जंग-ए-आजादी की दास्तान : सीटीएस में कंटीले तारों पर लिटाए जाते थे क्रांतिकारी Bhagalpur News
अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को नाथनगर सीटीएस में छोटे-छोटे कमरों में बंद कर दिया गया। इसमें चारों तरफ दीवारों में कांच के टुकड़े गाड़ दिए गए।
भागलपुर [संजय]। जंग-ए-आजादी की दास्तान में नाथनगर का सीटीएस भी दर्ज है, जहां स्वतंत्रता संग्राम के कितने ही दीवानों ने ब्रिटिश हुकूमत की यातनाएं ङोली थीं। यहां अब सिपाहियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। अंग्रेजी सरकार ने आंदोलनकारियों को यातना देने के लिए भागलपुर के नाथनगर स्थित सीटीएस को यातना गृह बना दिया था।
1905 में स्थापित सीटीएस, नाथनगर में ब्रिटिश हुकूमत के सिपाही प्रशिक्षण लेते थे। लोग उसे सपट साहब कहा करते थे। भागलपुर जिले में क्रांतिकारियों की गतिविधियां जोरों पर थीं। विद्रोही सियाराम सिंह, पार्थ ब्रह्मचारी, बुद्धिश्वर नागेश्वर सेन, चंद्रदेव शर्मा, दीना मिश्र, अंबिका सिंह व्यास जैसे सेनानियों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। इन सभी पर इनाम घोषित किया गया था।
हालांकि, ये पकड़ में नहीं आए। लेकिन वर्ष 1944 में बिहपुर के गांव नन्हकार जयरामपुर के त्रिशूलधारी प्रसाद सिंह, जगदीश चंद्र चौधरी, केशव पांडेय, कैलाश चंद्र चौधरी व रामेश्वर चौधरी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। क्रांतिकारियों की यह पहली गिरफ्तारी थी। इन सभी को नाथनगर सीटीएस में छोटे-छोटे कमरों में बंद कर दिया गया। इसमें चारों तरफ दीवारों में कांच के टुकड़े गाड़ दिए गए। सभी क्रांतिकारियों को अलग-अलग कमरे में बंद किया गया। फिर शुरू हुई यातना। बंदूक के कुंदे व बूट से पिटाई। शौच जाने के लिए भी मिन्नत। भोजन नाममात्र का। सबसे ज्यादा जगदीश चंद्र पर जुल्म ढाया गया था। उन सभी को करीब 17 दिनों तक इस यातना गृह में रखा गया। यातना की इस दास्तान को खुद त्रिशूलधारी प्रसाद सिंह ने कलमबद्ध किया था, ताकि आने वाली पीढ़ी यह जान सके कि इस आजादी के लिए किस तरह कष्ट उठाने पड़े थे। बाद में इन सभी को यातना गृह से भागलपुर जेल में शिफ्ट किया गया।
कुछ दिन बाद ही बांका के महेन्द्र गोप को भी साथियों के साथ पकड़ा गया। उन्हें भी इसी यातना गृह में लाया गया। उनके साथ ही गिरफ्तार किए गए लीगी राउत को कांटेदार तार पर लिटाकर बूट और बंदूक के कुंदे से पिटाई की गई। उनकी करूण चीत्कार हृदयविदारक थी। उनके चिखने पर सपट साहब अपने सिपाहियों को और जुल्म ढाने को कहता था। बिहपुर की स्वराज्य क्रांति नामक 45 पृष्ठों की पुस्तक में त्रिशूलधारी प्रसाद सिंह ने इन सभी बातों का उल्लेख करते हुए इस कैंप की बर्बरता का उल्लेख किया है। सीटीएस अभी भी है, पर यहां अभी यातनागृह के निशान नहीं हैं।
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