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कहां गुम हो गई चंपा : चंपा के साथ कतरनी की खुशबू भी गायब

नदी उपेक्षा का शिकार हुई और माफिया की निगाहों में चढ़ी तो अवैध बालू खनन ने न सिर्फ इसकी धारा रोकी बल्कि गांवों की समृद्धि भी।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 24 Nov 2019 01:09 PM (IST)Updated: Sun, 24 Nov 2019 01:09 PM (IST)
कहां गुम हो गई चंपा : चंपा के साथ कतरनी की खुशबू भी गायब
कहां गुम हो गई चंपा : चंपा के साथ कतरनी की खुशबू भी गायब

भागलपुर [संजय कुमार सिंह]। अब कतरनी धान कहां छै..। पुतो देवी की बूढ़ी आंखों में दर्द छलक उठता है। एक नदी के मिटते अस्तित्व के साथ उन्होंने गांव की अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न होते भी देखा है। उनके स्वर में पीड़ा है, अब भूलि (भूल) जा ‘उ कतरनी चूड़ा-चावल..।’

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बांका के बेरमा से कहीं अंधरी, कहीं जमुनिया नाम के साथ बहती हुई जिस नदी ने भागलपुर के नाथनगर आते-आते चंपा के नाम से प्रसिद्धि पाई, उसके किनारे के गांवों में कतरनी धान की जबर्दस्त खेती होती थी। यहां का कतरनी चूड़ा और चावल आज भी देश-विदेश में मशहूर है।

नदी की धारा रुकी तो लगी समृद्धि को नजर : नदी उपेक्षा का शिकार हुई और माफिया की निगाहों में चढ़ी तो अवैध बालू खनन ने न सिर्फ इसकी धारा रोकी, बल्कि गांवों की समृद्धि भी। पुतो देवी कहती हैं- कतरनी को बहुत पानी चाहिए, मोटर पंप से पटवन के लिए इतना पैसा कहां से लाएंगे? एक बुजुर्ग महिला की जिंदगी के अनुभव जमीनी हकीकत बयां कर रहे हैं। वहीं, नई पीढ़ी की महिला पुतुल देवी कहती हैं, कतरनी के बारे में सुना है, पर देखा नहीं कि कोई इसकी खेती कर रहा हो। एक नदी के मिटने का यह असर है।

इन गांवों पर पड़ा चंपा के सूखने का असर : बासुदेवपुर, हाजीपुर, कमलपुर, चांदपुर, मेदलाचक, अंधरी, कड़हरिया, भुलनी, बैजनाथनपुर, दराधी, दरियापुर, सरोख, छवनिया बहियार, भतौड़िया, बिहारीपुर आदि गांव।

राज्य सरकार की पहल पर कतरनी को मिला जीआइ टैग : राज्य सरकार की पहल के बाद कतरनी को जीआइ टैग (ज्यूग्राफिकल इंडिकेशन) मिल चुका है। कतरनी चावल का काउंटर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भी लगाने का भी फैसला किया गया है। लेकिन किसानों ने इसकी खेती ही बंद कर दी है।

राजकुमार पंजियारा (सचिव, भागलपुरी कतरनी धान उत्पादक संघ) ने कहा कि चानन और इससे निकली चंपा नदी का पानी और आसपास की मिट्टी कतरनी की खुशबू के लिए मुफीद है। ऐसा धान दूसरी जगह नहीं होता है। बांका के रजौन आदि इलाकों में तो खेती होती है, पर चंपा के सूख जाने से भागलपुर के शाहकुंड, गोराडीह आदि क्षेत्र में खेती प्रभावित हो गई।

शंकर चौधरी (संयुक्त कृषि निदेशक, भागलपुर) ने कहा कि वर्तमान समय में जिले में महज तीन सौ एकड़ में खेती हुई। सिंचाई के लिए चेकडैम बनाने की किसानों की मांग की रिपोर्ट जिला प्रशासन को दे दी है। जल संसाधन विभाग को प्रस्ताव भेजा गया है।

डॉ. मुकेश (बिहार कृषि विवि, सबौर) ने कहा कि चंपा के सूख जाने के बाद कतरनी की खेती से किसानों का मोह भंग हो चुका है। चंपा को बचाना जरूरी है। फिलहाल, ऐसे बीज विकसित कर किसानों को जोड़ने की कोशिश की जा रही, ताकि वे कतरनी की खेती कर सकें।

मुख्य बातें

28 किलोमीटर तक अविरल बहती थी चंपा नदी की धारा अब कई जगह मार्ग हो गया है अवरुद्ध, खेती किसानी पर संकट

एक नदी के मिटने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था हुई प्रभावित

देश-विदेश में मशहूर है कतरनी चावल

दर्जनों गांवों में किसानों ने बंद कर दी इस धान की खेती

कहां कितनी होती थी खेती

1200 एकड़, जगदीशपुर प्रखंड

60 एकड़, शाहकुंड प्रखंड

50 एकड़ ,नाथनगर प्रखंड

30 एकड़, गोराडीह प्रखंड

300 एकड़ में ही इस साल हुई खेती


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