दीया बनाने वालों की जिन्दगी हुई बेरौशन
संवाद सहयोगी, पीरो (भोजपुर) : मिट्टी के दीप बनाकर दूसरों को रोशनी प्रदान करने वालों की
संवाद सहयोगी, पीरो (भोजपुर) : मिट्टी के दीप बनाकर दूसरों को रोशनी प्रदान करने वालों की खुद की जिदंगी पूरी तरह बेरौशन होते जा रही है। इस पेशे से जुडे़ परिवार आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। इन्हें अपना कारोबार बढ़ाने के लिए न तो सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहायता मिलती है और न समुचित प्रोत्साहन। ऐसे में इनका कारोबार लगातार पिछड़ता जा रहा है। एक जमाने में अपने इसी पेशे से पूरे परिवार का खर्च चलाने वाले लोग भूखमरी के शिकार हो चले हैं। इस पेशे से अब इन्हें इतनी आमदनी नहीं होती कि ये खुद और अपने परिवार का भरण पोषण कर सके। एक परिवार के सभी सदस्य मिलकर भी इतना अर्थोपार्जन नहीं कर पाते कि सबका पेट भर सके। दरअसल आधुनिकता के चकाचौंध में लोग अब मिट्टी के दीयों एवं बर्तनों की जगह फाइबर एवं दूसरे पदाथरें से बने दीयों एवं दूसरे विकल्पों का उपयोग करने लगे हैं जिससे यह स्थिति पैदा हुई हैं।
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मिट्टी के दीयों व मूर्तियों की घटी माग :
वर्तमान समय में बाजार में इलेक्ट्रानिक दीयों एवं ऐसे ही दूसरे प्रकाश देने वाले बिजली बत्ती के उपकरणों की भरमार की वजह से कुम्हारों के हाथ के बने मिट्टी के दीया, बर्तनों एवं मूर्तियों की माग बहुत कम रह गई है जिससे इस पेशागत कारोबार में लगे परिवारों की आमदनी घटती जा रही है।
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इलेक्ट्रानिक सामानों के प्रति बढ़ा आकर्षण :
मिट्टी के दीयों, मूर्तियों एवं बर्तनों के विकल्प के तौर पर नये एवं आधुनिक किस्म के इलेक्ट्रानिक दीयो, बर्तनों एवं मूर्तियों से बाजार पटा पड़ा है और आम से लेकर खास तबके में ऐसे आधुनिक समानों के प्रति आकर्षण तेजी से बढ़ा है जिस कारण मिट्टी के दीयों एवं दूसरे समानों की मांग नहीं हो रही है जो कुम्हारों के पेशे के लिए खतरा साबित हो रहा है।
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नहीं मिलती सरकारी सहायता :
मिट्टी के दीया, बर्तन एवं मूर्ति बनाने वाले परिवारों को सरकार की ओर से न कोई आर्थिक सहायता मिलती है और न समुचित प्रोत्साहन ही मिलता है। वैसे केन्द्र एवं राज्य की सरकारें कला एवं शिल्प से जुड़े लोगों को सरकारी सहायता एवं प्रशिक्षण देने की बात करती है पर जमीनी हकीकत यह है कि सरकार की ऐसी किसी योजना का लाभ इन परिवारों को नहीं मिलती है।