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कहां गुम हो गई चंपा : न तट पर लगता है मेला, न उड़ती पतंग, डॉल्फिन भी दिखते थे कभी

विसुआ या सतुआनी की अगली सुबह को लगने वाले उस मेले को लोग अंगिका में गुड्डी कटाउन कहकर पुकारते थे। मेला चंपा पुल के नीचे स्थित मैदान में लगता था।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 26 Nov 2019 12:28 PM (IST)Updated: Tue, 26 Nov 2019 12:28 PM (IST)
कहां गुम हो गई चंपा : न तट पर लगता है मेला, न उड़ती पतंग, डॉल्फिन भी दिखते थे कभी
कहां गुम हो गई चंपा : न तट पर लगता है मेला, न उड़ती पतंग, डॉल्फिन भी दिखते थे कभी

भागलपुर [विकास पांडेय]। चंपानगर स्थित चंपा नदी के तट पर पहले हर वर्ष पतंग उड़ाने का मेला लगता था। उस मेले में पतंग उड़ाने के शौकीन लोग रंग-विरंगी के सैकड़ों पतंगें उड़ाया करते थे। आसमान आकर्षक पतंगों से सज जाता था। बच्चों का हुजूम कटी पतंगें लूटने में जुटा रहता था। आसमान में लहराता सात-आठ पतंगों का गुच्छा बच्चों और बड़ों के आकर्षण का केंद्र रहता था।

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विसुआ या सतुआनी की अगली सुबह को लगने वाले उस मेले को लोग अंगिका में गुड्डी कटाउन कहकर पुकारते थे। मेला चंपा पुल के नीचे स्थित मैदान में लगता था। इसमें विभिन्न खाद्य सामग्री व जरूरत के सामानों की दुकानें भी लगती थीं। दोपहर से देर शाम तक चलने वाले उस मेले में अल्पसंख्यक समुदाय के बुनकर पतंगबाज भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। इससे वहां सांप्रदायिक सद्भाव का अनूठा दृश्य देखने को मिलता था। 1990 के बाद चंपा नदी सूखने-सिमटने लगी तो मेल लगना भी बंद हो गया।

पतंगबाजी की तैयारी करते थे लोग : मेले में दूसरे के पतंगों को काटने के लिए प्रतिभागी महीनों से तैयारी करते थे। मजबूत धागे को मांजा जाता था। मजबूत व आकर्षक लटई मंगवाई जाती थी। विभिन्न नामों वाले चित्ताकर्षक पतंगे उड़ती थीं। उनमें चांदमार, शीतमार, कबूतरी, डंटेली, चारमुखी, सतमुखी आदि लोकप्रिय नाम थे।

नदी में स्नान करने पहुंचते थे लोग : 1990 तक बड़ी संख्या में लोग चंपा नदी में स्नान करने आते थे। दोपहर बाद तक आने-जाने वालों की कतारें लगी रहती थीं। उस काल तक नदी तट पर सप्ताह में दो-तीन दिन आसपास के धोबियों की पाटों की कतारें दिखाई देती थीं।

चंपा में था डाल्फिन का वास : चंपानगर के शंकू सरखेल, ढेलू दा, कालीदास चक्रवर्ती आदि बताते हैं कि चंपानगर व श्रीरामपुर के बीच प्रवाहमान चंपा नदी में 1980 तक राष्टीय जल जीव डॉल्फिन भी दिखते थे। सांस लेने के लिए उसकी हवा में कलाबाजी देखते ही बनती थी। लोग उसे सोंस कहकर पुकारते थे।


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