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भूगर्भीय जल के अंधाधुंध दोहन से इंसान के साथ जलीय जीवों पर भी खतरा

आबादी के बढ़ते दबाव और भूगर्भीय जल के अंधाधुंध दोहन के साथ जल संरक्षण की कारगर नीति नहीं होने के कारण पीने के पानी की समस्या साल-दर-साल गंभीर होती जा रही है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 May 2018 12:00 PM (IST)Updated: Sun, 20 May 2018 12:00 PM (IST)
भूगर्भीय जल के अंधाधुंध दोहन से इंसान के साथ जलीय जीवों पर भी खतरा
भूगर्भीय जल के अंधाधुंध दोहन से इंसान के साथ जलीय जीवों पर भी खतरा

भागलपुर [नवनीत मिश्र]

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आबादी के बढ़ते दबाव और भूगर्भीय जल के अंधाधुंध दोहन के साथ जल संरक्षण की कारगर नीति नहीं होने के कारण पीने के पानी की समस्या साल-दर-साल गंभीर होती जा रही है। सर्दियों में तो हालात सामान्य रहती हैं पर गर्मियों में पारा चढ़ते ही समस्या भी बढ़ने लगती है। शहर के अलावा आसपास के क्षेत्रों में भी समस्या साफ दिखने लगी है। इसके अलावा गंगा में प्रदूषण के कारकों के बढ़ने के साथ पानी विषैला हो रहा है। समय रहते प्रशासन और आम जनता सजग न हुई तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

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अभी तक स्वच्छ है भू-जल : भू-गर्भ से निकलने वाला जल ज्यादा प्रदूषित नहीं है। पर इसका दोहन इसी प्रकार करते रहेंगे तो स्थिति चिंताजनक हो जाएगी। शहर में तालाब लगभग खत्म हो चुके हैं। नदिया प्रदूषित हो गई हैं। उनमें जल को छानने की शक्ति क्षीण हो रही है, जिसकी वजह से पानी प्रदूषित होने की कगार पर आ चुका है। पॉलीथिन, एनटीपीसी की राख और कूड़े की डंपिंग को नहीं रोका गया तो भू-जल बहुत जल्दी प्रदूषित हो जाएगा। यह जिला यलो जोन में है।

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गंगा किनारे मंदिर के पास भी गंदगी और कूड़े का अंबार : गंगा किनारे मंदिर के पास कूड़े के ढेर लगे हुए हैं और पास ही लोग स्नान-ध्यान करते हैं। स्नान घाट पर कपड़ा धोने के कारण पानी के अंदर सल्फर और फास्फोरस की मात्रा बढ़ रही है। दूसरी ओर जमुनियां नदी गंगा में आकर मिलती है, जो कूड़े-कचरे को अपने साथ लाती है। इसमें पॉलीथीन भी काफी मात्रा में होता है। आदमपुर का नाला गंगा में मिलकर गंदगी की कसर को पूरा कर देता है। बरारी में नाला मिलने के बाद पानी हाथ में लेने लायक नहीं होता। गंगा नदी के पानी में क्लोराइड, नाइट्रेट, फॉस्फेट, हैवी मैटल्स भी मिल रहे हैं।

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गंगा के बहाव के साथ बढ़ रहा प्रदूषण : कपड़ों की रंगाई और धुलाई के बाद निकलने वाला केमिकल गंगा नदी में गिर जाता है। उससे डिजोल्व (घुलित) ऑक्सीजन की मात्र पानी में बहुत कम हो जाती है, जिससे जलीय जीवों को पूरी ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। यही कारण है कि एक-एक कर मछलियों की प्रजाति समाप्त होती जा रही है। आदमपुर में सीवेज खुला हुआ है। इसके अलावा बरारी श्मशान घाट भी है। इसकी वजह से वहा पर पानी खराब हो गया है। नदी के किनारे होने वाली खेती में खाद डालने से पलैज बारिश के बहाव के साथ पानी में मिल जाती है और उसे दूषित करती है। गंगा के आसपास की कॉलोनियों का सीवेज नदी में खुलने की वजह से पानी खराब हो रहा है। कई घाटों पर जानवर (गाय-भैंस आदि) नदी में नहलाए जाते हैं।

