ी तादाद सक्रिय रहती थी। इसके प्रति अधिकतर लोगों का समर्पण होता था। लेकिन धीरे-धीरे इसमें कमी आती जा रही है। नाटक के कलाकार जैसे ही अवसर मिल रहा है सीरियल व फिल्मों की ओर रूख कर रहे हैं। कभी लोग टिकट खरीदकर नाटक देखना पसंद करते थे। दर्शकों से प्रेक्षागृह भरा रहता था। लेकिन अब तो पास देने पर भी लोग प्रेक्षागृह तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। भोजपुर नाट्य महोत्सव में देश के विभिन्न प्रदेशों आए कलाकारों से इस मुद्दे पर बातचीत हुई। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश।

loksabha election banner

-----------

फोटो फाइल

06 आरा 63

------------

आज जो लोग नाटक कर रहे हैं वह दर्शक के लिए नहीं बल्कि प्रोफेशनल बनने के लिए कर रहे हैं। जिसकी वजह से वह पब्लिक को जोड़ नहीं पा रहे हैं। लोग रोजी-रोटी की तलाश में व्यस्त हो गए हैं। स्क्रीप्ट का चयन भी बढि़या नहीं किया जा रहा है। टीवी व मोबाइल ने भी रंगमंच को प्रभावित किया है। सैयद तनवीर इमाम, सचिव, आर्टिस्ट एसोसिएशन ऑफ बंगाल

-----------

फोटो फाइल

06 आरा 61

------------

आज आयोजक मंडल लोक कलाकारों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। नाटकों के मंचन के लिए सुविधाजनक प्रेक्षागृह का अभाव है। नाटकों का व्यवसायीकरण नहीं हो पाया है। पैसा नहीं मिलने के कारण कलाकार रंगमंच से जुड़ नहीं पा रहे हैं। वशिष्ठ प्रसाद सिन्हा, निर्देशक, कला निकेतन, भुली, धनबाद

-----------

फोटो फाइल

06 आरा 62

------------

लोगों को लगता है कि नाटक करने से कोई लाभ नहीं है। क्योंकि कोई भी काम करने से पैसा मिलने से लोग प्रोत्साहित होते हैं। लेकिन इसमें घर से ही पैसा लगाना पड़ता है। दर्शकों की भावनाओं व समाज की समस्याओं से जोड़कर नाटक करना होगा। गीता कैथ, सदस्य, स्टैपको, नाहन, हिमाचल प्रदेश

-----------

फोटो फाइल

06 आरा 65

------------

टीवी और रीजनल फिल्मों ने नाटकों को प्रभावित किया है। जिस तरह से गांव के लोग रोजगार के चक्कर में शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। उसी प्रकार नाटक के कलाकार टीवी के सीरियल की ओर पलायन कर रहे हैं। प्रेक्षागृह इतना महंगा हो गया है कि नाटक करना मुश्किल हो गया है। अनुज कुमार श्रीवास्तव, महासचिव, ड्रामेटिक एसोसिएशन ऑफ टाटा इम्पलाई, जमशेदपुर

-----------

फोटो फाइल

06 आरा 64

------------

नाटकों का व्यवसायीकरण नहीं होने के कारण अब बहुत कम लोग इससे जुड़ पा रहे हैं। जिन लोगों में नाटक करने का शौक वे रोजी-रोटी की तलाश में इतने व्यस्त हो जा रहे हैं कि नाटक करना भूल जा रहे हैं। अगर नाटक करने से पैसा मिलने लगेगा इससे लोग दूर नहीं हो पाएंगे। वीणा लता, अभिनेत्री, मालेम कल्चरल इंस्टिच्यूट, मणिपुर

-----------

फोटो फाइल

06 आरा 66

------------

छोटे शहरों में रंगमंच की सहायता करने वाले लोगों की कमी है। हिन्दी रंगमंच पूरी तरह व्यवसायिक नहीं हो पाया है। टीवी व सीरियल की तरफ लोगों को झुकाव अधिक हुआ है। आखिर कब तक कलाकार घर फूंक कर तमाशा देखेंगे। सलीम राजा, सचिव, सेतु सांस्कृतिक केन्द्र, वाराणसी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.