स्वच्छता को ले मानव जीवन पर पड़ेगा सकारात्मक प्रभाव
लॉकडाउन से लगता है कि जिदगी ठहर सी गई है। कोरोना से बचाव करते 42 दिन गुजर गए। इस दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
आरा। लॉकडाउन से लगता है कि जिदगी ठहर सी गई है। कोरोना से बचाव करते 42 दिन गुजर गए। इस दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बहुत नुकसान भी हुआ। मगर इस नकारात्मक माहौल में सकारात्मक पहलू भी देखने को मिले। सूर्यपुरा, बिक्रमगंज के पारस नाथ सिंह अब शौच के बाद हाथ धोने के लिए मिट्टी नहीं, लाइफबॉय साबुन का इस्तेमाल करते हैं। एक बार नहीं, जब-जब कुछ खाना-पीना होता है, तब-तब हाथ साबुन से धोते हैं। हाथ धोना उनकी आदत में शुमार होते जा रहा है। उसी तरह कोरोना अपने कहर और खौंफ के बीच सकारात्क बदलाव का भी संकेत दिया है। जैसे जाड़े हो अथवा गर्मी हर मौसम में नियमित सैर करते हैं। दरअसल जब हम कोई काम लंबे समय तक करेंगे तो हम उसके आदी हो जाते हैं। कोरोना के बहाने हमारे जीवन में साफ-सफाई, आचार-विचार और कार्य व्यवहार से लेकर हर क्षेत्र में कई बदलाव आया है। खान-पान और जीवन शैली भी बदल गया है। किसी के सम्मान में हाथ मिलाना बंद करके दूर से नमस्ते कर रहे हैं। घर से निकलते ही मास्क पहन लेते हैं। अगर मास्क नहीं है तो गमछी और महिलाएं आंचल अथवा दुपट्टा का इस्तेमाल करने लगी हैं। बाहर के फास्ट फूड को तौबा कर दिए हैं। आलम है कि घर के खाद्य ही उपयोग करने लगे हैं। कोरोना के प्रकोप के दौरान हमलोग यह सब घटते देख रहे हैं। यानि हमने स्वयं बदलाव नहीं किया, बल्कि हमें प्रकृति ने मजबूर किया है। डर के कारण ही सही, लेकिन स्वास्थ्य के लिए अच्छी बात है। स्वास्थ्य के लिए इन आदतों को हमें भविष्य में जारी रखना होगा। इसका प्रतिफल प्रदूषण कम हुआ है। वीर कुंवर सिंह विवि के मनोवैज्ञानिक डा. केसी चौधरी ने कहा कि कोई व्यक्ति हाथ धोकर अपने व्यक्तिगत जोखिम को कम कर सकता है। यह कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए आवश्यक शर्त बन गई है।
-------------
फिलहाल कोरोना के साथ होगा जीना
-वीर कुंवर सिंह विवि के सहायक प्रोफेसर डा. शैलेश कुमार का मानना है कि हमें अभी कोरोना के संग ही जीना होगा, जब तक कि इसका टीका विकसित नहीं हो जाता। कोरोना हारेगा लेकिन यह लड़ाई अभी लंबी चलेगी। उन्होंने बताया कि जिन देशों में लोग सफाई और संक्रमण को लेकर सर्तक हैं। उन देशों में कोरोना नहीं के बराबर है। जापान में लोग सदैव मास्क पहनते हैं। इसलिए वहां कोरोना का असर नहीं के बराबर रहा। जो काम हमारा स्वच्छ भारत अभियान नहीं कर पाया, उसे कोरोना लोगों से सहज रूप में करा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रत्येक साल हैंड हाईजीन डे मनाता है, ताकि हमारी आदत बदल जाए। यह मात्र औपचारिकता था, लेकिन अब हमलोग इसे सख्ती से पालन करते हैं। एक प्रकार से स्वच्छ भारत का अभियान सफल होता दिख रहा है।