नि:संतान होने के बाद भी हजारों पुत्र के पिता हैं विजेंद्र लाल यादव, जानिए... उनकी खासियत Munger News
विजेंद्र को कोई संतान नहीं था। वे काफी परेशान रहा करते थे। 25 वर्ष पूर्व पत्नी का भी देहांत हो गया। इसके बाद तो विजेंद्र लाल यादव को अपनी ही जिंदगी बोझ लगने लगी। इसके बाद तो
मुंगेर [अबोध कुमार]। एक निसंतान व्यक्ति हजारों संतान के पिता हैं। यह सुनने में भले ही आपको थोड़ा अटपटा लगे, लेकिन पूरी तरह से सच है। सदर प्रखंड के शंकरपुर निवासी विजेंद्र लाल जीवन के 75 वसंत पार कर चुके हैं। 25 वर्ष पहले पत्नी मर गई। विजेंद्र लाल यादव को कोई संतान नहीं हुआ। इस कारण वे काफी दुखी रहा करते थे। जीवन से विल्कुल निराश हो गए। बाद में पेड़ पौधे को ही अपना संतान मान कर उसकी देखभाल करने लगे। देखते ही देखते विजेंद्र लाल यादव ने शंकरपुर पहाड़ पर एक दो नहीं हजारों पौधे लगा दिए। दिन रात पेड़ पौधों की देखभाल करने लगे। यही कारण है कि कभी उजाड़-विरान सा दिखने वाला शंकरपुर पहाड़ आज दूर से ही हरा-भरा नजर आने लगा है।
ऐसे मिली पेड़ पौधे लगाने की प्रेरणा
विजेंद्र लाल को कोई संतान नहीं था। इस कारण वे काफी परेशान रहा करते थे। 25 वर्ष पूर्व पत्नी का भी देहांत हो गया। इसके बाद तो विजेंद्र लाल यादव को अपनी ही जिंदगी बोझ लगने लगी। एक दिन वह घुमते घुमते शंकरपुर पहाड़ पर बने मंदिर की ओर जा रहे थे। तेज धूप ने उन्हें परेशान कर दिया। मंदिर पर पहुंच कर कुछ देर बैठे रहे। तभी उनके मन में यह ख्याल आया कि अगर पहाड़ पर पेड़ पौधे लगा दें, तो यहां आने वाले लोगों को परेशानी नहीं होगी। उन्होंने दूसरे ही दिन नीम के एक दो पौधे लगाए। लेकिन, गांव के कुछ बदमाश युवक पौधे को तोड़ कर दातून बना लेते, तो कुछ पौधे को बकरी एवं अन्य मवेशी चर जाया करती थी। इससे विजेंद्र लाल यादव काफी दुखी हो गए। उस समय समाजसेवी अभिमन्यु कुमार ने उन्हें प्रेरित किया। अभिमन्यु ने उन्हें समझाया- जब गलत लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं, तो आप क्यों सकारात्मक कार्य से पीछे हट रहे हैं। इस बात का असर विजेंद्र लाल यादव पर जादू की तरह हुआ। वे दोगुणी उर्जा से पहाड़ पर पौधा रोपण करने में जुट गए। वर्ष 2010 से शुरू हुआ पौधा रोपण 2019 तक जारी है।
मुंगेर के दशरथ मांझी हैं विजेंद्र लाल यादव
गया के दशरथ मांझी ने पहाड़ का सीना चीड़ कर रास्ता बना दिया। इस कारण पूरी दुनियां उन्हें माउंटेन मैन के नाम से जानने लगी। विजेंद्र लाल को लोग मुंगेर का दशरथ मांझी कहते हैं। विजेंद्र लाल पहाड़ की पथरीली भूमि में गड्ढ़ा खोद कर उसमें पौधा लगाते हैं। फिर उन पौधों में प्रत्येक दिन पानी, गोबर, वर्मी कंपोस्ट आदि डाल कर उन्हें जीवनदान देते हैं। पौधे के प्रति विजेंद्र लाल यादव के प्रेम और समर्पण की भावना का हर कोई कायल है। विजेंद्र लाल पहाड़ के नीचे से पानी लेकर दौ सौ फीट उपर चढ़ते हैं। दिन भर नीचे से पानी ढो ढो कर एक पौधे की जड़ों में डालते हैं। वहीं, पौधे के बीच ही उनका पूरा समय गुजरता है। पौधे की सुरक्षा को लेकर विजेंद्र ने पहाड़ पर बने मंदिर में रहना शुरू कर दिया। विजेंद्र ने कहा कि पहाड़ पर मैंने फलदार, कीमती इमारती लकड़ी, औषधीय पौधे आदि लगाए हैं। मेरे लिए तो यही पौधे मेरी संतान हैं। पौधे को लहलहाते देख मेरा मन खुशी से झूम उठता है। अगर कोई किसी पौधे की टहनी तोड़ देता है, तो मन दुखी हो जाता है। जब तक जीवित हूं, इन्हीं पौधे के बीच रहूंगा। विजेंद्र लाल यादव ने कहा कि अब लोगों की नजर पहाड़ की जमीन और मेरे पौधे पर है। लोग पौधे को काट कर झोपड़ी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं अधिकारियों से बस यही मांगता हूं कि मेरे संतान (पौधे) की रक्षा करें।
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