संगीत के क्षितिज पर आरा को स्थापित किया ललन जी ने
आरा शहर का कला-संस्कृति से प्राचीन संबंध है। प्राचीन समय से ही शहर के कई ऐसे कलाकार रह
आरा शहर का कला-संस्कृति से प्राचीन संबंध है। प्राचीन समय से ही शहर के कई ऐसे कलाकार रहें, जिनकी कला का राष्ट्रीय मंचों पर लोगों ने सराहा। शहर के कलाकारों ने जहां एक ओर देश के विभिन्न अखिल भारतीय संगीत सम्मेलनों में अपनी कला का प्रदर्शन किया, वहीं दूसरी ओर स्थानीय कलाकारों व संगीत प्रेमियों ने राष्ट्रीय स्तर के संगीत सम्मेलनों की मेजबानी भी की। उनमें से एक हैं शत्रुंजय प्रसाद सिंह उर्फ बाबू ललन जी।
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बचपन से ही संगीत से था लगाव : बाबू ललन जी का जन्म 27 जुलाई 1901 ई. को स्थानीय जमीरा के जमींदार हित नारायण सिंह के यहां हुआ। बाबू ललन जी को बचपन से ही संगीत की ओर झुकाव था। पिता ने अपने पुत्र की इस अभिरूचि को परख संगीत की तालीम दिलवाई। बाबू ललन जी ने पं. देवकी नंदन पाठक(रैपुर, बलिया) से मृदंग और विभू मिश्रा(बनारस घराना) व उस्ताद हसन बक्स खां(कराची, पाकिस्तान) से तबला की बारीकियों को सीखा। उस समय जब हित नारायण सिंह ध्रुपद गाया करते थे तो बाबू ललन जी मृदंग पर संगत किया करते थे।
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गुरु शिष्य परंपरा का केन्द्र थी बाबू ललन जी की कोठी :
बाबू ललन जी की जमीरा कोठी में स्थानीय कलाकारों के अलावे दूर-दरार के कलाकारों से गुलजार होने लगी। यह कोठी देखते ही देखते गीत-संगीत के केन्द्र में तब्दील हो गई। यहां निश्शुल्क संगीत की शिक्षा व खाने-पीने की व्यवस्था के कारण बाहरी और स्थानीय कलाकारों को खूब स्नेह मिला, जिसकी वजह से यहां एक समृद्ध गुरु-शिष्य परंपरा की नींव भी पड़ गई। बाबू ललन जी के जीवन काल में कोठी के हाल में प्रत्येक शनिवार को संगीत की गोष्ठी होती थी, जिसमें स्थानीय के अलावे राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों की प्रस्तुति होती थी। वहीं इनकी देखरेख में कई स्थानीय कलाकारों ने राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में शामिल होने का गौरव प्राप्त किया। बाबू ललन जी में तबला व मृदंग के बोलों को विभिन्न शैलियों में गढ़ने की अद्भुत क्षमता थी। वे लय को साक्षात देखते थे। इनका पढं़त अद्भुत और वादन शैली बहुत ही मधुर व स्पष्ट थी।
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कई पुरस्कारों से सम्मानित हुए बाबू ललन जी :
बाबू ललन जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू के समक्ष और देश के प्रमुख शास्त्रीय संगीत के आयोजनों में अपने वादन की बदौलत जनपद व प्रदेश का नाम रोशन किया। राष्ट्रपति पुरस्कार, राज्यपाल पुरस्कार, मार्गदर्शिका चक्र, चूड़ामणि लय भास्कर समेत अन्य पुरस्कारों से सम्मानित थे बाबू ललन जी।
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बाबू ललन जी और संगीत सम्मेलन की परंपरा :
बाबू ललन जी की बदौलत जमीरा और आरा प्रमुख संगीतज्ञों का संगम स्थल बना। बाबू ललन जी गीत-संगीत की परंपरा को बहुत दूर तक ले जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 'मारुत नंदन शाहाबाद संगीत संघ' की स्थापना की। इसी संघ के द्वारा 1950 में शहर के रूपम सिनेमा हाल के मंच से अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन की शुरुआत की गई। तदोपरांत शहर के मोहन सिनेमा हाल, जैन कालेज आदि में कई संगीत सम्मेलन आयोजित किये गये। इसमें उस दौर के राष्ट्रीय स्तर के तमाम कलाकार भाग लेते थे।
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आम से खास परिवार के थे शिष्य :
बाबू ललन जी लोगों को संगीत से जोड़ने का हमेशा प्रयास करते थे। उनके शिष्य-शिष्याओं में आम से खास परिवार के लोग रहते थे। शहर के सभ्रांत परिवार की लड़कियों के संगीत की तालीम के लिए संघ के तत्वावधान महादेवा में संगीत विद्यालय की नींव रखी गई। वर्तमान समय में श्री शत्रुंजय संगीत विद्यालय मानसरोवर कॉलनी में संचालित होता है। 9 अगस्त 1961 ई. को एक कार दुर्घटना में बाबू ललन जी का निधन हो गया। शहर की प्राचीन संगीत परंपरा को आगे बढ़ाने में कई कलाकार व संगीत प्रेमी सक्रिय हैं।