Move to Jagran APP

यहां गंभीर मरीजों का नहीं होता इलाज, सदर अस्पताल और पीएचसी में कोई अंतर नहीं

भागलपुर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदर अस्पताल और पीएचसी में कोई भी फर्क नहीं है। यहां गंभीर मरीजों का इलाज नहीं होता है। यहां 25 चिकित्सकों में 10 कार्यरत हैं। 100 बेड के स्थान पर मात्र 30 बेड लगाए गए हैं।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 10:00 AM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 10:00 AM (IST)
यहां गंभीर मरीजों का नहीं होता इलाज, सदर अस्पताल और पीएचसी में कोई अंतर नहीं
लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदर अस्पताल। भागलपुर शहर के मध्‍य में स्थित है।

भागलपुर, जेएनएन। वर्षों से सदर अस्पताल उपेक्षित है। जब भी चुनाव का समय आता है नेता अस्पताल में इलाज की सारी सुविधा देने का वादा तो करते हैं लेकिन बाद में भूल जाते हैं। फिर केवल पत्र के द्वारा सरकार से अस्पताल की अव्यवस्था दूर करने का आग्रह करते हैं। शहर के मध्य में स्थित लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदर अस्पताल और पीएचसी में कोई भी फर्क नहीं है।

loksabha election banner

पीएचसी भी केवल आउटडोर मरीजों का इलाज और प्रसव भर करवाने के लिए भर रह गया है, तो सदर अस्पताल में व्यवस्था भी इससे इतर नहीं है। इमरजेंसी विभाग केवल नाम भर का है। हल्की चोट लगने पर भी मरीज का प्राथमिक उपचार कर जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) रेफर कर दिया जाता है।

चिकित्सक व कर्मचारियों की कमी

सदर अस्पताल का दर्जा मिले पांच वर्षों से ज्यादा गुजर गए। लेकिन चिकित्सकीय संसाधनों का अभाव बना हुआ है। वहीं रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं कर पाई। कर्मचारियों के स्वीकृत पद 12 हैं, कार्यरत मात्र तीन हैं। स्थित यह है कि कर्मचारी को ड्रेसर का प्रशिक्षण दिया गया। यही स्थिति निश्चेतक की भी है। ड्रेसर एजेंसी द्वारा दिए गए हैं। इसके अलावा ईसीजी टेक्नीशियन आडियोमेट्रिशयन, एक्सरे टेक्नीशियन, मिश्रक, मेट्रॉन, फिजियोथेरापिष्ट आदि पद भी रिक्त हैं।

100 बेड लगाने की भी जगह नहीं

सदर अस्पताल का दर्जा मिलने से एक सौ बेड बढ़ा दिए गए। लेकिन मात्र 30 बेड ही लगाने भर का स्थान है। मरीजों की संख्या ज्यादा होने पर उन्हें फर्श पर रखा जाता है।    

नहीं हैं विशेषज्ञ चिकित्सक

अस्पताल में नेत्र, हड्डी रोग विशेषज्ञ के अलावा सर्जन नहीं हैं। चर्म रोग विशेषज्ञ, ईएनटी विशेषज्ञ, हड्डी रोग विशेषज्ञ के अलावा रेडियोलॉजी के पद रिक्त हैं।

नहीं हो रहा मरीजों का अल्ट्रासाउंड

अस्पताल के मरीजों का अल्ट्रासाउंड भी नहीं किया जा रहा है। वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की गई है। जबकि आउटडोर में प्रतिदिन इलाज करवाने वाले मरीजों की संख्या तकरीबन चार सौ रहती हैं। एक महिला चिकित्सक को अल्ट्रासाउंड करने का प्रशिक्षण दिया गया लेकिन मरीज के इलाज करने में ही समय समाप्त हो जाता है।

टीबी मरीजों का नहीं होता इलाज

अस्पताल के आउटडोर में टीबी मरीजों का इलाज नहीं किया जाता। छह माह पूर्व डॉ. रिजवी के स्थानांतरण से टीबी विभाग बंद है।

कई दवाएं नहीं हैं

अस्पताल में कैल्शियम के अलावा कफ सीरप, चर्म रोग आदि दवाएं नहीं हैं। स्थिति तो यह है कि प्रसव करवाने आई महिलाओं के परिजनों से भी कई दवाएं खरीदवाई जाती हैं।

10 करोड़ का है बजट

सदर अस्पताल का सालाना तकरीबन 10 करोड़ रुपये का बजट है। इनमें दवा के अलावा कर्मचारियों के वेतन एवं अन्य खर्चे शामिल हैं।

40 मरीज होते हैं रेफर

प्रतिमाह 50 से ज्यादा मरीजों को जेएलएनएमसीएच रेफर किया जाता है। दुर्घटना में घायल मरीजों को शीघ्र रेफर किया जाता है। प्रसव करवाने आई महिला का हिमोग्लोबीन अगर आठ ग्राम है तो उसे भी रेफर करना पड़ता है।

अस्पताल में जो भी कमियां हैं सरकार को इसकी जानकारी दी गई है। - डॉ. एके मंडल, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.