कोसी की उद्योग नगरी की विरानगी भी पूछ रहा सवाल... तीन दशक से कोई नहीं ले रहा सुध
आधा दर्जन उद्योग इकाई सहित कई छोटे मोटे कल कारखाने की चिमनियों से उठते धुएं की बदौलत ही लोगों के घर चूल्हा जलता था। जूट मिल की वंशी की धुन से परिवार में खुशियों के गीत बजते थे। आरबीएचएम जूट मिल सहित अन्य उद्योग इकाईयां यहां दम तोड़ चुकी है।
कटिहार, जेएनएन। कभी लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने और उन्हें दो वक्त की रोटी मुहैया कराने का गौरव रखने वाला उद्योग नगरी कटिहार आज अपनी हालत पर सिसक रहा है। कल तक अन्य जिलों के लोगों के लिए रोजगार का साधन बनने वाले इस जिले के लोगों को अब अपने ही घर से दो वक्त की रोटी के लिए महानगरों का सफर करना पड़ता है। चुनावी मौसम में यह मुददा जरुर बनता है, लेकिन चुनाव के बाद सब कुछ शांत हो जाता है।
आधा दर्जन उद्योग इकाई सहित कई छोटे मोटे कल कारखाने की चिमनियों से उठते धुएं की बदौलत ही लोगों के घर चूल्हा जलता था। जूट मिल की वंशी की धुन से परिवार में खुशियों के गीत बजते थे। आरबीएचएम जूट मिल सहित दो जूट मिल, फ्लावर मिल, कांटी फैक्ट्री, मोमबत्ती उद्योग, दिया सलाई फैक्ट्री, पाइप पैक्ट्री सहित अन्य उद्योग इकाईयां यहां दम तोड़ चुकी है। मंद मंद चलने वाली जूट मिल की चकरी भी पूरी तरह थम चुकी है। रोजगार की समस्या का आलम यह है कि कभी जूट मिल में नौकरी करने वाले लोग अभी रिक्शा, ठेला खींचकर परिवार की परवरिश कर रहे हैं।
चुनावी मौसम में बनता रहा है मुद्दा :
चुनाव के दौरान बड़ी पार्टियों से लेकर छोटी पार्टियों की सभा में उद्योग नगरी को पहचान दिलाने की घोषणा सबसे पहले होती है। रोजगार की मार झेल रहे लोग तो रोजगार की आस में लगभग सभी पर भरोसा जताकर मौका दे चुके हैं, लेकिन उनकी उम्मीदों को पंख नहीं लग पाया है। तीन दशक में कई सांसद और मंत्री भी हुए, लेकिन लोगों का यह दर्द दूर नहीं हो पाया। विस चुनाव की सुगबुगाहट ने एक बार फिर इस मुद्दे को चर्चा में ला दिया है।
कारगर नहीं हो पाई सर्वदलीय पहल :
जूट मिल चालू कराने को लेकर सर्वदलीय पहल भी कारगर नहीं हो पाई है। जूट मिल चालू कराने को लेकर सर्वदलीय बैठक एवं आंदोलन को गति देकर पटना से दिल्ली तक लोगों की आवाज पहुंचाने की कोशिश भी नाकाम साबित हुई। सारी कवायद के बाद भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा सका।
जूट मिल से शुरू हुआ कईयों का राजनीतिक सफर :
जूट मिल बचाने की मुहिम में आगे बढ़े कई लोगों ने इस मुद्दे के सहारे अपनी राजनीतिक सफर की शुरूआत की। मजदूरों की समस्या और रोजगार दिलाने की पहल के सहारे लोग राजनीतिक सफर में तो आगे बढ़े लेकिन यह मुद्दा जस का तस रह गया।