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आजीवन साहित्य के प्रति समर्पित रहे मुशर्रफ आलम जौकी

भोजपुर उर्दू व हिन्दी के मशहूर साहित्यकार मुशर्रफ आलम जौकी ने नए साल के स्वागत में2021 एक नई सुबह की शुरुआत करेंअपने लेख में लिखा था कि मैं इतनी बुरी दुनिया की कल्पना नहीं कर सकता। क्या वास्तव में वायरस थे या फिर महा शक्तियों ने दुनिया को मूर्ख बनाना शुरू कर दिया? अब मुझे एहसास हो रहा है कि वायरस ने इस दुनिया में एक भयानक खेल की नींव रखी है..।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 11:07 PM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 11:07 PM (IST)
आजीवन साहित्य के प्रति समर्पित रहे मुशर्रफ आलम जौकी
आजीवन साहित्य के प्रति समर्पित रहे मुशर्रफ आलम जौकी

भोजपुर: उर्दू व हिन्दी के मशहूर साहित्यकार मुशर्रफ आलम जौकी ने नए साल के स्वागत में'2021: एक नई सुबह की शुरुआत करें'अपने लेख में लिखा था कि मैं इतनी बुरी दुनिया की कल्पना नहीं कर सकता। क्या वास्तव में वायरस थे या फिर महा शक्तियों ने दुनिया को मूर्ख बनाना शुरू कर दिया? अब मुझे एहसास हो रहा है कि वायरस ने इस दुनिया में एक भयानक खेल की नींव रखी है..। मुशर्रफ आलम जौकी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि कोरोना के कारण असमय ही दुनिया को अलविदा कह देना पड़ेगा। कोरोना के साथ जारी जंग में सोमवार को वे हार गए। मुशर्रफ साहब अब इस दुनिया में नहीं रहे, देश ही नहीं विदेश में भी जिसने सुना अफसोस जाहिर किया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी मुशर्रफ आलम जौकी ने कहानी, उपन्यास, नाटक, समीक्षा, टीवी सीरियल समेत अन्य क्षेत्रों में अहम भूमिका निभाई। इनकी कहानियां और उपन्यास भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी काफी लोकप्रिय हुए। कई पत्र-पत्रिकाओं में बतौर संपादक के अलावा लगातार स्तंभकार के रूप में अपनी भूमिका निभाई।

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मुशर्रफ आलम जौकी का जन्म 24 नवंबर 1963 को आरा (बिहार) में हुआ था। मगध विश्वविद्यालय, गया (बिहार) से हिस्ट्री में एमए किया। इनके पिता स्व. मशकूर आलम एक चर्चित शायर थे। लेकिन मुशर्रफ साहब का शुरू से ही कहानी की तरफ झुकाव था। वे 90 के दशक में दिल्ली गए थे और वहीं बस गए थे। लेकिन अपनी जन्मभूमि आरा से उनका गहरा लगाव था। जो विभिन्न माध्यमों से आरा के लोगों से हमेशा संपर्क में रहा करते थे। आरावासियों को इन पर काफी गर्व था। गत साल वे आरा आए थे। उस दौरान आरा में एनआरसी व सीएए के खिलाफ जारी आंदोलन में भी शिरकत किए थे। उनके द्वारा देश के मौजूदा हालात पर व्यक्त किए गए विचारों को लोगों ने काफी सराहा था।

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प्रमुख कृतियां : इनके दर्जनों कहानी संग्रह, उपन्यास, समीक्षा आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास में नीलम घर, शहर चुप है, मुसलमान, जिबह, अकूब की आंखें, बयान, पोकमोन की दुनिया, प्रो. एस.की अजीब दास्तान, ले सांस भी आहिस्ता, आतिशे, नाला-ए-शबगीर, मर्ग अंबोह, मुर्दाखाने आदि हैं। उर्दू कहानी संग्रहों में भूखा इथोपिया, गुलाम बक्श, मंदी, सदी को अलविदा कहते हुए, लैंड स्कैप के घोड़े, एक अंजाने खौफ के रिहर्सल, नफरत के दिनों में आदि हैं। वहीं हिन्दी कथा संग्रहों में लैबोरेटरी, फरिश्ते भी मरते हैं, बाजार की एक रात, फिजिक्स, कमेस्टी, अलजेबरा, फ्रीज में औरत, इमाम बुखारी की नैपकीन, शाही गुलदान, मत रो सालिग राम, मेरी प्रेम कहानियां आदि हैं। कविता संग्रह लेप्रोसी है। बच्चों के लिए कंगन लिखा। नाटक संग्रह गुड बाई राजनीति के अलावा नाटक एक हारे हुए आदमी का कांफ्रेंस, नफरत के दिनों में है।

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विभिन्न चैनलों में भूमिका : दूरदर्शन समेत अन्य चैनलों में भी मुशर्रफ आलम जौकी ने अहम भूमिका निभाई। इन्होंने कई सीरियल के साथ पटकथा लिखी और निर्देशन किया। इनमें आजमाईश, बे-जाद के पौधे, रात चांद और चोर, दूसरा रूख, किताबों के रंग, तलाश, स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज ऑफ यूपी, शब्द युद्ध, ए प्रोग्राम ऑन कुदीप नैयर, ख्वाजा मेरे ख्वाजा आदि है। टेली फिल्मों में पर्वत, दिखावा, सारा दिन सांझ, अंजान, रूका हुआ दर्द, नसीबन, सूरज का सफर, रंजिशे, बंदिश, आंगन की धूप आदि है। डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में इंस्टिच्यूशन ऑफ देहली, बापू के सपनों का एक शहर, यही है कश्मीर, चने की दुनिया, साहित्य अकाडमी, संगीत नाटक अकादमी, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, ए फिल्म ऑफ कथक आदि है।

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कई पुरस्कारों से हुए सम्मानित : मुशर्रफ आलम जौकी को विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए कई पुरस्कार से नवाजा गया। इनमें कृष्णचंद्र अवार्ड, कथा अवार्ड, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अवार्ड, मीलिनियम अवार्ड, सर सैयद नेशनल अवार्ड, उर्दू एकाडमी बुक अवार्ड, इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स प्रोटेक्शन एसोसिएशन अवार्ड, उर्दू अकादमी अवार्ड, उर्दू अकादमी देहली अवार्ड आदि है।


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