अब घर की मुंडेर पर क्यों नहीं बोलता 'कागा' जानिए
बर्ड फ्लू के वायरस और मृत जानवरों के जहरीले मांस के सेवन भी कौवे अप्राकृतिक मौत हो रहे हैं। कंक्रीट का जंगल फैलने से कौवे अपना आशियाना भी नहीं बना पा रहे।
भागलपुर [ललन तिवारी]। घर के मुंडेर पर से कांव-कांव कर अतिथि के आने का संदेश देने वाले कौए की आवाज अब कम ही सुनाई देती है। इनकी संख्या तेजी से घट रही है। यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुका है।
पशु विशेषज्ञ बढ़ते प्रदूषण, बड़े पेड़ों का कम होना और सिमटती जैवविविधता आदि को इसके लिए जिम्मेदार मान रहे हैं। बर्ड फ्लू के वायरस और मृत जानवरों के जहरीले मांस के सेवन भी कौवे अप्राकृतिक मौत के शिकार हो रहे हैं।
कंक्रीट का जंगल फैलने से कौवे अपना आशियाना भी नहीं बना पा रहे हैं। इस कारण उसके प्रजनन की रफ्तार धीमी हो गई है। सबौर कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक डॉ. जेड होदा बताते हैं कि बर्ड फ्लू के संक्रमण से सबसे पहले कौआ की ही मौत होती है।
यह इसलिए कि कौआ मृत जानवरों को खाता है। डॉ. होदा की मानें तो दो प्रजातियों का पाया जाने वाला कौआ लंबे समय तक जीने वाला पक्षी है लेकिन विगड़ रहे पर्यावरण की मार और मोबाइल टावर से उत्पन्न तरंग इन पर भी पड़ी है। पर्यावरण असंतुलन के कारण गौरैया की तरह कौआ भी संकटग्रस्त हो गया है। पहले कौआ के झुंड के झुंड दिखाई देते थे। अब यह बहुत कम ही दिखाई देते हैं।