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पूरे साल बाढ़ का दर्द देती है महानंदा, बाढ़ के बाद तेज होती है पलायन की रफ्तार

कटिहार के 10 प्रखंड अमूमन हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं। बाढ़ के साथ कटाव मनिहारी अमदाबाद बरारी प्राणपुर व कुर्सेला प्रखंड के लोगों को तबाह कर रहा है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 17 Aug 2020 08:42 AM (IST)Updated: Mon, 17 Aug 2020 08:42 AM (IST)
पूरे साल बाढ़ का दर्द देती है महानंदा, बाढ़ के बाद तेज होती है पलायन की रफ्तार
पूरे साल बाढ़ का दर्द देती है महानंदा, बाढ़ के बाद तेज होती है पलायन की रफ्तार

कटिहार [नंदन कुमार झा]। गंगा, कोसी और महानंदा से घिरे कटिहार जिले में हर साल बाढ़ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चौपट कर जाती है। इसका सीधा प्रभाव यहां के लोगों की रोजी-रोटी पर पड़ता है और बाढ़ के बाद लोग परदेस की राह पकडऩे को मजबूर होते हैं। मुख्य रूप से बाढ़ यहां फसलों को बर्बाद करती है तो घर-बार तबाह हो जाता है।

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जिले के 10 प्रखंड अमूमन हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं। बाढ़ के साथ कटाव मनिहारी, अमदाबाद, बरारी, प्राणपुर व कुर्सेला प्रखंड के लोगों को तबाह कर रहा है। औसतन हर साल तीन सौ घर गंगा व महानंदा लील जाती है। इसके साथ ही उपजाऊ भूमि पर भी गंगा व महानंदा की वक्र दृष्टि पड़ती है। घर पर अनाज तक नहीं बच पाता है और लोग दो जून की रोटी के लिए पलायन को मजबूर होते हैं। यही कारण है कि सालोंभर यहां पलायन का सिलसिला जारी रहता है। कटिहार सहित पूरे सीमांचल से महानगरों को जाने वाली ट्रेनों में दर्द की भीड़ सालोभर बनी रहती है।

भागती भीड़ में ओझल हो जाता है दर्द, निहारते रहते हैं परिजन : बताते चलें कि कटिहार स्टेशन से दिल्ली, मुंबई, पंजाब, लुघियाना, चंडीगढ़ सहित दक्षिण भारत की ओर जाने वाली अधिकांश ट्रेनों में सबसे अधिक भीड़ प्रवासी मजदूरों की होती है। प्रवासी मजदूरों के लिए महानंदा एक्सप्रेस सबसे मुफीद होती है। महानंदा व आम्रपाली एक्सप्रेस में सबसे अधिक भीड़ प्रवासी मजदूरों की होती है। काफी संख्या में मजदूरों के पहुंचने के कारण ट्रेन के स्टेशन पहुंचते ही भागमभाग शुरू होती है। भागती भीड़ में कुछ पल के लिए मजदूर तो अपना दर्द भूल जाते हैं, लेकिन ट्रेन खुलने तक परिजनों की बेबस आंखे उन्हें निहारती रहती है।

सबको भाता है अपना देश ,पेट की भूख ले जाती है परदेस : अपने घर रोजगार के संकट होने के कारण लोग परदेस की आरे रुख करते हैं। घोषणा व वादों के बीच अपने घर रोजगार नहीं मिलने का उन्हें मलाल रहता है। परदेश जा रहे बिषु ऋषि, हरदेव मंडल, खोखा परिहार, बिल्लू शर्मा, इसराफुल, मोजिब, धन्नी आदि ने बताया कि सबको अपना देश भाता है, लेकिन पेट की भूख उन्हें परदेस भेजती है। अपने घर रोजगार मिलने के वादे के साथ वे घर तो लौटे हैं, लेकिन यहां रोजगार के लाले हैं। बाढ़ के कारण फसल भी बर्बाद हो चुकी है। आखिर कोरोना है तो क्या हुआ, अगर घर पर रहे तो बिलबिलाते बच्चे कोरोना से बच भी जाएं भूख से मर जाएंगे।


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