बेरोजगारी : कभी देश और विदेश में होती थी यहां के कंबल की मांग, आज धूल फांक रही सूत काटने वाली चरखी
मधेपुरा जिले के बिहारीगंज प्रखंड स्थित कठौतिया में पाल समुदाय के अधिकांश लोगों का मुख्य पेशा बुनकर उद्योग माना जाता था लेकिन आज इनसे जुड़े लोगों का व्यवसाय छीनता जा रहा हैं। हलांकि पुश्तैनी धंधा मानकर कई बुजुर्ग कंबल निर्माण में जुड़े हुए हैं।
मधेपुरा [शैलेश कुमार]। ग्रामीण इलाकों में कुटीर उद्योग के रूप में संचालित कंबल उद्योग पनपने के बजाए अब दम तोड़ तोड़ रही हैं। जिस वजह से इस काम से जुड़े कुशल हाथ बेरोजगार हो रहें हैं। इन्हीं कारणों से युवा पीढ़ी रोजगार के तलाश में दूसरे प्रदेश दिल्ली, पंजाब के राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं।
बताते चले कि मधेपुरा जिले के बिहारीगंज प्रखंड स्थित कठौतिया में पाल समुदाय के अधिकांश लोगों का मुख्य पेशा बुनकर उद्योग माना जाता था, लेकिन आज इनसे जुड़े लोगों का व्यवसाय छीनता जा रहा हैं। इसकी वजह प्रशासनिक उपेक्षा व राजनेताओं कीद अनदेखी मानी जा रहीं हैं। नतीजतन जिस चरखी का उपयोग कर गर्म कपड़े बनाने के लिए भेड़ो के बाल का धागा बनाया जाता था। आज बुनकर परिवार के घरों में चरखी धूल फांक रहा हैं। हलांकि पुश्तैनी धंधा मानकर कई बुजुर्ग कंबल निर्माण में जुड़े हुए हैं। पर इनकी आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो गई है।
ऊनी कंबल के लिए प्रसिद्ध था क्षेत्र:
बिट्रिश शासनकाल से ही बुनकर परिवारों के हाथों से निर्मित गर्म कपड़े यहां बनते थे। विशेष रूप से उपयोग अंग्रेज शासक अपने पसंद के गर्म पोशाक बनुकरों से निर्माण करवाते थे। इसके आलावा बड़े महानगरों में भी यहां निर्मित कंबल और गर्म कपड़ों की मांगें अच्छी थी। यहां के निर्मित गर्म कपड़े की देश व विदेशों में भी होती थी। पड़ोसी देश नेपाल में भी इसकी मांग थी।
बुनकरों के कंबल की बिक्री पर लगा ग्रहण
आधुनिकता के दौड़ में बुनकरों के निर्मित गर्म कपड़े की जगह बड़े शहरों में मशीनों से निर्मित चमकदार कंबल और गर्म कपड़े ने ले ली हैं। लुधियाना, पानीपत, दिल्ली जैसे शहरों से डिजाइनदार एवं कसीदाकारी कंबल और गर्म कपड़े बाजार में आने से हस्त से तैयार गर्म कपड़े की मांग कम हो गई हैं। जिस वजह बुनकरों के सामने आर्थिक संकट गहराने लगा।
भेड़ो के बालों को काटकर तैयार होता था कंबल
भेड़ों के बालों को काटकर रूई की तरह धुनाई की जाती हैं। जिसे चरखी से सूता तैयारकिया जाता हैं। इसके बाद बुनकरों हस्त से बुनकर कंबल और गर्म कपड़े तैयार करतें हैं। भेड़ के बाल गर्म रहनें के कारण तैयार कंबल और गर्म कपड़े भीषण ठंडक में गर्माहट पैदा करती है। कंबल बनाने में महिलाओं भी बढ़ चढ़ सहयोग करतीं हैं। लेकिन सरकरी उदासीनता व आधुनिकता के कारण बुनकरों के सामने जीविकोपार्जन के लिए आर्थिक संकट उत्पन्न हो गई। जिसके कारण युवा पीढ़ी यहां से अपने रोजगार की तलाश में पलायन करने लगे।
रामकिशुन पाल (60) ने बताया कि सरकार स्तर पर पहल कर कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक मदद दिलाने का आश्वासन दीया गया था। आश्वासन से चेहरे पर खुशी आई थी। लेकिन पर आश्वासन भी धरातल पर नहीं उतर सका। इसके बाद कोई भी जनप्रतिनिधि व पदाधिकारी झांकने तक नहीं आए हैं। जिससे हमलोग काफी दु:खी है। इस कुटीर को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी स्तर पर पर्याप्त सहयोग मिलें तो सैकड़ो बेरोजगार युवा कुटीर उद्योग से जुड़कर रोजगारोन्मुख हो सकते हैं।