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अपने बच्चों की सुध लेने कभी बक्सर नहीं पहुंची भोजपुर की समिति

भोजपुर की बाल कल्याण समिति कितनी संवेदनशील है या अपने दायित्वों के प्रति सचेत है इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रावधान के बावजूद बक्सर के बाल गृह में रह रहे अपने पांच बच्चों की सुध लेने आज तक नहीं पहुंची।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 10:38 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 10:38 PM (IST)
अपने बच्चों की सुध लेने कभी बक्सर 
नहीं पहुंची भोजपुर की समिति
अपने बच्चों की सुध लेने कभी बक्सर नहीं पहुंची भोजपुर की समिति

आरा। भोजपुर की बाल कल्याण समिति कितनी संवेदनशील है या अपने दायित्वों के प्रति सचेत है, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रावधान के बावजूद बक्सर के बाल गृह में रह रहे अपने पांच बच्चों की सुध लेने आज तक नहीं पहुंची। जबकि इस समिति को प्रत्येक माह अपने बच्चों की देखभाल के लिए बालगृह का निरीक्षण करने का अधिकार और प्रावधान है। यह समिति पिछले आठ माह में एक बार भी अपने कर्तव्य एवं दायित्व के पालन में वहां नहीं पहुंची है। जबकि इसके लिए बक्सर की बाल कल्याण समिति ने भोजपुर की समिति को बाल गृह में अपने बच्चों से मिलने आने तथा निरीक्षण के लिए दो बार पत्र भेजकर आग्रह कर चुकी है। प्रावधान के अनुसार लोकल में समिति को एक माह में दो बार अर्थात 15-15 दिनों पर निरीक्षण करना अनिवार्य है। बाहर के जिलों में संबंधित जिले के बच्चों के आवासित होने की स्थिति में एक बार निरीक्षण करना अनिवार्य है। यही नहीं समिति को प्रत्येक माह हाई कोर्ट एवं बिहार सरकार को अपने निरीक्षण से संबंधित प्रतिवेदन ऑनलाइन भेजना भी अनिवार्य है। तमाम नियम और प्रावधान को दरकिनार कर यह समिति कैसे आज तक कार्यरत है, जिसे अपने कर्तव्य बोध का भी ज्ञान नहीं है। उसे एक दिन भी अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। इससे संबंधित पदाधिकारी भी कम दोषी नहीं हैं, जो जानबूझकर अथवा अनजाने में इस छूट के लिए जिम्मेवार हैं। जिले की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष मनोज प्रभाकर से इस बाबत बात करने की कई बार कोशिश की गई, परंतु वे कॉल को रिसीव नहीं कर रहे हैं।

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समिति का तीन वर्ष का होता है कार्यकाल:

विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान एवं बाल गृह में पलने वाले और आश्रय लेने वाले बच्चों की देखभाल और नियम संगत सभी सुविधा और संसाधनों को उन तक पहुंचाने के लिए गठित बाल कल्याण समिति सभी जिलों में कार्यरत है। इसके लिए राज्य सरकार के कल्याण विभाग के अधीन संचालित इस समिति का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है। जिसमें अधिकतम अध्यक्ष समेत पांच सदस्य और कम से कम अध्यक्ष समेत तीन सदस्य होते हैं। वर्तमान सत्र के लिए गठित भोजपुर की बाल कल्याण समिति का कार्यकाल आठ माह हो चुका है।

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कार्यकाल और कार्य प्रणाली संतोषप्रद नहीं होने पर विभाग तत्काल कर सकता है समिति को भंग:

बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग के अधीन संचालित बाल कल्याण समिति का कार्यकाल एवं कार्य प्रणाली संतोषप्रद नहीं होने पर समाज कल्याण विभाग कभी भी समिति को भंग कर सकता है। यह अधिकार बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग में निहित है।

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तीन सदस्यीय है भोजपुर की बाल कल्याण समिति:

भोजपुर की बाल कल्याण समिति तीन सदस्यीय हैं। जिसके अध्यक्ष मनोज प्रभाकर बनाए गए हैं। इसके अलावा दो अन्य सदस्य समिति में शामिल हैं। बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग ने इस समिति का गठन किया है।

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समिति पर प्रतिमाह सरकार का खर्च होता है 90 हजार:

राज्य सरकार के समाज कल्याण विभाग के अधीन संचालित भोजपुर की बाल कल्याण समिति पर सरकार प्रतिमाह लगभग 90 हजार रुपए खर्च करती है। प्रत्येक सदस्य समेत अध्यक्ष को प्रतिमा लगभग 30 हजार रुपए का भुगतान 20 बैठकों के लिए किया जाता है। प्रत्येक बैठक पर अध्यक्ष समेत सभी सदस्यों को पंद्रह सौ निर्धारित किया गया है, जो अधिकतम 20 बैठकों के लिए मान्य है और राशि का भुगतान किया जाता है।


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