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जयंती विशेष : भागलपुर में उपेक्षित हैं राष्ट्रकवि दिनकर की यादें, 1964 से 1965 तक रहे थे टीएमबीयू के कुलपति

पीजी हिंदी विभाग के सामने राष्ट्रकवि की आदमकद संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है। 23 सितंबर 2001 को तत्कालीन कुलाधिपति विनोद चंद्र पांडेय ने इसका अनावरण किया था। यह तत्कालीन कुलपति रामाश्रय यादव की पहल पर हो सका था। यह प्रतिमा और उसका परिसर 19 साल बाद जीर्ण-शीर्ण हालत में है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 11:53 AM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 11:53 AM (IST)
जयंती विशेष : भागलपुर में उपेक्षित हैं राष्ट्रकवि दिनकर की यादें, 1964 से 1965 तक रहे थे टीएमबीयू के कुलपति
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में स्थापित रामधारी सिंह दिनकर की प्रतिमा

भागलपुर [बलराम मिश्र]। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के छठे कुलपति के रूप में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी रहे थे। उन्होंने 10 जनवरी, 1964 से तीन मई, 1965 तक इस पद को सुशोभित किया था। इस छोटे से कार्यकाल में उन्हें भागलपुर से गहरा लगाव हो गया था। उनका आवास गोलाघाट स्थित छावनी कोठी में था। वहां की हालत भी खस्ता है। टीएमबीयू में उनके कार्यकाल से जुड़ी यादों को सहेजकर नहीं रखा गया है। उन्हें अब तक उचित सम्मान नहीं मिला है।

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जीर्ण-शीर्ण हालत में आदमकद प्रतिमा : पीजी ङ्क्षहदी विभाग के सामने राष्ट्रकवि की आदमकद संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है। 23 सितंबर, 2001 को तत्कालीन कुलाधिपति विनोद चंद्र पांडेय ने इसका अनावरण किया था। यह तत्कालीन कुलपति रामाश्रय यादव की पहल पर हो सका था। अब यह प्रतिमा और उसका परिसर 19 साल बाद जीर्ण-शीर्ण हालत में है।

कम समय में भागलपुर में प्राप्त कर ली थी ख्याति : वे एक कुशल प्रशासक थे। इस कारण टीएमबीयू की स्थिति को बदलना चाहते थे। उन्होंने गांधी विचार विभाग एवं नेहरू अध्ययन केंद्र स्थापित करने का प्रयास किया था, लेकिन तब यह काम नहीं हो सका था। बाद में डॉ. रामजी सिंह ने गांधी विचार विभाग को स्थापित कर उनकी योजना को साकार किया था। आज तक नेहरू अध्ययन केंद्र की स्थापना नहीं हो सकी है। राष्ट्रकवि ने काफी कम समय में ख्याति प्राप्त कर ली थी।

नेहरू ने की थी मदद : मानविकी विभाग के डीन प्रो. बहादुर मिश्रा ने बताया कि जब वे गरीबी से जूझ रहे थे, तब पंडित जवाहर लाल नेहरू उनकी मदद को आगे आए थे। कांग्रेस के टिकट पर वे राज्यसभा सदस्य बने। तभी उन्होंने कुलपति का पद छोड़ दिया। डॉ. मिश्रा ने बताया कि वे शांति और क्रांति के पर्याय थे। हिंदी साहित्य में न सिर्फ वीर रस के काव्य को एक नई ऊंचाई दी, बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को भी जगाया।

राष्ट्रकवि के ऋृणी हैं कि उनकी वजह से विश्वविद्यालय का नाम है। उन्हें उचित सम्मान मिले, इसके लिए उनकी स्मृतियों को सहेजा जाएगा। मैं भी बड़ी गौरवान्वित हूं कि इस विश्वविद्यालय के कुलपति की शोभा राष्ट्रकवि ने बढ़ाई थी।

- प्रो. नीलिमा गुप्ता

कुलपति, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय

वे महान राष्ट्रकवि थे। उन्होंने आजादी के पहले और बाद के भारत की परिस्थितियों को करीब से देखा था। देशभक्ति के लिए उनकी रचनाओं को जाना जाता था। उनकी रचना रश्मिरथी युवाओं के लिए आज भी प्रासंगिक है।

- प्रो. रमाशंकर दुबे

पूर्व कुलपति टीएमबीयू सह वर्तमान कुलपति केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात


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