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पौधों पर नहीं, इंसानों पर अधिक प्रभाव : विशेषज्ञों के अनुसार नाइट्रोजन और फॉस्फोरस मिलने से पेड़ों की बढ़वार में फायदा होता है। उन पर नकारात्मक प्रभाव ज्यादा नहीं पड़ता। जब उसे जीव-जंतु खाते हैं तो वह खतरनाक होता है। बॉयलोजिकल मैग्नीफिकेशन की (पेड़-पौधों को मछलियों ने खाया तो एक ग्राम उनके अंदर पहुंचता है और यदि हम पाच मछलियों को खा लेते हैं तो पाच गुना बढ़ जाता है) फूड चेन की वजह से प्रदूषण घातक लेवल में पहुंच जाती है।

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शहर में नहीं प्रयोगशाला : विशेषज्ञों के अनुसार जल विभाग की भागलपुर में कोई रिपोर्ट दिखने को नहीं मिली है और ना ही सर्वे सामने आया है। यहा पर कोई प्रयोगशाला भी नहीं है। कॉलेज के शिक्षक और छात्र मानसून से पहले और बाद में अपने स्तर से सर्वे करते हैं। वॉटर पॉल्यूशन किट से उसकी गुणवत्ता जाचते हैं। ऑक्सीजन की जाच के लिए पानी में ही खड़े होकर प्रयोग करना पड़ता है, जबकि ई-कोली वैक्टीरिया की जाच के लिए 24 घटे में होनी चाहिए।

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पेयजल के मानक

मान यूनिट परिणाम

रंग : 05-25

पीएच : 0.5-8.5

कठोरता : 300 600

आयरन : 0.3 1.0

क्लोराइड : 250 1000

फ्लोराइड : 1.0 1.5

कैल्शियम :75 200

मैग्नीशियम : 30 100

कॉपर : .05 1.5

सल्फेट : 200 400

मरकरी : .001 .002

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भागलपुर शहर के भू-जल की रसायनिक संरचना

मानक यूनिट परिणाम

पीएच : 7.30

टीडीएस : मिग्रा/लीटर 250-750

कठोरता : मिग्रा/लीटर 272-356

अमोनिया : मिग्रा/लीटर 0.00

नाइट्रेट : मिग्रा/लीटर 1.7-8.60

क्लोराइड : मिग्रा/लीटर 51.06-200

मैग्नीशियम : मिग्रा/लीटर 27.100-40.0

जिंक : मिग्रा/लीटर .960

मरकरी : मिग्रा/लीटर .0011

आयरन : मिग्रा/लीटर 1.720-6.20

कॉपर :मिग्रा/लीटर .027-0.50

नोट. आकड़े एकत्रित पानी के सर्वे के आधार पर हैं।

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भागलपुर में किए गए भू-जल के परीक्षण के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि कुछ स्थानों को छोड़कर भारतीय जल मानक के अनुरूप हैं। भू-जल में जीवाणुओं की संख्या कम है। कृषि क्षेत्र में उपयोग में लाए जाने वाले कीटनाशकों एवं उर्वरकों के रसायन वर्षा जल में जलस्रोतों में मिल जाते हैं। दूषित जल में कार्बनडाइऑक्साइड व सल्फर डाइऑक्साइड की अधिकता से जल अम्लीय हो जाता है।

- डॉ. विवेकानंद मिश्र, रसायनशस्त्री

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इसके प्रदूषण के कारणों के उत्तरदायी कारक हमारे तौर-तरीके हैं। सबसे ज्यादा नुकसान कचरे के धुलने से होता है। उससे प्रदूषक मैग्नीशियम, जिंक पानी को प्रदूषित कर रहे हैं। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, घुलीय ऑक्सीजन तेजी से बुलबुले के रूप में बाहर आने लगते हैं। जिसके कारण मछलिया और दूसरे जलीय जीव मरने लगते हैं।

- डॉ. डीएन चौधरी, प्रोफेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग, टीएनबी कॉलेज

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पानी के अंदर जो भी प्रदूषण होगा पेट और आत को नुकसान पहुंचाएगा। दर्द, उल्टी, दस्त, बुखार की परेशानी हो सकती है। आमतौर पर टाइफाइड, हैजा की बीमारियों का खतरा बढ़ता है। पीलिया के होने की संभावना रहती है। माना जाता है कि वातावरण के बहुत सारे प्रदूषण कैंसर को पैदा करते हैं या बढ़ावा देते हैं। इसमें ई-कचरा भी शामिल है।

- डॉ. आलोक कुमार सिंह, वरिष्ठ फिजीशियन।


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