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बिहार में भी हुआ था एक जलियांवाला बाग कांड, यहां भी निहत्थों पर बरसीं थीं गोलियां

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बिहार के भोजपुर के एक गांव को घेरकर फिरंगी सिपाहियों ने गोलियों की बौछार कर दी थी। जलियांवाला बाग कांड की तरह की ही इस घटना की जानकारी के लिए पढ़ें खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 06:59 PM (IST)Updated: Sat, 15 Sep 2018 09:44 PM (IST)
बिहार में भी हुआ था एक जलियांवाला बाग कांड, यहां भी निहत्थों पर बरसीं थीं गोलियां
बिहार में भी हुआ था एक जलियांवाला बाग कांड, यहां भी निहत्थों पर बरसीं थीं गोलियां

भोजपुर [जेएनएन]। पंजाब के जलियांवाला बाग में लोगों को फिरंगियों ने गोलियों से भून दिया था। ऐसी ही एक घटना बिहार के भोजपुर में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हुई थी। आज ही के दिन 1942 में भोजपुर के अगिआंव प्रखंड के लसाढ़ी में अंग्रेज सिपाहियों ने हिंसा का नंगा नाच किया था। सिपाहियों ने गांव को निशाना बनाकर चारों ओर से स्टेनगनों व एलएमजी जैसे अत्याधुनिक हथियारों से गोलियों की बौछार कर दी थी। घटना में 12 लोग शहीद हो गए थे, जबकि आठ बुरी तरह जख्मी हुए थे।

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आंदोलनकारियों की शरण स्‍थली था गांव
सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन चरम पर था। उस समय भोजपुर जनपद (बिहार) का लसाढ़ी गांव भारत छोड़ो आंदोलन के कई नेताओं की शरण स्थली था। गांव के किसान अंग्रेजों से मुकाबला तो करते ही थे, साथ ही आसपास के गांव ढकनी, चासी आदि के किसानों को भी अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए प्रेरित करते थे।

कलेक्‍टर को खदेड़ा तो भड़क गई ब्रिटिश हुकूमत
गांव में एक बार जब अंग्रेज कलक्टर आया तो उसका जोरदार विरोध हुआ। ग्रामीणों ने लाठी और भाला से उसे खदेड़ दिया। इससे क्रोधित होकर ब्रिटिश पार्लियामेंट ने राय बरेली के बलूची सिपाहियों को लसाढ़ी गांव को नेस्तनाबूद करने का आदेश दिया।

ग्रामीणों ने बनाई प्रतिकार की योजना
लसाढ़ी गांव के नौजवानों को जब इसकी सूचना मिली तो वे तनिक भी भयभीत नहीं हुए। उन्होंने फिरंगी प्रशासन की चुनौती को स्वीकार करते हुए जवाब देने की योजना बनाई। तय हुआ कि जब बलूची सिपाही गांव में आयेंगे तो मिर्च की बुकनी आंखों में झोंककर बंदूकें छीन ली जाएंगी। सिपाहियों का मुकाबला परंपरागत हथियारों से किया जाएगा। ग्रामीणों ने एहतियातन गांव के पास स्थित पुल को तोड़ डाला और नहर को भी काट दिया।

फिरंगी सिपाहियों ने गांव पर ढ़ाया सितम
अंग्रेज सिपाहियों ने अपनी योजना के अनुसार 15 सितंबर 1942 को तीन बजे सुबह में गांव को चोरों ओर से घेर लिया। उन्‍होंने गांव के बाहरी हिस्से में मौजूद महादेव सिंह नामक किसान के मकान को निशाना बनाया। महादेव सिंह के परिवार वालों ने अंग्रेज सैनिकों से डटकर मुकाबला किया। साथ ही तीन सैनिकों को मार गिराया।
इससे क्रोधित सैनिकों ने गृहस्वामी की हत्या कर दी। फिर, पूरे गांव को घेरकर चारों ओर से स्टेनगनों व एलएमजी जैसे अत्याधुनिक हथियारों से गोलियों की बौछार कर दी। ग्रामीण जबतक कुछ समझ पाते, 12 लोग शहीद हो चुके थे। घटना में आठ लोग बुरी तरह जख्मी हुए। अंग्रेज सिपाहियों ने लगभग 50 लोगों को बंदूक के कुंदे से पीटा। 25 लोग जेल भेजे गए।

इन्‍होंने दी शहादत
ब्रिटिश हुकूमत की बर्बरता के खिलाफ इस ऐतिहासिक जन प्रतिरोध में लसाढ़ी, ढ़कनी व चासी गांव के महादेव सिंह, बासुदेव सिंह, जगरनाथ सिंह, सभापति सिंह, गिरिवर सिंह, रामानंद पांडेय, रामदेव साह, सीतल लोहार, केशव सिंह शहीद हुई। एक महिला अकली देवी ने भी शहादत दी।

शहीदों की याद में लगी प्रतिमाएं
15 सितंबर 1942 के शहीदों का नाम पर गांव में 1951 में एक शीलापट्ट स्‍थापित किया, जिसका उद्घाटन तत्कालीन उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम ने किया। उसके बाद कांग्रेसी नेता रामप्रीत सिंह द्वारा 9 अगस्त 1972 को एक शिलालेख लगाया गया। भाकपा (माले) के वरिष्ठ नेता रामनरेश राम जब 1995 में सहार विधानसभा से निर्वाचित हुए तो वहां गए।

वर्षों बाद 15 सितंबर 1998 को पुन: यह गांव सुर्खियों में तब आया, जब 'शहीदों के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाएंगे' के संकल्प के साथ शहीद स्मारक का शिलान्यास हुआ। साथ ही शहीद स्मारक में सभी 12 शहीदों की आदमकद प्रतिमाएं एक विशाल चबूतरे पर स्थापित करने के अलावे गांव के विकास की घोषणाएं हुईं। लसाढ़ी निवासी अरुण सिंह द्वारा जमीन व स्थानीय जनता द्वारा धन मुहैया कराया गया। सहार के तत्कालीन विधायक राम नरेश राम के विधायक कोष की राशि भी मिली। इस धन से शहीदों की आदमकद प्रतिमाओं का निर्माण हुआ। 15 सिंतबर 2000 को भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इनका लोकार्पण किया।


शहादत दिवस पर हर साल होता कार्यक्रम

कुछ सालों से यहां हर साल 15 सितंबर को सरकारी स्तर पर भी कार्यक्रम आयोजित होता है। इसे लेकर आज भी वहां चहल-पहल है। 


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