सूख रही है गंगा जैसी पूजनीय धर्ममूला नदी, पुराणों में भी है चर्चा
पुराणों में भी है सहरसा के धर्ममूला की चर्चा है। कपिलेश्वर महादेव मां उग्रतारा मंदिर सहित कई धर्मस्थल से इसका महत्व और बढ़ा है।
सहरसा, जेएनएन। हिमालय से निकलने वाली धर्ममूला नदी गंगा जैसी ही पवित्र व पूजनीय है। पुराणों में भी इसकी चर्चा है। इसके तट पर कपिलेश्वर महादेव, मां उग्रतारा मंदिर सहित कई धर्मस्थलों के होने के कारण यह नदी पूजनीय है। लेकिन देखरेख व संरक्षण के अभाव में जिले से गुजरने वाली यह नदी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। पर्याप्त जल के अभाव में अब यह ऐतिहासिक नदी कई स्थानों पर सूखने लगी है।
हिमालय से निकलती है धर्ममूला
धर्ममूला नदी भी हिमालय से निकलती है। कोसी की ही तरह इसका अलग अस्तित्व है। सुपौल जिले के चैनङ्क्षसहपट्टी में यह दो स्थानों पर बंट जाती है। इसके पूर्वी भाग को तिलयुगा या धेमुरा नदी के नाम से जाना जाता है। जबकि पश्चिमी भाग को मनुआ या पुरैन धार कहा जाता है। जिले के सलखुआ प्रखंड में आकर यह स्लुइस गेट में गिरती है और फिर आगे निकल कर कोसी में मिल जाती है।
पाल काल में था बड़ा महत्व
साहित्यकार व इतिहासकार तारानंद वियोगी बताते हैं कि पालवंश के शासन काल में कांचनपुर (वर्तमान में कंदाहा) उनकी उपराजधानी थी। वह धमर्मूला के ही तट पर बसा था। उस दौरान प्रत्येक वर्ष इस नदी के तट पर विद्वानों की धर्मसभा आयोजित होती थी। यहां वर्ष भर धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते थे। इस नदी के तट पर सुपौल जिले में कपिलेश्वर स्थान, कंदाहा में सूर्य मंदिर, वनगांव में वनदेवी, महिषी में मां उग्रतारा शक्तिपीठ, नचुकेश्वर महादेव, बख्तियारपुर में कांठो महादेव मंदिर स्थित हैं।
कोसी की धारा ने बदली धर्ममूला की किस्मत
लगभग दो सौ साल पहले जब कोसी पूर्णिया जिले से होकर गुजरती थी, उस वक्त धर्ममूला का प्रवाह क्षेत्र व्यापक था। हिमालय से निकलकर धर्ममूला पूरे वेग में बहती थी। लेकिन कोसी के धारा बदल लेने के कारण धर्ममूला की किस्मत ही बदल गई। इस वर्ष अतिवृष्टि के कारण इस नदी में पर्याप्त पानी दिखा। लेकिन वर्तमान समय में यह नदी बेलवारा के समीप लगभग सूख चुकी है। नदी संरक्षण आंदोलन से जुड़े पर्यावरणविदों ने इस पर चिंता जताई है।
युवाओं ने शुरू की संरक्षण की पहल
विष्णु पुराण व स्कंद पुराण में चर्चित धर्ममूला की कलकल बहती जलधारा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए महिषी के कुछ युवाओं ने डॉ. तारानंद वियोगी की प्रेरणा से लोगों को जागरूक करना शुरू किया है। यहां के युवा बताते हैं कि जिस तरह कुछ सदाबहार नदियां बरसाती नदी में तब्दील होती जा रही है। एक दिन यह नदी भी इतिहास बन जाएगी। ऐसे में इसकी रक्षा के लिए सरकार को आवश्यक उपाय करने होंगे।